Gariyaband। सूपेबेड़ा बीते दस बरसों से प्रदेश की सियासत का मसला है, लेकिन यह मसला केवल सियासती आरोप प्रत्यारोप का हिस्सा बनकर रह जाता है। किडनी से मौतों के लिए अभिशप्त सूपाबेड़ा के हालात नहीं बदलते, भले सरकार बदलती रहे। 2018 के विधानसभा चुनाव से ठीक चार पाँच पहले का वाकया है जब तत्कालीन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल सूपाबेडा पहुँचे थे, दौरा किया लोगों से मिले, मृतकों के परिजनों से मिले, तबकि रमन सिंह के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार पर खूब भड़के। रायपुर लौट कर उन्होंने पत्रकारों से चर्चा में कहा
“सूपेबेडा सहित एक दर्जन गाँव में ख़राब पेयजल के कारण से किडनी रोग से ग्रसित सैकड़ों लोग हैं जिसमें अकेले सूपेबेड़ा गाँव में गाँव वालों के कथन अनुसार 170 लोगों की मौत हो चुकी है,सरपंच ने 101 लोगों की सूची दी है, शासकीय तौर से 64 लोगों की बताई जा रही है।मैं यह कहना चाहता हूँ चार महिने बाद जो चुनाव होगा उसमें कांग्रेस की सरकार बनेगी, हम वहाँ के लोगों का अच्छा ईलाज भी कराएँगे, लोगों को मुआवज़ा भी देंगे शुद्ध पेयजल की व्यवस्था भी करेंगे।”
यह बात जो तब के कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल ने कही थी, उसे अब क़रीब चार बरस होने जा रहे हैं। बीते चार बरस से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सीएम हैं, और सुपेबेड़ा में मौतों का सिलसिला जारी है, किडनी के मरीज़ों की संख्या में वृद्धि जारी है।
बस बुख़ार आता है और फिर किडनी फेल
सूपाबेड़ा की आबादी क़रीब दो हज़ार है, उड़ीसा की सरहद महज़ एक से डेढ़ किलोमीटर मौजूद है। सूपाबेड़ा मजरे टोले में बंटा गाँव है। मुख्य बस्ती बाज़ार टोला है, और यहीं किडनी के सर्वाधिक मरीज़ है। सनद रहे यहाँ सर्वाधिक हैं और कमोबेश हर मजरे टोले में किडनी के मरीज़ हैं।बीते क़रीब दस बरसों में अपने परिवार के 11 सदस्यों को किडनी की वजह से खोने वाले प्रेम प्रकाश क्षेत्रपाल के एक अन्य भाई डायलिसिस पर हैं। प्रेम प्रकाश ने अपने एक अन्य भाई को सप्ताह भर के अंदर ही खोया है।प्रेम प्रकाश ने कहा
“हमें समझ नहीं आता कि, उम्मीद किससे करना है और कितनी करना है। हम बस ये देखते हैं कि अचानक ज्वर ( बुख़ार ) आता है, और फिर जल्दी नहीं उतरता। फिर टेस्ट में पता चलता है कि, क्रेटनिन 22 हो गया है। फिर अस्पतालों का फेरा शुरु होता है, और एक दिन मौत हो जाती है, हमें अब यह जगह छोड़नी है। बाक़ी किसी आवेदन पर तो कुछ होता नहीं, हम लोग अब एक आवेदन और देने वाले हैं जिसमें हम बस यही लिखने वाले हैं कि हमें कहीं और बसा दे”
सरकार का नाम सूनते ही भड़क जाती हैं महिलाएँ
सूपाबेड़ा में जबकि प्रेम प्रकाश के घर पर चर्चा हो रही थी, गाड़ी देख महिलाएं चली आईं, वे पूरी बात चुपचाप सुनती रहीं लेकिन जैसे ही सवाल हुआ कि सरकार क्या कह रही है। एक महिला तीखे स्वर में प्रतिप्रश्न कर गईं
“कहाँ है सरकार, पहले ये बताओ”
उसी तीखे और बेहद ग़ुस्से के भाव का साथ शेष उन महिलाओं ने भी दिया जो साथ खड़ी थीं।उड़ीसा की सरहद से सीधे सटे इस इलाक़े में उड़ीसा हर जगह साफ़ महसूस होता है। फिर वो बोली हो संस्कृति हो या पहनावा। उन महिलाओं के लहजे में भी उड़ीसा झलक रहा था। किडनी की बीमारी से मौत ने कोई भेद नहीं किया है।स्त्री पुरुष युवा बुजुर्ग बचपन सबको मौत लील गई है।साल बदलते जा रहे हैं, उसके साथ अगर कुछ बदल रहा है तो बस मरने वालों के नाम और उम्र। कतार बढ़ती जा रही है।
