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KORBA. मशहूर लेखक उदय प्रकाश का साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त उपन्यास 'मोहनदास' है। इसी नाम से फिल्म बनी है। इसका एक पात्र है बिसनाथ। वह फर्जी दस्तावेजों के जरिए मोहनदास बनकर कोयला खदान में नौकरी करते रहता है। कुछ इसी तरह का मामला कोरबा में सामने आया है। यहां एक नहीं बल्कि चार बिसनाथ असल वारिसों का हक छीनकर पिछले 27 साल से नौकरी कर वेतन उठा रहे थे। मामला सामने आने के बाद प्रबंधन की शिकायत पर पुलिस ने धोखाधड़ी का केस दर्ज कर लिया है।
दरअसल, साल 1994-95 के आसपास एसईसीएल (साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड) की दीपका परियोजना में जमीन का अधिग्रहण किया गया था। तब कटघोरा तहसील के सिरकी निवासी कलेश्वर दिव्या की 16.45 एकड़ जमीन भी अधिग्रहित की गई। इस बीच कलेश्वर अपने परिवार को लेकर बालको नगर के भदरापारा आ गया और वहीं बस गया। बाद में उसकी मौत हो गई। तब उनके बच्चे छोटे थे। अब जब वे बालिग हुए तो अधिग्रहित की गई जमीन के एवज में नौकरी के लिए एसईसीएल प्रबंधन को आवेदन किया।
दस्तावेजों की जांच के बाद उनकी जमीन के एवज में कोई और कर रहा नौकरी
दस्तावेजों की जांच की गई तो पता चला कि उक्त जमीन के एवज में नौकरी पहले ही हासिल कर ली गई है। यह भी बताया गया कि कलेश्वर दिव्या के बेटे के तौर पर ही उनकी नौकरी लगी है। यह सुनते ही असल वारिसों के होश उड़ गए। साथ ही एसईसीएल प्रबंधन के अफसर भी अचरज में पड़ गए। दरअसल, जमीन के एवज में एक नहीं बल्कि चार लोग नौकरी कर रहे थे। इसमें सिरकी निवासी बृजलाल भारद्वाज, मनहरण लाल नारंग, प्रेमनगर निवासी मधुकर प्रसाद और चाकाबूड़ा निवासी अवधेश कुमार भारद्वाज के फर्जी पुत्र बनकर 1995 से ही नौकरी करने की बात सामने आई। चारों ने कलेश्वर के खाते के आधार पर फर्जी दस्तावेज तैयार कर नौकरी हासिल की थी। मामले की रिपोर्ट कलेश्वर के बड़े पुत्र आकाश कुमार ने थाने में की। इस पर पुलिस ने धोखाधड़ी का अपराध दर्ज कर आरोपियों की तलाश शुरू कर दी है।
असल मोहनदास की तरह न हो हालात
मोहनदास उपन्यास में निम्न जाति का मोहनदास उच्च शिक्षा हासिल कर लेता है और नौकरी की तलाश में दर-दर भटकता है। इस दौरान कोयला खदान में नौकरी के लिए भी आवेदन देता है और उसे बाद में बुलाया जाता है। बाद में उसे पता चलता है कि बिसनाथ नाम का व्यक्ति मोहनदास बनकर खदान में नौकरी कर रहा है। यह उपन्यास खुद को मोहनदास साबित करने के उसके संघर्ष की कहानी है, जिसमें मोहनदास बना बिसनाथ कई आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने लगता है और अंत में मोहनदास को ही स्वीकारना पड़ता है कि वह मोहनदास नहीं है। अब कोरबा में जो मामला सामने आया है उसमें कलेश्वर के पुत्रों को भी समझ नहीं आ रहा है कि उनके साथ न्याय हो पाएगा या नहीं। सवाल ये भी उठ रहा है कि इतना बड़ा फ्रॉड करने के बाद भी एसईसीएल प्रबंधन को इसकी भनक तक कैसे नहीं लगी। कहीं अफसरों की भी इसमें मिलीभगत तो नहीं थी, यह पुलिस की जांच में ही स्पष्ट हो पाएगा।