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Ambikapur।बिहार में एक ज़िला है बाढ़, इस ज़िले में एक विधानसभा है मोकामा। बिहार की इस विधानसभा के विधायक हैं बाहुबली अनंत सिंह। विधायक हैं, बाहुबली भी हैं तो अंदाज भी अंतरंगी है। हर वो क़ानून या कि नियम जिसमें कि वो फँस जाते हैं या कि फँसने की संभावना होती है, उसे लेकर उनकी ख्यातिलब्ध पंक्ति है और वह पंक्ति हैं - “ई वाला हम मानबे नई करते हैं” मसलन कि उनकी अदावत है सीएम नितीश कुमार से, तो कई बार उन्हें कहा जाता है कि देखिए वे सीएम हैं तो वे उनके लिए कह देते हैं - सीएम हैं तो का सीएम हैं, ई वाला सीएम को हम मानबे नई करते हैं”। छत्तीसगढ़ में अनंत सिंह और उनके इस जीवंत क़िस्से की याद यूँ चली आई कि, सरगुजा ज़िला प्रशासन (surguja district administration) हालिया दिनों जो कर रहा है वह भी कुछ इसी अंदाज में है। हसदेव अरण्य (hasdev aranya) पर चल रहे घमासान में परसा ईस्ट केते बासेन एक्सटेंशन ( parsa east kete basen extention ) पर गाँव घाटबर्रा (ghatbarra) से ग्रामसभा का अनुमोदन चाहिए था, बीते 25 मई को कलेक्टर की ओर से आदेश निकला कि परसा ईस्ट केते बासेन एक्सटेंशन परियोजना के लिए घाटबर्रा में विशेष ग्राम सभा आयोजित हो जिसमें प्रभावित परिवरों का सर्वेक्षण जनगणना भूमि अर्जन पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन हेतु परामर्श दिए जाने पर चर्चा और प्रस्ताव हो।अब यह ग्रामसभा विभिन्न कारणों से टलते हुए आठ जून को हो गई। घाटबर्रा ग्राम सभा ने प्रस्ताव का विरोध करते हुए ज़मीन नहीं देने का फ़ैसला पारित कर दिया। अब जबकि यह ग्रामसभा का प्रस्ताव पारित हो गया, और खबरें बाजरिया ट्वीट राहुल गांधी तक पहुँच गई जिसमें यह कहा गया कि अब राज्य सरकार तत्काल भू अर्जन की कार्यवाही रद्द करें तो 9 तारीख़ को एक पत्र नुमाया हुआ जिसे प्रभारी कलेक्टर विनय कुमार लंगेह के हस्ताक्षर से जारी किया गया था।जिसमें तारीख़ दर्ज थी सात जून और पत्र पर क्रमांक दर्ज था 1507/पंचायत। उसमें यह लिखा गया था कि,25 मई को ग्रामसभा कराने का आदेश जारी किया गया था, 28 मई को इस आदेश के परिपालन में ग्रामसभा होनी थी, जो नहीं हुई।चार जून को नई तारीख़ तय की गई जो अपरिहार्य कारणों से नहीं हुई इसलिए 25 मई का आदेश जिसमें ग्रामसभा कराए जाने के निर्देश थे वह रद्द किया जाता है।इस पत्र के आधार पर यह कहा गया कि जो ग्राम सभा हुई वह हुई ही नहीं मानी जाएगी। ग्रामसभा की ओर से सामाजिक कार्यकर्ताओं ने नियमों के हवाले से कह दिया कि, ग्रामसभा नियमों के अनुरूप हुई है, अब इस कलेक्टर के पत्र का मतलब नहीं है।इसके मायने यही कि मसला अनंत सिंह जी के मिज़ाज का हो गया है, ज़िला प्रशासन यह कह रहा है कि ये ग्रामसभा को हम नहीं मानते हैं और ग्रामसभा कह रही है हमको जो करना था हम कर लिए इस चिट्ठी को हम नही मानते हैं।
प्रशासन की चिट्ठी बैकडेट पर जारी ?
