Rajnandgaon।नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत आज से हो गई है। निजी स्कूलों के लुभावने विज्ञापन फ्लैक्स और हैंडबिल या कि पर्चे के साथ पालकों तक पहुँचने लगे हैं, इन प्रचार माध्यमों में स्कुलों में मौजूद सुविधाओं और बच्चों के शैक्षणिक के साथ साथ अन्य गुणवत्ताओं का दावा होता है। लेकिन इनके बीच ज़िले में एक नवाचार हुआ है जिसने ध्यान खींचा है। ज़िले के प्रायमरी स्कूलों की ओर से इश्तहार जारी किए गए हैं, ये स्कूल के शानदार होने का प्रमाण बनती विभिन्न तस्वीरों के साथ साथ वे वह सारी सुविधाएँ भी बता रहे हैं जो कि, इन सरकारी स्कूलों में संचालित हैं। इस प्रचार माध्यम ने इस धारणा को तोड़ा है कि, सरकारी स्कूलों को लेकर मान्यताएँ निजी स्कूल के मुक़ाबले सही नहीं होतीं।
सोशल मीडिया से हो रहा है प्रचार
सरकारी स्कूलों में सुविधाओं की भरमार है, ये सरकारी स्कूल केवल पढ़ाई ही नहीं करा रहे बल्कि जवाहर नवोदय,जवाहर उत्कर्ष और एकलव्य विद्यालय के लिए कोचिंग भी दे रहे है।इन सरकारी स्कूलों में LED टीव्ही भी है, तो बालक बालिका के लिए पृथक शौचालय भी।इसके साथ साथ निःशुल्क स्वास्थ्य परीक्षण, निःशुल्क पौष्टिक मध्याह्न भोजन निःशुल्क प्रवेश , निःशुल्क गणवेश और किताबों का ज़िक्र भी इन सरकारी स्कूलों के प्रचार अभियान में दर्ज है। इन सरकारी स्कूलों के इश्तहारों को अधिकतम प्रचार के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया गया है। प्रशासनिक अधिकारी जिनमें कलेक्टर तारण सिन्हा खुद शामिल हैं वे अपने फ़ेसबुक अकाउंट ट्विटर हैंडल पर इसे शेयर कर रहे हैं। इसके अलावा ये आम नागरिकों तक व्हाट्सएप के ज़रिए भी पहुँच रहा है।
सरकारी स्कूल के इन प्रचार में यह तरीक़ा भी ध्यान खींचता है कि बड़े होर्डिंग ना सही, खर्चीला तरीक़ा ना सही, पर इसे शेयर करने वालों का नाम पद ही ऐसा ब्रांड है कि लोगों का ध्यान बरबस ही जा रहा है।
सफल या असफल ये दर्ज संख्या से समझ आएगा
ये नवाचार कितना कारगर हुआ है, यह स्कूल दाख़िले के आँकड़ों से समझ आएगा। जो कि अभी दाख़िला शुरु ही हुआ है।इसमें कोई शक नहीं है कि आत्मानंद स्कूल छत्तीसगढ़ में एक ब्रांड बन गए हैं और सीएम बघेल की यह एक ऐसी योजना है जिसकी निंदा या आलोचना का कोई मौक़ा अब तक विपक्ष को या कि आलोचकों को नहीं मिल पाया है। लेकिन आत्मानंद के साथ साथ ख़ालिस सरकारी स्कूलों की शक्ल और अंदाज भी अगर बदले हैं और कितने शानदार तरीक़े से उनका कायांतरण हो सकता है उसका उदाहरण है राजनांदगाँव।आज सरकारी स्कूल सुविधाओं और शैक्षणिक गुणवत्ता को लेकर जो दावे कर रहे हैं, वे ग़लत नहीं है, लेकिन जरुरी यह भी है कि, इसमें निरंतरता रहे, और यह रह पाती है या नहीं ये भी आने वाले समय में ही पता चलेगा।
आने वाले समय में ना केवल यह पता चलेगा कि राजनांदगाँव के इन सरकारी स्कूलों में दाख़िले का आँकड़ा क्या था और बीते बरसों से कितने ज़्यादा दाख़िले हुए, ठीक वैसे ही आने वाले समय में यह भी पता चलेगा कि, मुख्यमंत्री बघेल ने इसी शैक्षणिक सत्र से नक्सल प्रभावित चार ज़िलों के 260 स्कूलों को दोबारा खोलते हुए 11 हज़ार बच्चों के पढ़ने का दावा किया है,उसमें इस दावे के अनुसार धरातल पर क्या हो रहा है।