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Raipur।राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस की तयशुदा जीत के बीच अचानक छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस ( जोगी ) ने भी नामांकन दाखिल कर दिया है। संख्या बल के आँकड़ों पर यह तय है कि कांग्रेस को कहीं कोई परेशानी तक नहीं होनी है, उसके बावजूद छजका की ओर से नामांकन दाखिल किए जाने से प्रतीकात्मक ही सही पर मामला एक तरफ़ा नहीं रह गया है। इस मसले को छजकां अध्यक्ष अमित जोगी ने राजनैतिक नहीं बल्कि नैतिक और दिल्लीवाद बनाम छत्तीसगढ़वाद करार दिया है।
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जब जीतना नहीं तो यह क्या बस पॉलिटिकल स्टंट है
90 विधायकों वाली विधानसभा में सदन के भीतर 71 की संख्या कांग्रेस के साथ है। जबकि 14 भाजपा, 2 बसपा और 3 विधायक संख्या के साथ छजकां मौजूद है। बेहद साफ़ है कि छजकां को यदि बीजेपी और बसपा के वोट भी मिल जाएँ तो भी उसे जीतना नहीं है, तो फिर क्या ये केवल पॉलिटिकल स्टंट है। इसे छजकां अध्यक्ष अमित जोगी सिरे से ख़ारिज करते हैं और कुछ इन शब्दों में अपनी दावेदारी को जायज़ बताते हैं
“देखिए, ये दिल्लीवाद बनाम छत्तीसगढवाद की लड़ाई है,स्थानीय कांग्रेस नेताओं और तीन करोड़ छत्तीसगढ़वासियों में से किसी को भी योग्य न समझना और बाहरी प्रत्याशियों को निरंतर आयातित कर छत्तीसगढ़ पर थोपना, छत्तीसगढ़ की गरिमा को कुरेद कुरेद कर मिटाना है।साफ़ है कि कांग्रेस हाईकमान का लगाव छत्तीसगढ़ के धन से है, मन से नहीं है। हम हार-जीत के लिए नहीं लड़ रहे हैं, दोनों बाहरी प्रत्याशियों को निर्विरोध चुनने नहीं देने में ही हमारी नैतिक जीत है, और इसलिए हमने यह किया है”
अजित जोगी ने गठित की छजका
कांग्रेस के क़द्दावर नेता रहे और प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने कांग्रेस से अलग होकर छजकां का गठन किया था। 2018 में छजकां ने पाँच सीटों पर जीत दर्ज की थी। छजकां को 14 फ़ीसदी वोट मिले थे, लेकिन अजीत जोगी और फिर देवव्रत सिंह के निधन के बाद उपचुनाव में कांग्रेस ने दोनों सीटें जीत लीं, लिहाज़ा अब छजका के तीन विधायक सदन में हैं, जिनमें श्रीमती रेणु जोगी, धर्मजीत सिंह और प्रमोद शर्मा।
अजीत जोगी ने इस दल के आधार में छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी अस्मिता और गौरव बताया था, और यह दलील दी थी कि, छत्तीसगढ़ के भाग्य का फ़ैसला दिल्ली नहीं कर सकता उसे छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़िया ही करेगा।छजका को लेकर बहुतेरी भविष्यवाणियाँ की गईं जिसके पीछे आधार ही अजीत जोगी थे। अब जबकि अजीत जोगी नहीं है, दारोमदार उनके पुत्र अमित जोगी पर जा टिका है।
सीएम बघेल के छत्तीसगढ़वाद के साथ बीजेपी पर सवाल की क़वायद है नामांकन
छजकां के इस नामांकन प्रस्ताव के मसले को बेहतर समझने के लिए उन प्रसंगों और संदर्भों से जोड़ कर देखना ज़्यादा बेहतर होगा जिसमें एक छोर पर छजका की स्थापना ( छत्तीसगढ़ गौरव और छत्तीसगढ़ संस्कृति ) हुई और जिसके दूसरे छोर पर भूपेश बघेल हैं।मुख्यमंत्री बनने के बाद सीएम भूपेश बघेल ने बहुत सफलता से यह प्रचारित प्रसारित कराया, और जनमानस में यह स्थापित करने की कुशलता दिखाई कि, वे छत्तीसगढ़ संस्कृति और लोकाचार व्यवहार के इकलौते संरक्षक हैं, जिसे कुछ ऐसा संरक्षण मिला कि,भूपेश बघेल के मुख्यमंत्री काल में छत्तीसगढ़ संस्कृति और लोकाचार ने “वाद” का रूप ले लिया।
राज्यसभा के प्रत्याशी के रुप में किसी भी स्थानीय कांग्रेसी या कि स्थानीय व्यक्ति के प्रतिनिधित्व ना मिलने के बाद आलोचना और निंदा के मर्यादित तौर तरीक़ों और उसे अभिव्यक्त करने के डिजिटल माध्यम के बीच छजकां का यह नामांकन दाखिल करना सीएम बघेल के छत्तीसगढ़िया वाद पर प्रत्यक्ष प्रश्न लगाने की क़वायद है।छजकां अपने इस प्रत्यक्ष क़वायद को भरपूर प्रचारित करते हुए खुद को छत्तीसगढ़ी संस्कृति और छत्तीसगढ़ के साथ खड़े बताते हुए ना केवल कांग्रेस या कि सीएम बघेल को प्रश्नांकित करने की क़वायद करेगी बल्कि वह बीजेपी के लिए भी सवाल खड़े करने की क़वायद में है कि, लोग यह सवाल करें कि, केवल तीन विधायकों के दम पर छजका ने फिर भी वह किया जो कि बतौर प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी कर सकती थी और उसने नहीं किया।
छजकां का प्रत्याशी सतनामी वर्ग से
छजकां ने बतौर प्रत्याशी जिनका नामांकन कराया है, वह डॉ हरिदास भारद्वाज सतनाम पंथ का चेहरा है।डॉ हरिदास पूर्व कैबिनेट मंत्री,अखिल भारतीय सतनामी सभा के पूर्व महामंत्री रह चुके हैं,वे आयुर्वेदिक डॉक्टर भी हैं। सतनामी पंथ के अनुयायी मध्य छत्तीसगढ़ की 13 सीटों पर सीधे जबकि करीब 10 सीटों पर प्रभावशाली दखल रखते हैं। जिन्हे राजनीति में रूचि हो उनके लिए छजका के प्रत्याशी के सतनामी होने के क्या अर्थ हैं यह समझना कठिन नहीं है।