आइंस्टीन को स्कूल से निकाल दिया गया था, ये बात मां ने छिपाई थी, इश्कमिजाज थे, कमाल की खोजें कीं, खुशी का फॉर्मूला भी बता गए

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आइंस्टीन को स्कूल से निकाल दिया गया था, ये बात मां ने छिपाई थी, इश्कमिजाज थे, कमाल की खोजें कीं, खुशी का फॉर्मूला भी बता गए

आज जिनकी कहानी सुना रहा हूं, आप उन्हें विज्ञान का पर्याय कह सकते हैं। उनका नाम आता है तो आदमी यही कह उठता है कि उनसे ग्रेट कोई नहीं हुआ। He was the greatest...। आज जिनकी कहानी है, उन्होंने E = mc² का सिद्धांत दिया, जिन्होंने थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी दी, जिन्होंने फोटोइलेक्ट्रिक इफेक्ट बताया। अब तो आप समझ ही गए होंगे कि किनकी बात हो रही है। जी हां, आप सही समझे...मैं अल्बर्ट आइंस्टीन की ही बात कर रहा है। द लेजेंड, द ग्रेटेस्ट...। अगले हफ्ते आइंस्टीन का जन्मदिन है तो उनसे बेहतर कुछ सोच पाना ना तो मुनासिब हुआ और ना ही मेरी इतनी हैसियत थी। आज की कहानी को मैंने नाम दिया है- आइंस्टीन का खुशी का फॉर्मूला....

आइंस्टीन के बारे में बताने के लिए बहुत सारा वक्त चाहिए। कई किताबें खत्म हो जाएंगी, लेकिन वे खत्म नहीं होंगे। फिर भी उन्हें समय में समेटने की कोशिश करता हूं। अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म 14 मार्च 1879 को जर्मनी के उल्म शहर में हुआ था। उनके पिता हरमन एक इंजीनियर और सेल्समैन थे। उनकी मां पाओलीन थीं। हालाँकि आइंस्टीन को शुरू-शुरू में बोलने में कठिनाई होती थी, लेकिन वे पढ़ाई में ज्यादा अच्छे नही थे। उनकी मदर लैंग्वेज जर्मन थी और बाद में उन्होंने इतालवी और अंग्रेजी भी सीखी। कई खोजें, कई पुरस्कार लेने, जिसमें 1921 में नोबेल भी शामिल था और इतिहास में शुमार होने के बाद 18 अप्रैल 1955 को अमेरिका के प्रिंसटन में आइंस्टीन का निधन हो गया।

आइंस्टीन का बचपन तंगहाली में बीता। मां पाओलीन घर-घर जाकर काम करती थीं। बचपन में अल्बर्ट ने मां को टीचर का दिया हुआ एक लैटर थमाते हुए कहा कि टीचर ने यह पत्र आपको देने के लिए कहा है। पाओलीन ने जैसे ही वह पत्र पढ़ा, वे मन ही मन मुस्कुराने लगी। मां को मुस्कुराता देख बेटे ने खुशी का कारण पूछा, तो मां ने बड़े प्यार से बेटे के सिर पर अपनी ममता का हाथ फेरते हुए कहा, बेटा इसमें लिखा है कि आपका बेटा क्लास में सबसे होशियार है। हमारे पास ऐसे टीचर नहीं हैं, जो आपके बच्चे को पढ़ा सकें। इसलिए आप इसका एडमिशन किसी और स्कूल में करवा दीजिए। लड़का यह सुनकर बहुत खुश हो गया और मन लगाकर पढ़ने लगा। मां ने बेटे का एडमिशन दूसरे स्कूल में करवा दिया। अल्बर्ट को तो कुछ और ही होना था, वे अल्बर्ट आइंस्टीन द ग्रेटेस्ट साइंटिस्ट हो गए।  

वक्त गुजरता गया और एक दिन अल्बर्ट की मां का भी निधन हो गया। मां के जाने के बाद जब एक दिन आइंस्टीन ने मां की अलमारी खोली तो पाया उसमें उनके टीचर का लिखा हुआ वहीं पत्र था, जो उन्होंने कभी उस छोटे से बच्चे को उसकी मां को देने के लिए कहा था। आइंस्टीन ने लैटर खोला और पढ़ने लगे। उसमें लिखा था कि आपको ये बताते हुए हमे बहुत दुख है कि आपका बेटा पढ़ाई-लिखाई में बहुत ही कमजोर है। जिस तरह से इसकी उम्र बढ़ रही है, उस तरह से इसकी बुद्धि का विकास नहीं हो रहा। इसलिए हम इसे स्कूल से निकाल रहे हैं। आप इसका एडमिशन किसी दूसरे स्कूल में करवा दीजिए, नहीं तो घर में इसे पढ़ाइए। यकीन मानिए, हर बच्चा स्पेशल है, हम ये समझते हैं, लेकिन ये मान नहीं मान पाते।

