गंगा नदी तैरकर पार करके पढ़ने जाते थे लाल बहादुर शास्त्री, जब तक प्रधानमंत्री रहे विदेशी कंपनियों को देश में घुसने नहीं दिया

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Rahul Garhwal
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गंगा नदी तैरकर पार करके पढ़ने जाते थे लाल बहादुर शास्त्री, जब तक प्रधानमंत्री रहे विदेशी कंपनियों को देश में घुसने नहीं दिया

BHOPAL. 9 जून 1964 को लाल बहादुर शास्त्री ने भारत के प्रधानमंत्री का पदभार ग्रहण किया। 26 जनवरी 1965 को शास्त्री ने जय जवान, जय किसान का नारा दिया था। शास्त्री सच्चे गांधीवादी थे, उन्होंने अपना सारा जीवन सादगी से बिताया और गरीबों की सेवा में लगाया। लाल बहादुर शास्त्री स्वदेशी के समर्थक थे। वे जब तक प्रधानमंत्री रहे उन्होंने विदेशी कंपनियों को भारत में घुसने नहीं दिया। लाल बहादुर शास्त्री गंगा को तैरकर पार करके पढ़ने जाते थे। हरिशचंद्र इंटर कॉलेज में शास्त्री को जिस शख्स ने थप्पड़ मारा था, रेल मंत्री बनने के बाद उन्होंने उस शख्स को मंच पर गले लगा लिया था। लाल बहादुर शास्त्री कद में भले ही छोटे थे लेकिन उनका 'कद' वाकई बड़ा था। आज 2 अक्टूबर है, महापुरुष लाल बहादुर शास्त्री की जयंती है।



उत्तरप्रदेश के मुगलसराय में जन्मे गुदड़ी के लाल



शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 में उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ। उनके पिता एक मामूली से शिक्षक थे। शास्त्री जब 18 महीने के थे तब उनके पिता का देहांत हो गया। मां रामदुलारी लाल बहादुर शास्त्री को लेकर पैतृक आवास रामनगर आ गईं। मां ने बेहद गरीबी में शास्त्री को पढ़ने भेजा। लाल बहादुर शास्त्री अपने दोस्तों से किताबें उधार लेकर पढ़ा करते थे। शास्त्री ने शिक्षा हरिश्चन्द्र इंटर कॉलेज और काशी विद्यापीठ में ली। काशी विद्यापीठ से ही उन्हें शास्त्री की उपाधि मिली। उन्होंने अपने नाम के आगे से श्रीवास्तव हटाकर शास्त्री लगा लिया।



सादगी के साथ बिताया सारा जीवन



लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत भाषा में स्नातक स्तर तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद भारत सेवक संघ से जुड़ गए। उन्होंने देश सेवा का व्रत लेते हुए यहीं से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। शास्त्री सच्चे गांधीवादी थे और उन्होंने अपना सारा जीवन सादगी के साथ बिताया और गरीबों की सेवा में लगाया। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के आंदोलनों में शास्त्री सक्रिय रहे। कई बार उन्हें जेल भी जाना पड़ा।



नेहरू से निकटता बढ़ने के बाद बढ़ा शास्त्री का कद



1929 में शास्त्री ने इलाहाबाद आने के बाद टण्डनजी के साथ भारत सेवक संघ की इलाहाबाद इकाई के सचिव के रूप में काम करना शुरू किया। यहां नेहरू के साथ उनकी निकटता बढ़ी। इसके बाद शास्त्री का कद लगातार बढ़ता गया। वे नेहरू के मंत्रिमंडल में गृह मंत्री के प्रमुख पद तक पहुंच गए।



जिस शख्स ने थप्पड़ मारा था उसे गले लगाया



शास्त्री मेधावी छात्र थे। उनका स्वभाव बचपन में चंचल था। अक्सर वे स्कूल में कुछ न कुछ तोड़ देते थे। हरिश्चंद्र इंटर कॉलेज में शास्त्री ने प्रायोगिक बिकर को तोड़ दिया था। स्कूल के चपरासी देवीलाल ने उन्हें देख लिया था और थप्पड़ मारकर लैब से बाहर निकाल दिया था। 1954 में रेल मंत्री बनने के बाद वे एक कार्यक्रम में आए थे। शास्त्री जब मंच पर थे तो देवीलाल उनको देखते ही पीछे हट गया लेकिन शास्त्री ने देवीलाल को पहचान लिया और मंच पर बुलाकर गले से लगा लिया।



