CG सीएम बघेल का “बोरे-बासी” हिट, भाजपा ने पूछा -इससे श्रमिकों का कल्याण कैसे

author-image
Yagyawalkya Mishra
एडिट
New Update
CG सीएम बघेल का “बोरे-बासी” हिट, भाजपा ने पूछा -इससे श्रमिकों का कल्याण कैसे

Raipur। मुख्यमंत्री बघेल ने श्रमिक दिवस पर प्रदेश से आह्वान किया  कि आज बोरे-बासी खाया जाए। श्रमिक दिवस के मौक़े के लिए दिए संदेश में उन्होंने कहा है कि, पारंपरिक रुप से मेहनतकशों के दैनिक भोजन का हिस्सा बोरे-बासी रहा है।बोरे-बासी में सारे पोषक तत्व होते हैं, गर्मी के दिनों में शरीर को ठंडा रखने के साथ साथ पाचन शक्ति के लिए भी यह रामबाण है।छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री बघेल का यह आह्वान ट्रेंड कर गया है और आईएएस आईपीएस समेत कई बोरे बासी खाते फ़ोटो लगातार सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं। कई संस्थानों ने अपने कर्मचारियों को और उनके परिजनों को आज बोरे बासी खिलाने की घोषणा की है। जोश खरोश और चेहरा चमकाने के फेर में बोरा-बासी को चम्मच से खाते की तस्वीरें भी चर्चा का विषय बन गई है।लेकिन भाजपा ने सवाल उठाया है कि, इस  इस “बोरे-बासी” को खाने से श्रमिकों ख़ासकर पलायन करने वाले श्रमिकों समेत ऐसे वर्ग के हालत पर कौन सा फर्क पडेगा।इसे खाने से उनकी स्थिति कैसे सुधर जाएगी।



छत्तीसगढ़िया अस्मिता का चिर परिचित दांव



  श्रमिक दिवस के इतिहास पर जाएँ तो इसका संदर्भ 1 मई 1986 के उस अमेरिका के आंदोलन से जुड़ता है जबकि काम के घंटे तय करने की माँग लिए कई मज़दूर सड़कों पर आ गए और पुलिस ने गोली चलाई, कई मज़दूरों की जान चली गई और कई सैकड़ा घायल हो गए। इस आंदोलन के तीन साल बाद याने 1889 में यह तय हुआ कि हर मज़दूर से केवल आठ घंटे ही काम लिया जाएगा। लेकिन छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री बघेल ने बड़ी कुशलता से इस श्रमिक दिवस को छत्तीसगढ़ी अभिमान से जोड़ने की क़वायद कर दी। छत्तीसगढ़ी संस्कृति को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की यह जुगत कोई नई नहीं है। मुख्यमंत्री बघेल और उनके समर्थक इसे पुरज़ोर तरीक़े से स्थापित करने में कोई कमी नहीं रखते कि, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ी संस्कृति के प्रति हद तक समर्पित हैं।यह तथ्य भी है कि मुख्यमंत्री निवास में हर वर्ष कुछ छत्तीसगढ़ी पर्व पूरे उल्लास से मनाए जाते भी हैं। खुद को छत्तीसगढ़ी अस्मिता के प्रति बेहद संवेदनशील साबित करने के अपने सियासी फ़ायदे हैं।इस बार छत्तीसगढ़ के भोजन में शामिल ख़ासकर जिसका उपयोग गर्मी में होता है उसका ज़िक्र भी उसी चिर परिचित छत्तीसगढ़ी संस्कृति के समर्पण के रुप में देखा जा रहा है।



क्या है बोरे-बासी



  जिस बोरे बासी के भोजन का ज़िक्र मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने किया है, वह दो अलग अलग प्रकृति के हैं।बोरे से अर्थ है कि तत्काल पके भात को पानी में डूबाकर खाना है, जबकि बासी में एक पूरी रात या दिन भर भात को पानी में डूबाकर रखा जाता है।छत्तीसगढ़ में प्याज़ खाने की परंपरा है, इसे स्थानीय बोली में गोंदली भी कहते हैं, गर्मी के मौसम में छत्तीसगढ़ में भाजी का उत्पादन बहुत होता है।बोरे बासी के साथ गोंदली,भाजी का इसलिए उल्लेख होता है।बासी एक प्रकार से डाईजेशन को बेहतर रखता है और  गर्मी के दिनों में शरीर को शीतल रखता है।गैस या क़ब्ज़ की समस्या वालों के लिए बासी कारगर औषधि है यह दावा भी होता है।किसान और श्रमिक बाहुल्यता वाले इस प्रदेश में गर्मी में काम प्रभावित ना हो और शरीर स्वस्थ्य रहे इस ने इस बोरे-बासी का अविष्कार किया। ऐसा भी नहीं है कि यह केवल छत्तीसगढ़ के भोजन का हिस्सा है, यह बिलकुल सटे उड़ीसा के भोजन परंपरा का भी हिस्सा है।उड़ीसा में बीस मार्च को जो पखाल दिवस होता है वह पखाल बोरे बासी ही है।दोनों ही राज्यों में समानता श्रम शक्ति, कृषक और चावल उत्पादकता की है।अब यह सुनिश्चित करना नया मसला हो जाएगा कि, भोजन की यह परंपरा उड़ीसा से छत्तीसगढ़ में आई या छत्तीसगढ़ से उड़ीसा गई।बहरहाल यह खाने की परंपरा छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाकों में सदियों से है।



