सरगुजा ज़िला पंचायत की दो टूक-जब ग्रामसभा फ़र्ज़ी तो अनुमोदन का दावा कैसे सही

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Yagyawalkya Mishra
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सरगुजा ज़िला पंचायत की दो टूक-जब ग्रामसभा फ़र्ज़ी तो अनुमोदन का दावा कैसे सही

Ambikapur। हसदेव अरण्य के परसा कोल ब्लॉक और परसा ईस्ट केते एक्सटेंशन में उत्खनन के विरोध में चल रहे आदिवासियों के आंदोलन के समर्थन में सरगुजा ज़िला पंचायत सीधे तौर पर आ गया है। ज़िला पंचायत सरगुजा ने इस मसले पर उत्खनन के विरोध में ग्रामीणों के तर्क और भावनाओं को तथ्यात्मक पाते हुए प्रशासन से सवाल किया है कि, जिस ग्रामसभा के प्रस्ताव को आधार मान कर उस इलाक़े में उत्खनन को मंज़ूरी दी जाने की भूमिका तय की गई है वह ग्रामसभा ही जब संदिग्ध है तो उसके अनुमोदन की क्या विधिक अहमियत रह जा रही है।इसलिए यह बेहतर होगा कि, पूरे कोरम के साथ प्रभावित इलाकों में फिर से ग्रामसभा कराई जाए।





प्रशासन को सौंपा पारित प्रस्ताव

ज़िला पंचायत की ओर से अध्यक्ष मधु सिंह और ज़िला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राकेश गुप्ता जो खुद भी ज़िला पंचायत सदस्य हैं ने कलेक्टर संजीव झा को हस्ताक्षरित वह प्रस्ताव सौंपा है, जिसे ज़िला पंचायत की सामान्य सभा ने पारित किया है।इस प्रस्ताव में उन सभी  11 सदस्यों के हस्ताक्षर है, जो सामान्य प्रशासन समिति के सदस्य हैं।इस प्रस्ताव में दो टूक अंदाज में यह बात कही गई है

“त्रि स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था तभी सुदृढ़ हो सकेगी,जबकि पंचायतों के अधिकारों का सम्मान हो,संविधान में ग्रामसभा को दिए गये अधिकारों के अनुकूल कार्यवाही हो,और उनके फ़ैसले का सम्मान किया जाये।त्रि स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के अनुसार ग्रामसभा को यह अधिकार है कि वे अपने क्षेत्र में कोयला उत्खनन हेतु अनुमति देना चाहते हैं अथवा नहीं, ग्रामवासियों की मंशा के अनुरुप पुनः ग्रामसभा बुलाकर स्थिति को स्पष्ट करना चाहिए”




  इस प्रस्ताव की भूमिका में यह स्पष्ट किया गया है कि




1-ग्रामीण उस  ग्रामसभा को ख़ारिज कर रहे हैं जिसे लेकर वह विधिक स्थिति स्थापित बताई गई जिसके आधार पर उत्खनन को अनुमति दी गई है।28 अगस्त 2017 को फतेहपुर,24 जनवरी 2018 को हरिहरपुर और 27 जनवरी 2018 को साल्ही में ग्राम सभा तो हुई लेकिन कोयला उत्खनन अनुमति को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई थी,इसे ग्रामसभा के पश्चात दस्तावेज में शामिल किया गया है जो अवैध है।ग्रामीण इसे लेकर थाने में भी शिकायत कर चुके हैं।

2 -यह वही इलाक़ा है जिसे यूपीए सरकार के कार्यकाल में वन्य जीवों के विचरण एवं श्रेष्ठतम पर्यावरणीय स्थितियों की वजह से ‘नो गो एरिया’ घोषित करते हुए यहाँ भविष्य में कोयला उत्खनन पर रोक लगा दिया गया था। यह इलाक़ा हाथियों का विचरण क्षेत्र है।






फिर से कराएँ ग्रामसभा

  प्रस्ताव में प्रभावित ग्रामीणों के हवाले से स्पष्ट किया गया है जिन ग्रामीणों को खनन समर्थक बताया गया है, वे प्रभावित गाँवों के निवासी ही नहीं हैं।जबकि जो खनन का समर्थन करते हैं वे विरोध करने वाले ग्रामीणों को स्थानीय नहीं बताते। इसलिए यह बेहतर है कि, गाँव का स्पष्ट मत जानने के लिए इन गाँवों में पूरे कोरम के साथ विशेष ग्राम सभा का आयोजन इन पंचायतों के सभी गाँवों में हो, ताकि एक एक परिवार से स्पष्ट मत सामने आ सके।





बोले आदित्येश्वर सिंहदेव

 सरगुजा ज़िला पंचायत के उपाध्यक्ष आदित्येश्वर सिंहदेव इस पूरे मामले में जंगल और वनवासियों के साथ साफ़ खड़े दिखते हैं।पढ़ाई से मैकेनिकल इंजीनियर और विदेश में बहुराष्ट्रीय कंपनी की नौकरी छोड़ वापस सरगुजा पहुँचे आदित्येश्वर सिंहदेव मंत्री टी एस सिंहदेव के भतीजे हैं। ज़िला पंचायत की सर्वोच्च शक्ति सामान्य प्रशासन समिति के प्रस्ताव को लाने वाले आदित्येश्वर सिंहदेव ही हैं। आदित्येश्वर सिंहदेव ने कहा

“त्रि स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था ग्रामसभा को सर्वोच्च अधिकार देती है, यदि उस सर्वोच्च अधिकार के साथ छल हुआ है तो यह स्वीकार्य नहीं है। हमने इसलिए फिर से पूरे कोरम के साथ ग्रामसभा कराए जाने का प्रस्ताव पारित कर दिया है। जहां तक जंगल का विषय है, वनवासियों का विषय है तो जंगल एक दिन में नहीं बनते, प्रकृति को सदियों का वक्त लगता है, ठीक वैसे ही वनवासियों का जंगल से सदियों का रिश्ता है। ठीक है कि, उद्योग जरुरी है, सहमत हूँ कि कोयला भी जरुरी है, लेकिन इसके लिए विधि द्वारा स्थापित नियम प्रावधान का उल्लंघन कर देना है यह कहाँ लिखा है। मैं सरगुजा और सरगुजिहा हूँ और ज़ाहिर है हर क्षण अपनी इन दोनों पहचान के साथ खड़ा हूँ”


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