हसदेव अरण्य की लड़ाई बेहद गंभीर मोड़ पर है। हसदेव अरण्य को बचाने की लड़ाई जो दस बरसों से ग्रामीण अपने तई लड़ रहे थे वह अब विस्तारित हो गई है। इस कदर विस्तारित कि इस मसले पर सवाल का सामना राहुल गांधी को लंदन में करना पड़ गया और यह कहना पड़ा कि जो आदिवासियों के साथ हो रहा है उनकी सहानुभूति आदिवासियों के साथ हैं और आदिवासियों की लड़ाई को वे जायज़ मानते हैं।राहुल यह भी कह गए कि वे इस पर कांग्रेस के भीतर कुछ कर रहे हैं और जल्द ही छत्तीसगढ़ में इसके नतीजे दिखेंगे। इस बयान के बाद छत्तीसगढ़ में उथल-पुथल मची। मंत्री सिंहदेव आंदोलन स्थल पर गए और उन्होंने कहा आप एक रहिए मैं आपके साथ हूँ, कोई गोली चलाने आए तो मुझे बुलाइएगा पहली गोली मैं खाउंगा, आपकी तकलीफ़ें समस्या राहुल गांधी जी को बताउंगा। इस दौरान मंत्री सिंहदेव ने माना कि उत्खनन के नियमों का कोई पालन नहीं हो रहा है और बाहरी लोग प्रभावित गाँव और प्रभावित ग्रामीण बन कर प्रभावित करते हैं।
इस के ठीक पहले सरगुजा ज़िला पंचायत ने प्रस्ताव पास कर दिया जिसमें उल्लेख था कि,हसदेव अरण्य में फिर से पारदर्शी तरीक़े से ग्रामसभा कराई जाए, क्योंकि पूर्व की ग्रामसभा को फ़र्ज़ी बताते हुए उसके ख़िलाफ़ थाने से लेकर राज्यपाल तक शिकायत की जा चुकी है।पर इस प्रस्ताव के दो दिन के भीतर पुलिस के कव्हर के साथ पेड़ कटाई शुरु करा दी गई, आंदोलनरत ग्रामीणों ने पेड़ कटने का विरोध किया और जंगल के भीतर प्रशासन के सामने बैठ गए। पेड़ कटाई उस वक्त तो रुक गई पर उसी समय कलेक्टर सरगुजा ने आदित्येश्वर सिंहदेव जो ज़िला पंचायत उपाध्यक्ष हैं उन्हें पत्र भेजा कि, सीबी एक्ट के तहत अधिग्रहण हो गया है इसलिए ग्रामसभा की जरुरत नहीं, और असली टकराव यहीं से बढ़ा, यह माना जाता है कि, मंत्री टी एस सिंहदेव का मानस राहुल गांधी के बयान के बाद स्पष्ट था कि, अब हसदेव अरण्य के आंदोलन को पूरजोर समर्थन देना है, लेकिन मंत्री सिंहदेव के भतीजे आदित्येश्वर सिंहदेव के हसदेव अरण्य को लेकर की गई पहल और ज़िला प्रशासन के जवाब जिसे “ज़िद भरा और प्रायोजित माना गया” ने मंत्री सिंहदेव को आंदोलन स्थल पर विनम्र भाव से लेकिन अडिग अंदाज में खड़ा कर दिया।
मंत्री सिंहदेव के अडिग और दो टूक अंदाज के बाद हसदेव अरण्य के मसले पर आंदोलन कर रहे लोगों को लेकर एक प्रकार से उपहास उड़ाते बयान ( पहले अपने घर की बिजली बंद कर दें फिर जंगल की बात करें और 8 लाख पेड़ कहाँ से गिने ) देने वाले मुख्यमंत्री बघेल ने यह कहा
“जब तक मंत्री सिंहदेव सहमत नहीं होते वहाँ पेड़ तो क्या डंगाल भी नहीं कटेगी।”
