याज्ञवल्क्य मिश्रा, Narayanpur. माओवादियों के सबसे सुरक्षित ठौर और उनकी हिंसा की वजह से ना केवल राज्य, बल्कि देश में चर्चा का विषय रहने वाला बस्तर फिर चर्चा में है, लेकिन इस बार चर्चा का केंद्रीय विषय माओवाद नहीं है। इस बार मसला आदिवासियों और धर्मांतरित उस समूह के हिंसक टकराव का है, जो मूलतः आदिवासी ही था, लेकिन अब वह मिशनरियों के प्रभाव में ईसाई हो चुका है। धर्मांतरण को लेकर मिशनरियों पर हमेशा से सवाल खड़े किए जाते रहे हैं। यह सवाल विवाद में भी बदले हैं, लेकिन जशपुर से लेकर बस्तर तक में स्थिति इस रूप में दर्ज नहीं हुई थी कि मामला हिंसक हो जाए। अब बस्तर में घटनाएं हिंसक झड़प का रूप ले रही हैं। 2 जनवरी को हिंसा पर उतरी भीड़ को नियंत्रित करने के दौरान नारायणपुर एसपी सदानंद कुमार घायल हो गए। हालांकि, मामले में पूरी ताकत झोंक सदानंद कुमार ने हालात पर काबू पा लिया। धर्मांतरण के मसले में हुए इस विवाद में नारायणपुर पुलिस ने 45 लोगों को गिरफ्तार किया है। खबरें हैं कि 100 से ज्यादा लोगों की तलाश में पुलिस छापेमारी लगातार कर रही है। बस्तर के हालात चेता रहे हैं कि यह मसला यहीं तक थमा नहीं रहेगा। चुनावी साल होने की वजह से इस मामले में सियासत भी है।
2 जनवरी के उपद्रव की पृष्ठभूमि
31 दिसंबर को एड़का के गोर्रा में आदिवासियों और धर्मांतरित समूह के बीच विवाद हुआ। मूलतः यह विवाद चचेरे भाइयों के बीच हुआ और किसी अन्य मसले पर शुरू हुई बहस धर्मांतरण और मूल आदिवासी मसले पर चली गई। आदिवासी समाज का आरोप है कि उन्हें बड़ी संख्या के ईसाई धर्मांतरित समूह ने घेरकर पीट दिया। इस घटना के बाद आदिवासी समाज ने बड़ी बैठक की और इस घटना के विरोध में कई जगहों पर चक्काजाम कर दिया।
आदिवासी समूह की ओर से इस मसले पर धर्मांतरण करने वाले और हमलावर धर्मांतरित के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी। 2 जनवरी को फिर से आदिवासी लामबंद हुए और विषय इस बार भी वही मारपीट का ही था। गुस्साए लोग अलग-अलग समूह में और अलग अलग रास्ते से नारायणपुर के कैथोलिक चर्च पहुंचे और वहां तोड़-फोड़ करने लगे। नेतृत्वहीन भीड़ बेकाबू हो गई थी। यह भीड़ उस स्कूल की तरफ बढ़ना चाहती थी, जो चर्च परिसर के भीतर था, जहां करीब 1200 बच्चे मौजूद थे। एसपी सदानंद कुमार और उनकी टीम हजारों की तादाद में जुटे लोगों को चर्च से बाहर करने की कवायद कर रहे थे, तभी भीड़ ने IPS सदानंद कुमार पर ही हमला कर दिया। सिर से बहते खून को थामते हुए एसपी सदानंद कुमार भीड़ को नियंत्रित करने और खदेड़ने में जुटे रहे। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, यदि पुलिस ने संयमित तरीके से कार्रवाई नहीं की होती तो भीड़ बड़ी घटना कर गुजरती।
आखिर ये विवाद क्या है?
