यदि आप किसी बैंक से जरूरत पड़ने पर कोई पर्सनल (Personal), ऑटोमोबाइल या हाउसिंग लोन (Automobile or Housing Loan) लेते हैं और किसी कारण से लगातार तीन महीने तक इसकी किस्त (इंस्टालमेंट, Installment) नहीं चुका पाते हैं तो बैंक मैनेजमेंट आपके अकाउंट को एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट, NPA) घोषित कर कानूनी कार्रवाई करने में देर नहीं लगाता। ऐसे मामलों में कई बार नौबत डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल, इसके बाद कुर्की और नीलामी तक पहुंच जाती है। लेकिन क्या आपको पता है कि देश के बड़े बैंकों ने फाइनेंशियल ईयर (2020-21) में 2 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा के कर्ज को बैड लोन (Bad Loan) करार देकर उन्हें बट्टे खाते में डाल दिया है यानी संबंधित कर्जदारों से लोन की वसूली स्थगित कर उन्हें कर्ज ली गई राशि लौटाने से छूट दे दी है। केंद्र सरकार ने बैंकों से राहत पाने वाले इन कर्जदारों के नामों का खुलासा तो नहीं किया है, लेकिन इनमें से ज्यादातर कर्जदार बड़े उद्योगपति (Big Businessmen) हैं।
मोदी सरकार के राज में 10.72 लाख करोड़ के लोन माफ
आप यह जानकर चौंक जाएंगे कि देश के प्रमुख बैंकों ने पिछले 10 सालों में करीब 11 लाख 68 हजार 95 करोड़ रुपए के लोन एनपीए घोषित कर बट्टे खाते में डाले हैं। इनमें से अधिकांश पिछले 7 साल यानी वर्ष 2014 के बाद बट्टेखाते में डाले गए हैं। आंखें खोल देने वाली यह जानकारी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने हाल ही में अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस को एक आरटीआई (RTI) के जवाब में दी है। इस बारे में इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 10 साल में बट्टे खाते में डाले गए 11 लाख 68 हजार रुपए के लोन में से 10.72 लाख करोड़ रुपए वित्तीय वर्ष 2014-15 के बाद के हैं जब केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के नेतृत्व में एनडीए (NDA) की सरकार ने सत्ता संभाली थी।
कर्ज से राहत पाने वाले उद्योगपतियों के नामों का खुलासा नहीं
आमतौर पर बैंक एक बैड लोन को एनपीए के रूप में तब बट्टे खाते (राइट ऑफ, Right Off) में डालता हैं जब कर्ज की वसूली के सभी विकल्प खत्म हो जाते हैं। कर्जदार से लोन की वसूली की संभावना बहुत कम हो जाती है। हालांकि, बैंकों को राइट-ऑफ के बाद भी वसूली के प्रयास जारी रखने होते हैं। लेकिन जब कोई लोन लेने वाला व्यक्ति या संस्था लगातार तीन तिमाहियों से अधिक समय तक किस्तें नहीं जमा नहीं करता तो लोन की उस राशि को बट्टे खाते में डाला जा सकता है। हालांकि बैंकों ने उन कर्जदार उद्योगपतियों के नामों का खुलासा नहीं किया, जिनकी लोन राशि अब तक बट्टे खाते में डाली गई।
तीन साल में 2 लाख करोड़ से ज्यादा के लोन बट्टे खाते में
RBI के मुताबिक, बैंकों ने वित्त वर्ष 2019-20 में 2 लाख 34 हजार 70 करोड़ रुपए, वर्ष 2018-19 में 2 लाख 36 हजार 265 करोड़ रुपए , 2017-18 में 1 लाख 61 हजार 328 करोड़ रुपए और 2016-17 में 1 लाख 08 लाख 373 हजार करोड़ रुपये बट्टे खाते में डाले हैं। पिछले तीन सालों से 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक की रकम बट्टे खाते में डाली गयी है। कर्ज की यह बड़ी बकाया रकम उस दौर में बट्टे खाते में डाली है, जब आरबीआई (RBI) ने कोरोना आपदा (Corona Affected) से प्रभावित अर्थव्यवस्था (Economy) में बैंकों को कर्जदारों की राहत के लिए लोन की वसूली स्थगित करने की मंजूरी दी।
