BHOPAL. मध्यप्रदेश में चुनाव का मौसम दस्तक दे चुका है। ऐसे में विपक्ष के साथ—साथ सत्ताधारी दल भी मतदाताओं को रिझाने की कोशिशों में लगा हुआ है, कोई भी मतदाओं की नाराजगी नहीं लेना चाहता। इस बीच कृषि विभाग की ओर से एक ऐसी गलती हो गई थी जो चुनाव में सत्ताधारी दल के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती थी और सरकार को किसानों की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता था। यही कारण है कि सरकार 41 दिन बाद बैकफुट पर आई और अपने आदेश में संसोधन किया। मामला फसल बीमा से जुड़ा हुआ है। पहले कृषि विभाग ने फसल मुआवजा तय करने वाले पेमेंट आफ स्केल यानी बीमित राशि को कई जिलों में कम कर दिया। जब किसानों ने इसका विरोध शुरू किया तो 41 दिन बाद दूसरा संसोधित आदेश निकाला गया, जिसमें फसल की बीमित राशि या तो वर्ष 2022 की तरह यथावत् रखी गई, या फिर उसको और बढ़ा दिया गया।
पेमेंट आफ स्केल कम होने से शुरू हो गया था विरोध
फसल बीमा के लिए हर साल जून में सरकार खरीफ और रबी फसल के लिए बीमित राशि यानी पेमेंट आफ स्केल का सरकार निर्धारण करती है। 10 जून 2022 को सरकार ने फसलों के लिए जो बीमित राशि का निर्धारण किया था, एक साल बाद 15 जून 2023 को सरकार ने जब इसे दोबारा निर्धारण किया तो कई जिलों में कई फसलों की बीमित राशि को कम कर दिया। सागर जिले में तो यह हालात थे कि खरीफ की सभी फसलों की बीमित राशि कम कर दी गई। संयुक्त किसान मोर्चा इंदौर के बब्लू जाधव ने कहा कि महंगाई बढ़ी है, ऐसे में फसल की लागत को कम दिखाना गलत है। इससे किसानों को नुकसान होता है।
पेमेंट आफ स्केल इतना महत्वपूर्ण क्यों?
मौसम की मार के कारण किसानों को आर्थिक नुकसान नहीं उठाना पड़े इसके लिए वह अपनी रबी और खरीफ फसल का हर साल बीमा कराते हैं, बीमा के बाद यदि किसान की फसल खराब होती है तो संबंधित बीमा कंपनी उसे क्लेम की राशि देती है। इसके लिए बीमित राशि यानी स्केल आफ फायनेंस बेहद महत्वपूर्ण है। बीमित राशि को कलेक्टर की अध्यक्षता में कमेटी निर्धारित करती है। कुल मिलाकर फसल की बीमित राशि जितनी अधिक होगी, उतना अधिक सरकार और किसान को फसल का प्रीमियम बीमा कंपनी को देना होगा, लेकिन यदि फसल खराब हुई तो किसान को क्लेम की राशि भी ज्यादा मिलेगी।
यह है क्लेम की राशि निकालने का फार्मूला
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में क्लेम की राशि निकालने के लिए बकायदा फार्मूला तय है। जिसके अनुसार 5 साल के फसल का औसत उत्पादन यानी थ्रेसहोल्ड उपज को वास्तविक उपज से घटाकर उसमें थ्रेसहोल्ड उपज से भाग देते हैं। इसके बाद बीमित राशि यानी स्केल आफ फायनेंस का गुणा करते हैं। इसके बाद जो आंकड़े आते हैं वह क्लेम की राशि होती है।
किसान के नफा नुकसान का गणित
मध्यप्रदेश में इंदौर सोयाबीन उत्पादक जिलों में से एक है। अब इसी के उदाहरण से पेमेंट आफ स्केल के माध्यम से किसान के नफा नुकसान का गणित समझते हैं। यहां 1 हेक्टेयर में सोयाबीन का औसत उत्पादन यानी थ्रेसहोल्ड उपज 20 क्विंटल है और वास्तवित उत्पादन 25 क्विंटल है। ऐसे में यदि इंदौर के किसी किसान की 1 हेक्टेयर की सोयाबीन की फसल 2022 में खराब हुई तो उसे क्लेम राशि की गणना बीमित राशि 45 हजार प्रति हेक्टेयर के हिसाब से होगी। यानी क्लेम के फार्मूले के अनुसार 11250 रूपए 1 हेक्टेयर पर किसान को क्लेम के रूप में मिलेंगे। 15 जून 2023 को जारी गजट नोटिफिकेशन के अनुसार इंदौर में सोयाबीन की बीमित राशि को सरकार ने कम कर 35600 कर दिया। अब इससे हम 2023 में 1 हेक्टेयर सोयाबीन क्लेम की राशि की गणना करें तो यह राशि 8900 रूपए होती है, मतलब 2350 रूपए कम। इसका मतलब यह हुआ कि यदि 2023 में इंदौर के किसी किसान की 10 हेक्टेयर की सोयबीन की फसल खराब हो जाती तो उसे वर्ष 2022 की अपेक्षा 23500 रूपए का नुकसान हो जाता।
सरकार ने ऐसे किया डेमेज कंट्रोल
- मूंग : सागर जिले के लिए 10 जून 2022 में मूंग की बीमित राशि 26500 थी, जिसे 15 जून 2023 को कम करके 14700 कर दिया गया। 26 जून 2023 को दोबारा संसोधित आदेश निकला और वापस बीमित राशि 26500 कर दी गई।
कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए होता है ऐसा
किसान नेता शिवकुमार शर्मा कक्काजी ने बताया कि वैसे तो एक भूभाग में फसल बुआई से लेकर कटाई तक के खर्च को केल्कुलेट कर बीमित राशि की गणना होनी चाहिए, लेकिन ऐसा होता नहीं है। बीमा कंपनियों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से इसे कम ज्यादा किया जाता है। यह सिर्फ दबाव की राजनीति है और कुछ नहीं।