छत्तीसगढ़ी संस्कृति के मुद्दे पर भाजपा फिर चित्त



   बतौर छत्तीसगढ़ी भोजन बोरे-बासी को श्रमिक दिवस पर समर्पित करते हुए उसे 1 मई के खाने में शामिल करने के आह्वान पर भाजपा एक बार फिर चित्त हो गई है। पंद्रह वर्ष के शासनकाल में भाजपा के पास अवसरों की कमी नहीं थी लेकिन छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी संस्कृति से लेकर खानपान को लेकर जिस अंदाज में मुख्यमंत्री बघेल सधी चाल चलते हैं, उसने भाजपा के सामने यह चुनौती खड़ी की है कि आख़िर इसकी काट लाएँ तो लाएँ कैसे।पलायन जैसे मुद्दे को छेड़ने पर भाजपा खुद घिरेगी। काम की तलाश में या कि बेहतर मज़दूरी के लिए दिगर प्रदेशों का रुख़ करने वालों के सवालों को लेकर सरकार में रहते हुए भाजपा ने पलायन को हमेशा ख़ारिज किया। लेकिन कोरोना काल में जब श्रमिकों की वापसी हुई तो सरकार ने सब के आँकड़े दर्ज किए और वो आँकड़ा पाँच लाख पार कर गया था।कुशल अकुशल श्रमिक  के बतौर जाने वाले छत्तीसगढ़ के लोगों की मौजुदगी ना केवल यूपी के ईंटभट्टो में है बल्कि लेह लद्दाख से लेकर हिमाचल असम आंध्र प्रदेश से लेकर गुजरात तक में है।



विधानसभा में उठा था मसला



   पलायन को लेकर चर्चा छत्तीसगढ़ की विधानसभा के बजट सत्र में 21 मार्च को प्रश्नकाल के पहले सवाल में हुई थी। यह सवाल कांग्रेस विधायक धनेंद्र साहू का था, जिसमें उन्होंने केवल महासमुंद ज़िले से पलायन का आँकड़ा माँगा था। राज्य सरकार ने तब जवाब में केवल महासमुंद से तीस हज़ार का आँकड़ा बताया था। विधायक धनेंद्र साहू ने इस जवाब पर आपत्ति की और सदन में कहा कि, वास्तविक संख्या इससे बहुत ज़्यादा है। सदन के रिकॉर्ड में दर्ज है कि विधायक धनेंद्र साहू ने इस आंकडे पर आपत्ति की थी और आशंका जताई थी कि वास्तविक आंकडे इससे कहीं ज़्यादा है। इस बहस में सरकार की ओर से दावा किया गया कि, सरकार मनरेगा जैसी योजनाओं के ज़रिए काम दिला रही है।इसके साथ स्कील डेवलपमेंट के साथ रोज़गार से जोड़ने के काम जारी हैं। मनरेगा के दावे पर विधायक धनेंद्र साहू ने यह कहते हुए सरकार को ही घेर दिया कि केवल 22 दिन काम देकर यह कहें कि हमने पलायन रोक दिया यह सही नहीं है।



विधानसभा अध्यक्ष महंत ने पलायन को कलंक बताया था



  इस चर्चा के दौरान विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत ने सदन में कहा था



“मंत्री जी,पलायन जो है वह छत्तीसगढ़ के माथे पर कलंक है, और आप हम सब इससे भली भाँति परिचित हैं।महासमुंद जांजगीर बिलासपुर मुंगेली इधर से अधिकतर लोग पलायन करते हैं, तो जैसा कि विधायक जी चाहते हैं, ऐसी कार्ययोजना बनाई जाए कि इस कलंक को समाप्त करें और पलायन को रोकें, मेरा यह निर्देश है। आप मंत्रीमंडल में बात कर लीजिएगा।”



ठोस प्रयास नही दिखते



 पलायन कर दूसरे प्रदेशों में श्रमिक बनने वाले छत्तीसगढ़ के लोगों को लेकर कई बार अप्रिय खबरें भी मीडिया की सुर्ख़ियाँ बनती हैं।जिस पर प्रशासन की तत्परता कई बार सराहना दिलाती है तो कई बार देरी भी होती है।इसके बावजूद कि श्रमिक बन कर दूसरे प्रदेश जाने वालों की संख्या चौंकाने वाली है, सरकार को अपने नागरिकों को इसी प्रदेश में उनके श्रम और कौशल के उपयोग और उसके मूल्य की व्यवस्था करने में जो प्रगति करनी है वह दिखाई नहीं देती।



 भाजपा ने पूछा सवाल



   नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने सवाल किया है कि बोरा बासी खाने से श्रमिकों की स्थिति में कौन सा और कैसे बदलाव होगा,इससे मजदूरों की हालत में कैसे तरक्की होगी, श्रमिक दिवस पर श्रम का सम्मान यदि सुरक्षित नही है तो इस बोरा बासी खाने से क्या इनकी समस्याएँ हल हो जाएँगी?  किसान मोर्चा प्रदेश उपाध्यक्ष गौरीशंकर श्रीवास ने कहा है कि, मुख्यमंत्री जी को बधाई कि उन्होंने चिर परिचित सदियों की परंपरा को जिससे गर्मी में शरीर शीतल रहता है उसे ट्रेंड बनाने की क़वायद की है।लेकिन संविदा कर्मचारी, मनरेगा के संविदा कर्मचारी ऐसे कई वर्ग हैं जो श्रम करते हैं और सड़कों पर है,आंदोलित है। इनकी आर्थिक स्थिति ना तो बोरा की है ना बासी की, इनका कैसे होगा।


भूपेश बघेल Bhupesh Baghel छत्तीसगढ़ Chhattisgarh BJP भाजपा Raipur CM धरमलाल कौशिक मुख्यमंत्री dharamlal Koushik hit बोरे बासी BoreBasi gauri shankar shrivas