AMBIKAPUR. छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री और प्रदेश में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में से एक टीएस सिंहदेव ने यहां कुछ दिन पहले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बड़ा फैसला लेने की बात कही थी। इसने प्रदेश की राजनीति में चर्चाओं के बाजार को गर्म कर दिया था। पक्ष से लेकर विपक्ष और आम लोग भी तरह-तरह के कयास लगा रहे थे। अब एक बार फिर एक बड़ी बात कहकर शायद उसका संकेत दे दिया है। जी हां, अब उन्होंने कहा कि सच बताऊं तो इस बार चुनाव लड़ने का मन नहीं है।
सरगुजा दौरे पर पहुंचे थे मंत्री सिंहदेव
सरगुजा प्रवास पर आए मंत्री सिंहदेव इन दिनों अपने विधानसभा क्षेत्र के दौरे पर हैं। इसी कड़ी में वे 29 दिसंबर गुरुवार को अंबिकापुर के गांधी स्टेडियम में पहुंचे।यहां उन्होंने महाराजा एमएस सिंहदेव स्मृति ड्यूस बाल क्रिकेट प्रतियोगिता का उद्घाटन किया। पत्रकारों से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि, इस बार मैंने चुनाव लड़ने का मन अभी तक नहीं बनाया है। अगर मन बनाया तो लोगों से पूछकर ही चुनाव लड़ूंगा, वैसे ही जैसे 2008, 2013 और 2018 में विधानसभा चुनाव लड़ा था। तब मैंने पहले से ही मन बनाया था और जनता से पूछकर चुनाव लड़ा था। सही बात बताऊं तो इस बार मेरा मन ही नहीं है, जैसा पहले रहता था।
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मंत्री सिंहदेव के बयान के क्या हैं मायने ?
अब चुनाव नहीं लड़ने का मन नहीं जैसे बयान के बाद भी इसके कई मायने निकाले जाएंगे। सिंहदेव वहीं हैं जिन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में पूरे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के लिए प्रमुख भूमिका निभाई थी। उनके जन घोषणा पत्र का इतना असर देखने को मिला था कि प्रदेश में 15 साल के वनवास के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी संभव हुई। लेकिन, इसके बाद जिस तरह उनकी ही सरकार में उनकी उपेक्षा की गई वे समय-समय पर अलग-अलग बयान देते रहे हैं। लेकिन, अब जैसा बयान आया है उसने मामले का पटाक्षेप कर दिया, ऐसा प्रतीत हो रहा है। बहरहाल, वक्त का इंतजार करना पड़ेगा कि उनके मन में आया ये विचार क्या सच में फलीभूत होगा, या फिर किसी को संदेश पहुंचाने वाला बयान तो नहीं है।
भतीजे को लेकर भी है चर्चा
दूसरी ओर, इस बार उनके चुनाव क्षेत्र में इस बात को लेकर चर्चा है कि चुनाव मैदान में उनके भतीजे आदित्येश्वर शरण सिंहदेव उतर सकते हैं। उनका भतीजा वर्तमान में जिला पंचायत उपाध्यक्ष हैं। जबकि अंबिकापुर विधानसभा सीट पर अपने चाचा के मैदान में होने पर वे पिछले दो चुनावों में वे काफी सक्रिय भी रहे थे। पिछले 3-4 सालों में ये सक्रियता और भी बढ़ी है। कहीं सिंहदेव अपनी राजनीतिक विरासत अगली पीढ़ी को सौंपने की तैयारी में तो नहीं हैं, ये चर्चा भी जोर पकड़ने लगी है।