सीएम साहब से कैसे मिल सकते हैं पत्रकार जी
सूपाबेडा में गली मोहल्ले घुमते हुए एक जगह एक घर दिखाया गया। सतनामी बाहुल्य इस टोले में उस घर को लेकर बताया गया कि, यहाँ दो भाई थे, दोनों भाई किडनी की ही बीमारी से ख़त्म हो गए, उन दोनों की मौत के साथ वंश ख़त्म हो गया। एक बहन है जिसकी शादी हो चुकी है, वह इकलौती बची मां की देखभाल करती है।
यहीं पर जीवन लाल आंडिल्य मिले। उन्होंने सीधा सपाट एक सवाल किया
“ये ज़रा सा बताईए तो पत्रकार जी,सीएम साहब से कैसे मिल सकते हैं, वो मिलें तो बताना पूछना है उनको, जो वो बोले थे मुआवज़ा, साफ़ पानी ये सब कब होगा, वो मिलते तो हम लोग बताते कि मौत तो अब भी हो रही है”
तभी नज़र गई मोबाईल पर, जिसमें एक वीडियो प्ले हुआ, वह वीडियो तब के कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष भूपेश बघेल का था, उसमें वे वही कह रहे थे जो कि पहले पैराग्राफ़ में दर्ज है।ग्रामीणों के समूह ने बताया कि, वे बीच में बस में सवार हो कर रायपुर मिलने गए थे, मुलाक़ात नहीं हुई।
हम अब पत्थर हो गए हैं शायद
वापस लौटते हुए दीवारों पर किडनी रोग के उपचार की जानकारी लिखी दिखी, गाँव जहां से शुरु होता है, वहाँ एक फ्लैक्स टंगा दिखा जो स्वस्थ किडनी कैसे रखें और किडनी रोग कैसे होता है इसकी जानकारी देता है। महेंद्र सोनवानी ने वह फ्लैक्स दिखाते हुए कहा
“इसमें वही नहीं लिखा है जिसकी वजह से यहाँ किडनी बैठ जा रही है, वह है दूषित पानी। पानी को लेकर इतनी बातें किए बस बातें रह गई हैं।वो जो हैंडपंप दिख रहा है उसको हालिया दिनों खोद के गए हैं, अरे जब पानी ख़राब है तो हैंडपंप क्यों लगा रहे हैं, कोई प्यूरीफायर नहीं है। दावा था पानी लाएँगे सीधे नदी से, उसका भी पता नहीं चला। स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव आते हैं और बातचीत कर के चले जाते हैं, ख़ैर कम से कम आते तो हैं।उनसे पूछो कि क्या हुआ साहब तो जवाब यही आता है काग़ज़ तो भेजे गए हैं।”
महेंद्र ने चलते चलते कहा
“हम लोग अब पत्थर के हो गए हैं, तड़पते मरीज़ देखना, उसकी तीमारदारी में घर का सब कुछ स्वाहा हो जाना, और फिर मर जाना इसके बाद फिर एक नए मरीज़ को देखना, यह क्रम नहीं टूटता है।”
हम यूँ ही मरने के लिए हैं क्या ?
उस वक्त सरपंच सचिव से मुलाक़ात नहीं हुई, मुझे मौतों और मरीज़ों के सटीक आँकड़े चाहिए थे। अगले दिन जबकि यह खबर लिखी जा रही थी, सूपेबेड़ा से ही मैसेज आया - सरपंच से आँकड़े नहीं मिल रहे है। त्रिलोचन सोनवानी जो सूपेबेड़ा के ही हैं, वे तब रायपुर के डीकेएस अस्पताल में गाँव के ही एक मरीज़ लेकर पहुँचे थे जिसका डायलिसिस होना था।उनसे फ़ोन पर बात हुई, उन्होंने कहा -“यहाँ कोई नहीं सुनता, साफ़ पानी कैसे और कब कोई नहीं बताता। बीच में यह खबर आई जल जीवन मिशन से आएगा और एक पाईप तक नहीं रखा गया है, जब बनेगा तब बनेगा या पता नहीं बनेगा भी या नहीं, लेकिन तब तक हम लोगों का क्या ? कहते हैं मिट्टी में ख़राबी है पानी में ख़राबी है, तो निदान क्या है ? हम यूँ ही मरने के लिए ही हैं क्या ?”