आइंस्टीन विलक्षण थे। सिर पर बड़े-बड़े बाल, शरीर पर घिसी हुई चमड़े की जैकेट, बिना सस्पेंडर की पैंट, ताकि खोलते समय ना पैंट ढीला करना पड़े, ना पहनते समय कसना पड़े। वे बिना मोजे के जूते पहनते थे। उनका तर्क था कि मोजे अंगूठे के पास से फट जाते हैं, इससे बार-बार दिक्कत होती है। आइंस्टीन 10 घंटे सोते थे। वे कहते थे कि इससे कम सोने में कम्फर्ट फील नहीं होता। एक्सपर्ट्स का कहना है कि सोने के दौरान आपका दिमाग काफी सारी चीजों की जमावट करता है। संभवत: आइंस्टीन के सिद्धांत, थ्योरम्स इसी वजह से बने हों। लेकिन इस बारे में कुछ भी पुख्ता रूप से नहीं है। आइंस्टीन ने 1933 में जर्मनी छोड़ दिया था। इस दौरान उनके देश जर्मनी में नाजीवाद बढ़ रहा था और हिटलर यहूदियों पर जुल्म ढाने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ रहा था। जर्मनी के बाद आइंस्टीन ने अमेरिकी में शरण ली।

अब बात आइंस्टीन के खुशी के फॉर्मूले की। 2017 में यह फॉर्मूला यरुशलम में नीलामी में 10 करोड़ 23 लाख रुपए में बिका था। ये नोट आइंस्टीन ने 1922 में टोक्यो में एक वेटर को बतौर टिप दिया था।

आइंस्टीन को जब पता चला कि उन्हें नोबेल मिलने वाला है तो उस समय वे जापान में थे। उन्हें कुछ देर पहले ही बताया गया था कि उन्होंने नोबेल पुरस्कार जीता है। ये संदेश उन तक पहुंचाने वाले को आइंस्टीन ने एक नोट भेंट किया और कहा कि भविष्य में ये कागज का टुकड़ा बेशकीमती हो सकता है। उन्होंने अपने नोट में लिखा था कि जीवन में मंजिल हासिल करने के बाद भी खुशी मिल जाए, इसकी कोई गांरटी नहीं है। आइंस्टीन जापान में लेक्चर देने गए हुए थे। जब कूरियर उनके कमरे में संदेश लेकर आया तो उनके पास उसे बतौर इनाम देने के लिए कैश नहीं था। इसी वजह से उन्होंने संदेशवाहक को टोक्यो के इंपीरियल होटल के पैड पर लिखा नोट दे दिया।

उस नोट में जर्मन भाषा में एक वाक्य लिखा हुआ था - कामयाबी और उसके साथ आने वाली बेचैनी के बजाय एक शांत और विनम्र जीवन आपको अधिक खुशी देगा। करीब इसी दौरान के एक दूसरे नोट में उन्होंने लिखा - जहां चाह, वहां राह। ये नोट करीब 2 करोड़ रुपए में नीलाम हुआ। नीलामी करने वाली कंपनी ने कहा कि इन दोनों नोट्स की कीमत अनुमान से कहीं ज्यादा है। कंपनी ने कहा था कि नोट का एक खरीदार यूरोपीय है और वो अपनी पहचान नहीं बताना चाहता। ये भी बताया गया था कि नोट को बेचने वाला आइंस्टीन तक संदेश पहुंचाने वाले व्यक्ति का भतीजा है।

बचपन में अल्पबुद्धि लगने वाला बच्चे अल्बर्ट ने एक दिन दुनिया को मुट्ठी में कर लिया। आइंस्टीन ने दो शादियां की थीं, कई महिलाओं से उनके संबंध थे। उन्हें समझ पाना आज भी गूढ़ पहेली जैसा ही है। जब आइंस्टीन नोबेल लेने गए तो अवॉर्ड लेने के बाद उन्होंने सामने बैठे लोगों कहा कि फिलहाल आप लोगों के लिए मेरे पास बताने के लिए कुछ नहीं है और इतना कहकर वे चल दिए। जब वे अपनी जगह पर जा रहे थे तो उन्होंने लोगों के चेहरे के भाव पढ़े। वो फिर मंच पर आए और एक लाइन बोले कि जब मेरे पास आपके लिए बताने के लिए कुछ होगा, मैं आपको बताने जरूर आऊंगा। इतना कहकर वो फिर अपनी जगह चले गए। बस यही थी आज की कहानी...