Raipur। कांग्रेस के भीतर विमर्श मंथन के दौर में क्या बहुत कुछ ऐसा हो रहा है, जिसे वाक़ई मंथन कहना चाहिए, या इसे केवल प्रस्तावों के पास होने या कतिपय क़ायदों के पालन को मंज़ूरी देने तक सीमित रख देना चाहिए।कांग्रेस राजस्थान के मंथन शिविर से निकल कर राज्यों में जो नव संकल्प शिविर आयोजित कर रही है इन मंथन चिंतन शिविर में यह देखना भी जरुरी है कि, कांग्रेस ने क्या यह मंथन चिंतन भी किया है कि, धर्म निरपेक्षता के साथ किस प्रयोग के कई दोहराव कांग्रेस से हुए है कि बीजेपी को यह अवसर मिला कि वह बहुसंख्यक मतदाता तक यह बात सुसंगत तरीक़े से स्थापित कर दे कि, कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता के मायने तुष्टिकरण है। क्या कांग्रेस यह सोच पाई है कि,वह जो खुद को दलित, अति दलित, पिछड़ों अति पिछड़ों और आदिवासियों के प्रति समर्पित दिखती बताती है, उसमें ऐसा क्या हुआ है कि, जिन प्रदेशों में कभी कांग्रेस के लिए यह वर्ग शर्तिया समझे गए, वे क्षेत्रीय दलो के साथ चले गए, और क्या कांग्रेस ने इन मंथन चिंतन में यह भी देखा समझा कि, जातिगत गोस्वारे को देखतने सम्हालने में ऐसा क्या असंतुलन हुआ कि सामान्य वर्ग दूर होते चला गया।
यदि छत्तीसगढ़ में हुए नव संकल्प शिविर के भीतर से आई खबरों, वक्ताओं के भाषण और संवाद की जानकारी लें तो लगता है कि मंथन उस ओर भी हुआ जिसका ज़िक्र पहले पैराग्राफ़ में किया गया है। यह जानना दिलचस्प है कि इस विषय को खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उठाया और विमर्श के साथ साथ अपना नज़रिया भी रखा।सीएम बघेल ने उन मुद्दों को मसलों को सीधे सीधे कहा जिसे कहा जाना जिस पर चर्चा किया जाना कांग्रेस के लिए जरुरी है तब जबकि यह वाक़ई चिंतन हो तब जबकि यह नव संकल्प का विषय हो।
सीएम भूपेश का सियासी सूत्र,राम गाय गोबर और गोमूत्र
छत्तीसगढ़ में तो इसलिए भी क्योंकि जिस भूपेश बघेल की कमान में यहाँ कांग्रेस सरकार है, वह जिस अंदाज में प्रदेश में बीजेपी के पसंदीदा मुद्दों को बीजेपी से छिनकर बीजेपी के ही अंदाज में सामने ला रहे हैं उसने कई बार यह सवाल भी खड़ा किया है कि, क्या भूपेश प्रदेश में कांग्रेस को सॉफ़्ट हिंदुत्व की ओर ले जा रहे हैं। जिन मुद्दों मसलो पर बीजेपी का एकाधिकार था या कि कांग्रेस जिस पर ना केवल दूरी रखती थी बल्कि उस दूरी को यथाशक्ति प्रचारित प्रसारित करती थी, छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल ने उन मुद्दों को राज्य सरकार की फ़्लैगशिप योजना या कि ड्रीम प्रोजेक्ट में तब्दील किया हुआ है। भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में राम भगवान तो हैं, लेकिन उससे भी आगे “हमर भांजा राम” के रिश्ते के साथ प्रचारित हैं,गाय और गोबर को लेकर भी भूपेश बघेल बेहद सहज हैं और साथ ही अब गोबर से आगे गौ मूत्र पर प्रयोगधर्मिता को लेकर उनकी क़वायद देखते ही बनती है।जातीय गर्व का प्रदर्शन भी क़तई छुपा या ढँका नहीं है। ईद पर टोपी की परंपरागत कांग्रेसी पहचान वाली तस्वीरें बिलाशक सीएम बघेल की दिखीं लेकिन हमेशा से वे तस्वीरें ज़्यादा प्रचारित हुईं हैं जिनमें वे लोकपर्व या कि सनातन संस्कृति के प्रतीकों का मान सम्मान और मंदिरों में आराधना उपासना करते दिखे हैं।
सधे पगे तरीके से कौन सी लीक बना रहे सीएम बघेल
कांग्रेस के परंपरागत सियासी अंदाज से जुदा तेवर के साथ दिखते सीएम बघेल क्या नई लीक गढ़ने की क़वायद और कोशिश में हैं या वे सधे पगे अंदाज में यह बताने की क़वायद में है कि, जिसे भाजपा पूरे तेवर से यह बताने की क़वायद करती है कि, कांग्रेस के लिए सनातन धर्म या कि सामान्य वर्ग से आते लोग “प्रिय या वरीयता में नहीं है” ये मानस ग़लत है।नव संकल्प शिविर में जबकि सीएम बघेल ने अपना संबोधन दिया तो उन्होंने उस संबोधन के ज़रिए यह संकेतों में ही सही पर मुकम्मल समझाया कि,आखिर “चूक” कहाँ हो रही है और ध्यान नहीं दिया तो “चुकते” ही रहेंगे। मुख्यमंत्री बघेल ने नव संकल्प शिविर के दोनों दिनों में संबोधन दिया, और दोनों ही दिनों में उन्होंने बहुत साफ साफ़ समझा दिया कि आख़िर मसला क्या है और समाधान क्या है।पहले दिन सीएम बघेल ने अपने उद्बोधन में कहा
