SIDHI. सूरजमुखी के खिलखिलाते फूल किसानों के जीवन में खुशियां बिखेर रहे हैं। पहली बार सीधी जिले के 11 किसानों ने 11 एकड़ जमीन में सूरजमुखी की बोनी की है। इन पौधों में फूल भी खिल गए हैं। प्रकृति ने साथ दिया तो अच्छा खासा उत्पादन होने की उम्मीद है। प्रदेश में सीधी, उमरिया और सिवनी में सूरजमुखी की खेती की जा रही है। खेती शुरू करने के पहले बीज उपचार शोधन करके किसानों को दिया गया है। जैविक खाद के साथ किसान रासायनिक खाद का उपयोग भी कर रहे हैं।
दक्षिण भारत में होती है सूरजमुखी की खेती
दक्षिण भारत में सूरजमुखी की खेती की जाती है। इससे निकलने वाला तेल कई गंभीर बीमारियों से छुटकारा दिलाता है। सूरजमुखी की खेती देश में पहली बार 1969 में उत्तराखंड के पंतनगर में की गई थी। ये एक ऐसी तिलहनी फसल है जिस पर प्रकाश का कोई असर नहीं पड़ता।
1 एकड़ में होता है 5-6 क्विंटल उत्पादन
रामपुर तहसील के गोपालपुर के रहने वाले विनय कुमार सिंह बताते हैं कि वे पहली बार सूरजमुखी की खेती कर रहे हैं। 2 एकड़ के खेत में 4 किलो सूरजमुखी की बोनी कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक धनंजय सिंह की देखरेख में की है। 100 से 120 दिन में ये पककर तैयार हो जाएगा। 1 एकड़ खेत में 5 से 6 क्विंटल उत्पादन होता है। बोनी करने में करीब 10 हजार रुपए का खर्च हुआ है।
6400 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से खरीदेगी सरकार
सरकार के एमपीएस में सूरजमुखी का 6400 रुपए प्रति क्विंटल का रेट मिलेगा। खास बात तो ये है कि सालभर में एक ही खेत में तीन बार सूरजमुखी की खेती करके अच्छा-खासा मुनाफा कम मेहनत में कमा सकते हैं। इसकी बोनी जून, अक्टूबर और फरवरी महीने में की जाती है।
सूरजमुखी में कई औषधीय गुण
सूरजमुखी के फूलों और बीजों में कई औषधीय गुण छुपे होते हैं। ये कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से बचाव करता है। इसके अलावा तेल का सेवन करने से लीवर सही तरीके से काम करता है। ऑस्टियोपरोसिस जैसी हड्डियों की बीमारी भी नहीं होती है। ये त्वचा को निखारने के साथ बालों को भी मजबूत बनाता है। बीज को खाने से हार्ट अटैक का खतरा कम होता है, कोलेस्ट्रॉल घटता है, त्वचा में निखार आता है और बालों की भी ग्रोथ होती है।
सूरजमुखी की खेती किसानों के लिए फायदे का धंधा
कृषि वैज्ञानिक धनंजय सिंह का कहना है कि पहली बार 11 किसान सूरजमुखी की खेती कर रहे हैं। अच्छा उत्पादन होने की उम्मीद है। किसानों के लिए ये फायदे का धंधा होगा। किसानों ने जैविक खाद के साथ रासायनिक खाद का भी उपयोग किया है।