JAGDALPUR: गोंचा पर्व में फिर गूंजेंगे तुपकी के पुराने सुर, नए जमाने की तुपकी पर आयोजकों ने जताया ऐतराज

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JAGDALPUR: गोंचा पर्व में फिर गूंजेंगे तुपकी के पुराने सुर, नए जमाने की तुपकी पर आयोजकों ने जताया ऐतराज

JAGDALPUR: छत्तीसगढ़ के बस्तर में प्रसिद्ध गोंचा पर्व (goncha parv) की तैयारियां तेज होती जा रही हैं। 30 जून को पर्व से जुड़ा नेत्रोत्सव विधान (netrotsav vidhan) पूरा होगा। 1 जुलाई को रथ यात्रा (rath yatra) निकाली जाएगी। इसी मौके पर बांस से बनी तुपकी (tupki) से भगवान को सलामी देने की परंपरा भी पूरी होगी। तुपकी से सलामी देने की प्रथा लगभग 615 साल पुरानी है। बांस की  बनी तुपकी की जगह प्लास्टिक से बनी तुपकी का भी उपयोग होने लगा है। लेकिन अब आरण्यक ब्राम्हण समाज ने माउजर नुमा प्लास्टिक की तुपकी को बंद करने की मांग के साथ पुरानी तुपकी को चलन में लाने की मांग की है। 

आयोजकों के मुताबिक प्लास्टिक का उपयोग पर्व के दौरान होना दुख की बात है। इसी वजह से बांस की तुपकी का उपयोग कम देखने को मिल रहा है, यह परंपरा के खिलाफ है। इसलिए जिला प्रशासन से प्लास्टिक से बनी तुपकी को बैन करने की मांग भी की गई है। आयोजकों के मुताबिक बस्तर में ही भगवान जगन्नाथ को बांस की बनी तुपकी और पेंग से सलामी दी जाती है। जगन्नाथ पूरी में भी ऐसी सलामी नहीं दी जाती। यह बस्तर की एक अनूठी प्रथा है और इसे जीवित रखना बेहद जरूरी है।



1 जुलाई को रथ यात्रा



27 दिन चलने वाले गोंचा पर्व के लिए रथ निर्माण का काम तेजी से चल रहा है। एक जुलाई को भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र को विराजित कर परिक्रमा करवाई जाएगी। यह रथ 20 फीट लंबा और करीब 14 फीट चौड़ा होगा। साल की लकड़ी से रथ बनाया जा रहा है। परंपरा अनुसार बेड़ा उमरगांव के ग्रामीण ही रथ बनाने का काम करते हैं।



इस दिन होंगे यह आयोजन



•    30 जून को नेतृत्व पूजा विधान

•    1 जुलाई को गोंचा रथ यात्रा पूजा विधान

•    4 जुलाई को अखंड रामायण का पाठ 

•    5 जुलाई को हेरापंचमी पूजा विधान 

•    6 जुलाई को निःशुल्क सामूहिक उपनयन संस्कार और छप्पन भोग का आयोजन 

•    9 जुलाई को बाहुड़ा गोंचा पूजा विधान 

•    10 जुलाई को देवशयनी पूजा विधान 


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