बैलेंस शीट बेहतर दिखाने के लिए बैड लोन बट्टे खाते में डालते हैं बैंक
एक राष्ट्रीयकृत बैंक के एक अधिकारी मुताबिक ज्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (PSB) अपनी लोन बुक और बैलेंस शीट को बेहतर बनाने और दिखाने के लिए बैड लोन को बट्टे खाते में डालते हैं। दरअसल, एक बार जब कोई लोन बट्टे खाते में डाला जाता है तो उसे एनपीए बुक से हटा दिया जाता है। यह बैंक को एनपीए कम करने और लोन बेनिफिट हासिल करने में मदद करता है। लेकिन लोन के बारे में आरबीआई के मास्टर सर्कुलर के अनुसार, बैंक सार्वजनिक जमा (पब्लिक डिपॉजिट) के संरक्षक हैं और इसलिए उनसे लोन राशि के रूप अपनी संपत्ति (एसेट) के मूल्य की रक्षा के लिए सभी प्रयास करने की अपेक्षा की जाती है। आरबीआई का कहना है कि बैंकों को किसी भी लोन अकाउंट को पूरी तरह या आंशिक रूप से बट्टे खाते में डालने से पहले वसूली करने के सभी उपलब्ध विकल्प अपनाना जरूरी है।
बड़े बकायादारों के कर्ज बट्टेखाते में लेकिन छोटों को राहत नहीं
पिछले कुछ सालों में यह देखा जा रहा है कि कुछ बैंक लोन के खातों को तकनीकी आधार पर बट्टे खाते में डालने का सहारा ले रहे हैं। इससे बकाया कर्ज की वसूली के लिए प्रोत्साहन और प्रयास कम हो जाते हैं। कायदे से कर्ज की बकाया राशि को आंशिक और तकनीकी बट्टे खाते में डालने वाले बैंकों को इसे मानक परिसंपत्ति के रूप में नहीं दिखाना चाहिए। इसमें ज्यादा पारदर्शिता लाने के लिए बैंकों को अपनी सालाना फाइनेंशियल रिपोर्ट में बट्टे खाते में डाली जाने वाली रकम का पूरा और अलग ब्योरा देना चाहिए। हालांकि बैंकिंग एक्सपर्ट का कहना है कि अभी इस प्रक्रिया में कोई पारदर्शिता (Trans) नहीं है। आमतौर पर लोन के बड़े डिफॉल्टरों के लोन बट्टे खाते में डाल दिए जाते हैं जबकि छोटी रकम और कम अवधि के कर्जदारों को बैंकों से कोई राहत नहीं मिलती है।
महज तकनीकी आधार पर लोन माफ करना ठीक नहीं
बैंकिंग मामलों के जानकार एक सूत्र के मुताबिक बट्टे खाते में डाले गए कर्जों की वसूली 15-20% से ज्यादा नहीं होती। नियमानुसार किसी भी लोन का राइट-ऑफ छोटा होना चाहिए। इसे कर्जदार पर कुछ वास्तविक संकट होने के समय ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए। आरबीआई के एक पूर्व अधिकारी के मुताबिक, किसी भी लोन का तकनीकी राइट-ऑफ बैंकिंग सिस्टम में गैर-पारदर्शिता पैदा करता है और क्रेडिट जोखिम प्रबंधन प्रणाली को खत्म कर देता है। इससे बैंकिंग सिस्टम में सभी प्रकार के गलत कामों को बढ़ावा मिलता है। वे स्पष्ट करते हैं कि लोन राशि के अगेंस्ट मूर्त संपत्ति (गिरवी रखी गई संपत्ति) द्वारा समर्थित कोई भी संपत्ति कभी भी बट्टे खाते में नहीं डाली जाती।
आम कर्जदाता को मिलती है बैंक से प्रताड़ना
तो समझे आप बैंक कैसे एक तरफ अमीर और बड़े उद्योगपतियों के लाखों करोड़ों रुपए के लोन टेक्नीकल ग्राउंड पर राइट ऑफ यानी माफ कर देते हैं। दूसरी तरफ छोटे कर्जदार के रूप में जब कोई आम नागरिक अपने क्रेडिट कार्ड, होम लोन, कार लोन या फिर हाउस लोन की ईएमआई (EMI) भरने में चूक जाता है तो बैंक मैनेजमेंट उसके खिलाफ एक्शन लेने में देर नहीं लगाते। प्राइवेट सेक्टर के बैंक तो लोन की एक-दो ईएमआई डिफाल्ट होते ही अपने रिकवरी एजेंट पीछे लगा देते हैं। वे कई बार कर्जदार को इस हद तक प्रताड़ित करते हैं कि वे कई बार आत्मघाती कदम तक उठा लेते हैं।
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