बस्तर में बीते 4 साल से उन घटनाओं में तेज आई है, जिसमें आदिवासी वर्ग और धर्मांतरित समूह के बीच विवाद हो रहा है। चर्च के रूप में मिशनरियों की मौजूदगी 1870 के बाद से लगातार रही है। 1930 के आसपास मिशनरियों ने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम शुरू किया, लेकिन धर्मांतरण के मसले चर्चा या खबरों में आए 80 के दशक से। बताया जाता है कि 1990 के बाद इन खबरों में तेजी आई। उसके बावजूद हिंसक संघर्ष या विवाद के रूप में यह मसला नहीं आया। चार साल के दौरान बस्तर में विभिन्न मंच नुमाया हुए।
वनवासी कल्याण आश्रम के अलावा जनजातीय सुरक्षा मंच ने सरगुजा से बस्तर तक अभियान चलाया। यह अभियान डीलिस्टिंग का था। आदिवासी वर्ग जो कि धर्मांतरित नहीं है, उनकी गोलबंदी करने की कवायद के साथ यह विषय लाया गया। यह ना केवल मुख्यालयों में, बल्कि गांव-गांव तक पहुंचा। डीलिस्टिंग का मसला दरअसल उस कानून की मांग करता है, जिसके तहत धर्मांतरित व्यक्ति यदि वह आदिवासी है तो उसे आदिवासी होने के लाभ से वंचित कर देना चाहिए। इस अभियान के साथ साथ तेजी से बस्तर के भीतर कई गांवों से यह खबरें भी आने लगी कि चर्च की शक्ल में मौजूद ईसाइयों के प्रार्थना गृहों में तोड़फोड़ हो रही है। धर्मांतरित परिवारों को गांव से निकालने की घटनाओं के साथ साथ यह खबरें भी आईं कि धर्मांतरित लोगों की मौत के बाद उनके परिजन को अंतिम संस्कार के लिए गांव में प्रवेश नहीं दिया जा रहा।
क्या कहता है आदिवासी समाज?
इस मसले को लेकर आदिवासी समुदाय के प्रतिनिधि लच्छू कहते हैं-
- “धर्म परिवर्तन करना विवाद का विषय नहीं है। विवाद की वजह आदिवासियों के धार्मिक स्थलों प्रतीकों के जानबूझकर किए जा रहे अपमान की निरंतर शृंखला है। डीलिस्टिंग की मांग में आई तेजी और धर्मांतरण के खिलाफ व्यापक गोलबंदी के बीच धर्मांतरण कर चुके समुदाय ने खुद को ईसाई बताने के बजाय खुद को विश्वासी कहना शुरू किया। इस विश्वासी शब्द को लेकर यह अर्थ लाया गया कि वे अपनी संस्कृति नहीं छोड़ रहे हैं। वे आदिवासी ही हैं, लेकिन अब इनका विश्वास चर्च पर बाइबल पर और ईसाईयत पर है। आदिवासी समाज की आपत्ति इस विश्वासी शब्द पर भी है।”
अघोषित शरणार्थी शिविर में रह रहे हैं धर्मांतरित समूह
आदिवासी वर्ग के आरोप और दलीलों के बीच एक बड़ा समूह नारायणपुर में सामुदायिक भवन में रह रहा है। हम जब यहां पहुंचे तो वहां करीब तीस परिवार ही थे। इन परिवारों का दावा है कि पहले यहां करीब 300 से भी ऊपर लोग थे। यहां रह रहे लोग ईसाई धर्म और बाइबिल पर अटूट श्रद्धा की बात स्वीकारते हैं। ये यह भी मानते हैं कि वे लगातार चर्च जाते हैं और गांव में बने प्रार्थना घर जिन्हें कि आदिवासी समाज चर्च कहता है, वहां नियमित जाते हैं। इन परिवारों का आरोप है कि ईसाईयत की ओर जाने से उन्हें गांव में विरोध झेलना पड़ा। आरोप है कि यह विरोध मारपीट से लेकर गांव से निकालने तक के रूप में सामने आया। इन परिवारों को वापस घर भेजने की प्रक्रिया भी जारी है। ये परिवार बस ये गारंटी चाहते हैं कि इनके साथ फिर दुर्व्यवहार ना हो। नारायणपुर इस कैंप का केंद्र बना है, लेकिन मसला कांकेर, कोंडागांव का भी है। भौगोलिक रुप से नारायणपुर, कांकेर, कोंडागाव जिले से सीधा जुड़ा है, इस कैंप में नारायणपुर के कम लेकिन कांकेर और कोंडागांव ज़िलों के निवासी ज्यादा थे।
