सुनील कोरे, BALAGHAT. ब्रिटिश शासनकाल में आज से 150 साल पहले बालाघाट मुख्यालय में तालाब खोदा गया जिसे बाद में देवीतालाब का नाम दिया गया। इसी तालाब की खुदाई के दौरान तालाब के अंदर से 10-11वीं शताब्दी की भगवान गणेश सहित अनेक प्रतिमाएं मिली थीं जिसे तालाब के पास ही मंदिर बनाकर वहां स्थापित किया गया और इसे गणेश मंदिर का नाम दिया गया।
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सिद्ध स्थल बना मंदिर
इसके बाद से अनवरत रूप से यहां पूजा-पाठ होती रही और आज ये मंदिर सिद्ध स्थल बन गया है। बालाघाट नगर के देवीतालाब के किनारे प्राचीन गणेश मंदिर में जो भी भक्त, सच्चे भाव से भगवान गणेश से अपनी मनोकामना मांगता है, भगवान गणेश उसकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। खास बात ये है कि प्राचीन गणेश मंदिर की स्थापना में रखी गई भगवान गणेश की प्रतिमा दक्षिणवर्ती है अर्थात दक्षिण हस्त की ओर उनकी सूंड है। अमूमन अधिकांश स्थानों पर जो गणेश प्रतिमा होती है वो गणेश की प्रतिमा वामवर्ती होती है अर्थात वाम हस्त की ओर सूंड होती है। धर्म के ज्ञाता पंडितों की मानें तो दक्षिणायन गणपति की प्रतिमा जब प्राचीन हो जाती है तो वो स्थल, सिद्धस्थल बन जाता है।
भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं गणेश
नगर के प्राचीन गणेश मंदिर में वैसे तो रोजाना ही भक्त, मंदिर में पूजा-अर्चना करने जाते हैं लेकिन गणेश उत्सव पर मंदिर में भक्तों की अच्छी-खासी भीड़ लगी रहती है। प्रतिदिन सैकड़ों भक्त भगवान गणेश जी के दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद मांगते हैं। असाटी महिला समाज की अध्यक्ष एवं भक्त महिला सरला सुरेश असाटी का कहना है कि मेरी यहां मनोकामना पूरी हुई है। मेरा बड़ा बेटा सीए बन जाए ये मनोकामना मैंने भगवान गणेश से की थी। जो पूरी हो गई है, अब इंजीनियरिंग कर रहे छोटे बेटे की जॉब की प्रार्थना की है। मुझे विश्वास है कि भगवान गणेश मेरी इस मनोकामना को भी पूरी करेंगे।
निर्माण के बाद दो बार हो चुका है मंदिर का जीर्णोद्धार
150 साल पहले जब मंदिर की स्थापना कर मंदिर का नवनिर्माण किया गया था। उसके बाद वर्ष 1956 में मंदिर का पहली बार जीर्णोद्धार किया गया जिसके बाद इसी साल जुलाई माह में इसका जीर्णोद्धार किया गया था। इससे मंदिर आज विशाल स्वरूप और आकर्षक रूप में नजर आता है। लगभग 150 साल पुराने इस मंदिर के रखरखाव की जिम्मेदारी वर्तमान में गणेश मंदिर ट्रस्ट अध्यक्ष रमेश कुमार राठी और अन्य न्यासीगण कर रहे हैं। ट्रस्ट अध्यक्ष रमेश राठी ने बताते हैं कि देवीतालाब की खुदाई के दौरान यहां गणेश प्रतिमा मिली थी जिसे तालाब के पास ही स्थापित किया गया था। ये घटना लगभग 150 साल पुरानी है। यहां लोगों की मनोकामना पूर्ण होने से ये मंदिर सिद्धविनायक के रूप में भी पहचाना जाने लगा है।