आज जो हो रहा है, होता है उसे समझने की जरुरत है..आज स्थिति क्या है ?हम हमेशा अनुसूचित जाति का पक्ष लेते हैं, जनजाति का पक्ष लेते हैं, अल्पसंख्यकों का पक्ष लेते है। विभिन्न राज्यों में हम देखेंगे कि हमारी स्थिति क्या है ? जहां जहां क्षेत्रीय दल मज़बूत नही है, वहाँ अल्पसंख्यक हमारे साथ है, लेकिन जहां क्षेत्रीय दल मज़बूत हैं तो फिर अल्पसंख्यक उस तरफ़ जा रहे हैं।आज होता क्या है ? जहां अल्पसंख्यकों के साथ अन्याय हुआ अत्याचार हुआ टेलीविजन वाले आपके मुंह में माईक लगा देंगे और कहेंगे आप बोलिए और फिर विरोधी दल शुरु हो जाएँगे कि जो कांग्रेस है वो अल्पसंख्यकों के साथ है, वो बहुसंख्यकों के साथ नहीं है।जबकि ऐसा है ही नहीं। आज सबसे ज़्यादा संकट हमारा हमारे अपने विश्वास पर है, और उसको हमको दूर करना होगा।हम जिस वर्ग से आते हैं,जिस धर्म को मानने वाले हैं उसपे हमको गर्व होना चाहिए।धर्म निरपेक्षता की बात करते हैं तो उसका यह मतलब नहीं है कि, धर्मनिरपेक्ष वो है जो हर धर्म से दूर रहे, परिभाषा यह है कि,हम अपने धर्म को मानें और दूसरे के धर्म को भी उतना ही सम्मान दें।हमको अपने वर्ग का प्रतिनिधित्व करना है, हम अपने कार्यक्रमों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यमों से हम जुड़ें।”
सीएम बघेल ने विपक्ष याने बीजेपी और संघ की रणनीति का ज़िक्र करते हुए कहा -
ये लोग डिलिस्टिंग की बात कर रहे हैं, लेकिन कहां कर रहे हैं,वहीं जहां इनकी सरकार नहीं है।ये डिलिस्टिंग क्या है,ये वो है कि अनुसूचित जाति के व्यक्ति द्वारा दूसरा धर्म अपनाए जाने पर आरक्षण का लाभ नहीं मिलता लेकिन अनुसूचित जनजाति का व्यक्ति दूसरा धर्म अपना लेता है तो उसे आरक्षण का लाभ मिलता रहेगा, संविधान में यह व्यवस्था है, क्योंकि आदिवासियों की पूजा पाठ रहन सहन सब देख के उसके हिसाब से ये निर्णय लिया गया क्योंकि उनकी विशेष परंपरा है, उनको किसी जाति धर्म में नहीं डाला जा सकता, इसलिए आदिवासियों को इसका लाभ दिया गया है।आज स्थिति क्या बन रही है, यदि आप दूसरे धर्म को अपनाए तो उसको डिलिस्ट किया जाए।छत्तीसगढ़ में इसकी शुरुआत हो चुकी है।मैं जहां जहां जा रहा हूँ एक दो डेलीगेशन इसकी बात कर रहे हैं।लेकिन पहला सवाल इस बात का है ये वहीं क्यों उठा रहे हैं जहां उनकी सरकारें नहीं है,वहाँ क्यों नहीं उठा रहे हैं जहां उनकी सरकारें हैं।दूसरी बात यदि इसमें संविधान संशोधन करना है तो कौन करेगी वो है भारत सरकार। राज्य सरकार करेगी क्या ? लेकिन ये कोशिश कर रहे हैं कि, कांग्रेस जाकर खड़ी हो जाए किसी तरह,और उसका नुक़सान फिर कांग्रेस को उठाना पड़े।इसमें हम अपनी बात को सामान्य रुप से रख दें सीधी सी बात है, देश में बीजेपी की सरकार है,कुछ राज्यों में भी है, वो उसको पहले करे”
नव संकल्प शिविर के आख़िरी दिन सीएम बघेल ने अपने उद्बोधन में सामाजिक समरसता का दृष्टिकोण सार्थक रुप से अपनाने की बात कही। सीएम बघेल ने कहा
ये लोग अलग अलग जगहों पर अलग अलग एजेंडा लाते हैं, कहीं मुसलमान को अलग, कहीं इसाई को अलग, पर इससे नुक़सान भारत माता का, देश का नुक़सान है।इस बात को समझना होगा और हम लोगों को सक्रिय भागीदारी कर के लड़ाई लड़नी होगी।”
छत्तीसगढ़ कांग्रेस के भीतरखाने जो कुछ हलचल होते रहती है, उसे दरकिनार किया जाना संभव नहीं है।संभव यह भी नहीं है कि, आदिवासियों की जल जंगल ज़मीन बचाने को लेकर उठती संघर्षकी आवाज़ें जो बस्तर से लगायत सरगुजा गूंज रही हैं उसे अनसुना कर दिया जाए।यह असंभव है कि यह देखा लिखा ना जाए कि, स्थानीय होने का गर्व बोध “वाद” में तब्दील हो रहा है, जो कई जगहों पर हिंसक घटनाओं और अप्रिय अस्वीकार्य व्यक्तव्य में जारी हो रहा है। इन सब के साथ यह भी तथ्य है कि, बतौर सीएम बघेल ने कांग्रेस के लिए प्रचारित तुष्टिकरण ही धर्मनिरपेक्षता की धारणा को तोड़ने की गंभीर कवायद की है, बीजेपी से उसका सबसे कारआमद सियासती हथियार छिना नहीं भी है तो उसे इस कदर भोथरा दिया है कि, वह कम से कम छत्तीसगढ़ में उतना कारगर नहीं है,जितना कहीं और होता।