मसला सामाजिक, लेकिन सियासत भी तेज
बस्तर आदिवासी बाहुल्य इलाका है। सत्ता की राह बस्तर और सरगुजा से होकर ही जाती है। चुनावी साल में मसला सियासती भी हो गया है। बीजेपी खुले तौर पर धर्मांतरण पर आक्रामक है। बीजेपी प्रवक्ता केदार कश्यप कहते हैं कि यह हमारी संस्कृति हमारी जीवन पद्धति पर हमला है। मिशनरियों के बहकावे में अब हम पर हमला भी हो रहा है। हम यह लड़ाई अंतिम व्यक्ति की वापसी तक जारी रखेंगे। खुद को विश्वासी के रुप में प्रचारित करना दरअसल ईसाई होकर भी आदिवासी होने का लाभ लेने की कवायद है। हमारे शासनकाल को लेकर कांग्रेस जो यह आरोप लगाती है कि धर्मांतरण हुए हैं तो उन्हे पता होना चाहिए कि तब यह झूठ नहीं था। यह झूठ इसलिए भी है क्योंकि धर्मांतरण के आँकड़े सामने ना आएं।
केदार कश्यप की इस बात के साथ यह भी याद रखिए कि प्रदेश की पूर्व बीजेपी संगठन प्रभारी डी पुरंदेश्वरी ने तीन साल पहले बस्तर दौरा किया था और लौटने पर मीडिया को बयान दिया था कि धर्मांतरण अहम मुद्दा रहेगा। इधर, कांग्रेस सरकार ने राज्य में NSA को और शक्तिशाली और व्यापक करते हुए नोटिफिकेशन जारी किया है। वहीं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने धर्मांतरण के मसले को बीजेपी प्रायोजित बताते हुए कह चुके है कि सबसे ज्यादा चर्च और धर्मांतरण बीजेपी के पंद्रह साल में हुए हैं, पूरी लिस्ट है, बीजेपी के पास कोई और मुद्दा नहीं है तो वह इस तरह की बातें करके माहौल बिगाड़ना चाहती है।
अंदरूनी इलाकों में हालात बेहद तनावपूर्ण
छत्तीसगढ़ के अंदरूनी इलाकों में हालात बेहतर नहीं है। नारायणपुर वाले घटनाक्रम के करीब 2 साल पहले सुकमा जिले के एसपी ने 12 जुलाई 2021 को पत्र जारी किया था। यह पत्र एसपी ने सुकमा ज़िले के सभी थानों के लिए जारी किया था। उस पत्र में लिखा था- जिले में रहने वाले ईसाई मिशनरियों और धर्म परिवर्तित लोगों द्वारा लगातार अंदरूनी क्षेत्रों में भ्रमण कर स्थानीय आदिवासियों को बहला-फुसलाकर और ईसाई समुदाय में होने वाले लाभ का लालच देकर आदिवासियों को धर्मांतरण के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इसके कारण भविष्य में स्थानीय आदिवासी और धर्म परिवर्तित समूह के बीच विवाद की स्थिति बनने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। अतः जिले में निवासरत ईसाई मिशनरियों एवं धर्म परिवर्तित समूह पर सतत निगाह रखते हुए इनके द्वारा किसी भी प्रकार की अवांछनीय गतिविधि परिलक्षित पाए जाने पर विधि संगत आवश्यक कार्यवाही सुनिश्चित करें।
इसी समय तत्कालीन बस्तर कमिश्नर जीआर चुरेंद्र ने भी एक पत्र जारी किया था, जिसमें धर्मांतरण को बेहद गंभीर मसला बताते हुए गंभीर चिंता जताई गई थी। लेकिन तब हंगामा बरप गया और सरकार की भौंहे ऐसी तनीं कि बस्तर कमिश्नर चुरेंद्र की बस्तर से रवानगी हो गई। कमोबेश यही मसला सुकमा एसपी के पत्र को लेकर हुआ, लेकिन बस इतना अंतर रहा कि सुकमा एसपी का ट्रांसफर नहीं हुआ। इन दोनों पत्रों के सार्वजनिक हो जाने से उन खबरों पर एक तरह से मुहर लग गई कि हालात ना केवल गंभीर हैं, बल्कि बेहद तनावपूर्ण हैं।