Bilaspur: तबादले के खिलाफ याचिका दायर करने वाले पुलिस इंस्पेक्टर्स को बिलासपुर स्थित हाईकोर्ट ने बड़ी राहत दी है। हाईकोर्ट ने इन इंस्पेक्टर्स के तबादला आदेश पर फिलहाल रोक लगा दी है। इतना ही हाई कोर्ट ने इस मामले में आला अधिकारियों को नोटिस जारी कर इस आदेश पर जवाब भी मांगा है।
इन्होंने लगाई थी याचिका
तबादले के खिलाफ ये याचिका इंस्पेक्टर विजय कुमार चेलक, इंस्पेक्टर मुकेश सोम और इंस्पेक्टर राकेश खुटेश्वर ने लगाई थी। इन निरीक्षकों का केस अधिवक्ता अभिषेक पांडेय और लक्ष्मीन कश्यप संभाल रहे थे। जिनके जरिए याचिका पेश की गई थी कि छत्तीसगढ़ पुलिस स्थापना बोर्ड के निर्णायनुसार पुलिस महानिदेशक रायपुर ने बीती 26 अप्रैल 2022 को इन इंस्पेक्टर्स का तबादला बस्तर और नारायणपुर में कर दिया है।
क्यों लगाई याचिका?
अधिवक्ता अभिषेक पांडेय ने जो जानकारी दी उसके मुताबिक सभी याचिकाकर्ता अनुसूचित जिले में पांच साल से ज्यादा समय तक अपनी सेवाएँ दे चुके हैं। इसके बावजूद सभी को फिर से अनुसूचित जिलों में ही तबादला दिया गया है। जबकि ऐसे साल 2004 की बैच और 2008 की बैच के ऐसे सौ से ज्यादा इंस्पेक्टर्स हैं जिन्हें अब तक मैदानी जिलों में ही पदस्थापना मिलती रही है। इस दलील के साथ वकील ने मजबूती से निरीक्षकों का पक्ष अदालत में रखा। जिसके बाद मामले की सुनाई कर रही जस्टिस दीपक तिवारी की सिंगल बेंच ने आदेश पर स्टे का फैसला सुनाया।
आसान भाषा में समझें
इस याचिका और आदेश के मायने आसान भाषा में कुछ इस तरह समझिए। छत्तीसगढ़ शासन के सामान्य प्रशासन विभाग यानी जीएडी ने तीन जून साल 2015 को एक सर्कुलर जारी किया था। इस सर्कुलर के पैरा 13 में दिए गए प्रावधान के मुताबिक कोई सरकारी कर्मचारी दो साल तक घोर अनुसूचित जिले और उसके बाद तीन साल अनुसूचित जिले में काम कर लेता है तो उसके बाद उसे गैर अनुसूचित जिले में पदस्थापना मिलेगी। ये सर्कुलर सभी सरकारी विभागों पर लागू होता है। जबकि इन पुलिस वालों का तबादला फिर से अनुसूचित जिलों में ही किया जा रहा था। जिसके खिलाफ अधिवक्ता पांडेय ने 3 जून 2015 के उल्लंघन की दलील दी।
क्या हैं अनुसूचित जिले?
छत्तीसगढ़ में अनुसूचित और घोर अनुसूचित जिले नक्सल प्रभावित इलाकों के अनुसार तय किए गए हैं। जहां नक्सलियों का खतरा ज्यादा है उन्हें इस अनुसूची में रखा गया है। जबकि सामान्य इलाकों को गैर अनुसूचित जिले कहा जाता है।