BASTAR: गोंचा महापर्व की तैयारियां जोर शोर से शुरू हो चुकी हैं। ये विश्वप्रसिद्ध पर्व बस्तर में मनाया जाना वाला दूसरा सबसे बड़ा पर्व है। 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध दशहरा पर्व यहां सबसे ज्यादा धूम धाम से मनाया जाता है। उसके बाद गोंचा पर्व का नाम ही आता है। करीब 27 दिनों तक चलने वाले इस पर्व में अद्भुत रस्में दिखाई देती हैं। जिन्हे देखने के लिए सिर्फ प्रदेश से ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों से और यहां तक की विदेशों से भी बड़ी संख्या में सैलानी बस्तर पहुंचते हैं।
25 फिट ऊंचा रथ
इस पर्व का मुख्य आकर्षण होता है रथ। जिसे बनाने की तैयारी बस्तर के आदिवासियों ने शुरू कर दी है। जगदलपुर के सिरहासार भवन में ग्रामीणों के द्वारा लकड़ी से करीब 25 फीट ऊंचा रथ तैयार किया जा रहा है। इस रथ में भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा और बलभद्र की लकड़ी से बनी प्रतिमा को विराजित किया जाएगा। इसके बाद उन्हें पूरे शहर में भ्रमण करवाया जाएगा, इसे ही रथयात्रा कहा जाता है।
सदियों पुरानी है परंपरा
बस्तर में 600 से भी ज्यादा साल से गोंचा महापर्व मनाया जा रहा है। सदियों से चली आ रही इस परंपरा को आज भी बस्तरवासी बड़े धूमधाम से निभाते हैं। परंपरा यही है कि बस्तर गोंचा पर्व के नए रथ का निर्माण बड़े उमरगांव के आदिवासी कारीगरों ही करेंगे। कारीगर करीब 15 दिनों में रथ को पूरी तरह से तैयार कर देते हैं और उसके बाद इसकी साज-सज्जा की जाती है। बस्तर में रियासत काल से ही रथ यात्रा का बड़ा महत्व है। बस्तर के इतिहासकारों का कहना है कि बस्तर के तत्कालीन महाराजा को रथपति की उपाधि जगन्नाथ पुरी के महाराजा ने ही दी थी, इसलिए बस्तर में गोंचा पर्व के दौरान धूमधाम से रथ यात्रा निकाली जाती है।
एक जुलाई से शुरू होगी रथयात्रा
बस्तर में इस पर्व की सारी तैयारियां पूरी हो गईं हैं। 30 जून को नेत्रोत्सव पूजा विधान और 1 जुलाई को गोंचा रथ यात्रा पूजा विधान होगा। जिसकी तैयारियां तकरीबन पूरी हो चुकी हैं। गोंचा पर्व विधान में नए रथ सहित तीन रथों पर भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा और बलभद्र स्वामी के 22 विग्रहों को रथ पर बिठा कर शहर में घुमाया जाएगा। 9 दिनों तक सिरासार भवन में भगवान के सभी विग्रहों को स्थापित किया जाएगा। यहीं पर अलग अलग तरह की पारंपरिक रस्में पूरी होंगी।