शास्त्री ने दिया जय जवान, जय किसान का नारा



27 मई 1964 को नेहरू के निधन के बाद साफ-सुथरी छवि की वजह से शास्त्री को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया। प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने 26 जनवरी 1965 को देश के जवानों और किसानों को अपने कर्म और निष्ठा के प्रति सुदृढ़ रहने और देश को खाद्य के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से 'जय जवान, जय किसान' का नारा दिया।



लाल बहादुर शास्त्री के शासनकाल में भारत-पाक युद्ध



1965 में लाल बहादुर शास्त्री के शासनकाल में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया। शास्त्री के कुशल नेतृत्व की वजह से पाकिस्तान को करारी हार मिली। भारतीय सेना लाहौर के हवाई अड्डे पर हमला करने के लिए सीमा के अंदर पहुंच गई थी। अमेरिका ने अपने नागरिकों को लाहौर से निकालने के लिए युद्ध विराम की अपील की। पाकिस्तान ने अमेरिका से किसी तरह युद्ध रुकवाने को कहा। रूस और अमेरिका ने शास्त्री पर युद्ध विराम के लिए जोर डाला। अमेरिका ने गेहूं का निर्यात बंद करने की धमकी दी। उस वक्त अमेरिका से भारत लाल रंग का सड़ा हुआ गेहूं आता था जिसे पीएम शास्त्री ने बंद करा दिया था।



शास्त्री की अपील पर लाखों लोगों ने रखा सोमवार का व्रत



शास्त्री ने दिल्ली में रामलीला मैदान में अपील की थी कि पाकिस्तान से युद्ध चल रहा है। ऐसे हालात में देश को पैसे की जरूरत होती है। हम सभी फालतू खर्च बंद करें। घरेलू बचत सीधे सेना के लिए दान करें। हर व्यक्ति सप्ताह में एक दिन सोमवार का व्रत जरूर रखे। शास्त्री की अपील पर लोगों ने सोमवार का व्रत रखना शुरू कर दिया। देश में गेहूं बढ़ने लगा। शास्त्री भी सोमवार का व्रत रखते थे। उन्होंने अपने घर में काम करने वाली बाई को हटा दिया। वे घर की साफ-सफाई और कपड़े खुद धोते थे। उन्होंने उनके बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाने आने वाले ट्यूटर को भी हटा दिया था। शास्त्री की धोती फट गई थी। पत्नी ने कहा कि नई ले आइए। इस पर शास्त्री बोले कि सुई-धागे से इसे सिल दो। भारत-पाक युद्ध के दौरान उन्होंने अपनी पगार भी छोड़ दी थी।



स्वदेशी के समर्थक लाल बहादुर शास्त्री



लाल बहादुर शास्त्री स्वदेशी के समर्थक थे। वे जब तक प्रधानमंत्री रहे उन्होंने विदेशी कंपनियों को भारत में घुसने नहीं दिया। उनका कहना था कि ईस्ट इंडिया कंपनी की वजह से भारत ने गुलामी झेली। देश की आजादी के लिए कई वीरों ने बलिदान दिया। दोबारा विदेशी कंपनियों को बुलाकर देश की आजादी के साथ समझौता नहीं किया जा सकता।



ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमी मृत्यु



पाकिस्तान से युद्ध के बाद लाल बहादुर शास्त्री समझौता करने ताशकंद गए थे। समझौता वार्ता में शास्त्री की जिद थी कि सारी शर्तें उन्हें मंजूर हैं लेकिन वे जीती हुई जमीन पाकिस्तान को नहीं लौटाएंगे। अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाकर शास्त्री से ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करा लिए गए। उन्होंने ये कहते हुए हस्ताक्षर किए कि ये जमीन कोई दूसरा प्रधानमंत्री लौटाएगा, वे नहीं। पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ युद्धविराम के समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घंटों बाद ही लाल बहादुर शास्त्री की मौत हो गई। 11 जनवरी 1966 को रात में शास्त्री का निधन हो गया। उनकी मृत्यु का कारण हार्ट अटैक बताया गया। ऐसे कयास लगाए जाते हैं कि शास्त्री की मृत्यु हार्ट अटैक से नहीं बल्कि जहर देने से हुई थी। उनका पोस्टमार्टम नहीं कराने के आरोप भी लगाए जाते हैं। लाल बहादुर शास्त्री की मौत आज भी एक रहस्य बनी हुई है।


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