तेज़ी से घटते इस घटनाक्रम के बीच घाटबर्रा ग्राम पंचायत ने मिले निर्देश के अनुरुप ग्रामसभा की और उत्खनन की अनुमति देने से इंकार कर दिया,और उसके बाद जो कलेक्टर सरगुजा के दस्तख़त के साथ पत्र अगले दिन याने 9 तारीख़ को वायरल हुआ उसे लेकर आंदोलनरत आदिवासियों के सहयोगी आलोक शुक्ला ने पत्र को बैकडेट पर जारी होने की आशंका जताई और कहा
“ जहां तक ग्रामसभा की बात है, तो ग्रामसभा नियमों के अनुरुप हो गई, अब उसे कोई ख़ारिज नहीं कर सकता, रजिस्टर सामने हैं सब कुछ उसमें पढ़ा जा सकता है”
इस मामले में सरगुजा ज़िला पंचायत उपाध्यक्ष आदित्येश्वर सिंहदेव की बात भी कलेक्टर द्वारा जारी पत्र को लेकर गंभीर संकेत देती है। आदित्येश्वर सिंहदेव ने कहा
“पहली बात तो यह है कि, मेरी एसडीएम से बात हुई थी मैंने पूछा था ग्रामसभा नहीं कराए जाने को लेकर कोई आदेश तो नहीं आया, तो मुझे बताया गया कि ऐसा कोई आदेश नहीं आया है।दूसरा यह कि ग्रामसभा अपने नियमों के अनुरुप हो चुकी है। मुझे बाद में उन्हीं एसडीएम ने कहा कि कोई आदेश हुआ है लेकिन तब तक ग्रामसभा हो चुकी थी”
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इस मामले में ज़िला प्रशासन के पत्र पर प्रभारी कलेक्टर के तौर पर जिन अधिकारी के हस्ताक्षर हैं वे जिला पंचायत के सीईओ हैं विनय कुमार लंगेह। विनय कुमार लंगेह से द सूत्र ने पूछा कि आपने पत्र जारी किया तो उसकी सूचना सार्वजनिक क्यों नहीं हुई और अब जो ग्रामसभा हुई उसका क्या होगा। सीईओ और प्रभारी कलेक्टर विनय लंगेह ने कहा
“पत्र जारी किया गया, जनसंपर्क को भी दिया गया था, अब ये कैसे कहा जा रहा है कि सार्वजनिक नहीं हुआ या जानकारी नहीं हुई इसे दिखवाते हैं,जहां तक ग्रामसभा का विषय है तो वह मान्यता नहीं रखती क्योंकि हमने तो स्थगित कर दिया था”
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फिर गहराएगा विवाद
पेड़ तो क्या डंगाल भी नहीं कटेगी की बात मुख्यमंत्री बघेल ने कही है बल्कि दो बार दोहरा कर कही है, लेकिन इस संबंध में कोई लिखित आदेश या कि मौखिक निर्देश सरगुजा ज़िला प्रशासन के पास पहुँचे हैं इसकी पुष्टि नहीं हुई है। इसी के साथ ग्रामसभा के इस मसले ने जो “अनंत सिंह अंदाज” अपनाया है, उससे फिर विवाद गहरा सकता है। क्योंकि ग्रामसभा, ग्रामीण और उनके समर्थक यह कह रहे हैं कि कलेक्टर का पत्र जो कह रहा है उसे और उसकी भाषा को स्वीकार नहीं किया जा सकता, ग्रामसभा नियमों के अनुरुप हो गई। इधर ज़िला प्रशासन कह रहा है कि, ग्रामसभा के पारित प्रस्ताव का अब कोई मतलब नहीं क्योंकि हमने तो उसे स्थगित कर दिया है। रह गया ये सवाल कि, यदि पत्र सात जून को जारी हुआ था तो सार्वजनिक क्यों नहीं हुआ इसका जवाब शायद ही आए क्योंकि टेक तो बस यही है हमने पत्र सात जून को जारी किया था।
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