RAIPUR. साल 2023 के अंत मे होने वाले छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के लिए आदिवासी अंचल बस्तर में भी सियासी कवायद तेज हो गई है। बस्तर में विधानसभा की कुल 12 सीटें है जिन पर वर्तमान में कांग्रेस का कब्जा है। 2018 के विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त झेल चुकी बीजेपी इस चुनाव में पिछली हार का बदला लेने व्याकुल दिखाई दे रही है।
गांधी परिवार से बस्तर के लोगों का पुराना नाता
- 1955 में आदिवासी सम्मेलन में आए थे नेहरू
इसी बीच 13 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के बस्तर दौरे पर पहुंचीं कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने गोंडी बोली में अभिवादन के साथ अपनी बात की शुरुआत की। कहा कि, उनके परिवार का बस्तर से विशेष लगाव रहा है। वह यहां पर पहली बार आई हैं, लेकिन बचपन से बस्तर के बारे में, यहां के लोगों के संघर्ष के बारे में सुनती आई हैं।
- प्रियंका के दौरे के सियासी मायने
राजनीतिक जानकारों की मानें तो बस्तर के आदिवासियों के लिए प्रियंका गांधी केवल एक कांग्रेस नेता नहीं, बल्कि इंदिरा की पोती भी हैं। लिहाजा आदिवासियों का भावनात्मक लगाव भी प्रियंका गांधी से जुड़ा हुआ है। छत्तीसगढ़ में इस वक्त बस्तर लोकसभा समेत विधानसभा की सभी 12 सीटों में कांग्रेस के विधायक हैं। पार्टी इस बात को बखूबी जानती है की सत्ता तक जाने की राह आदिवासी बाहुल्य बस्तर से होकर ही गुजरती है। इसलिए चुनाव से पहले प्रियंका के दौरे से कांग्रेस अपनी जमीन और ज्यादा मजबूत करना चाहेगी। गांधी परिवार से इंदिरा, राजीव, सोनिया और राहुल गांधी भी बस्तर आ चुके हैं।
बस्तर में अचानक सांप्रदायिक घटनाएं बढ़ी
बस्तर जैसे आदिवासी इलाके में भी पिछले बरसों में लगातार बढ़ते आया है जहां गांवों में कुछ आदिवासियों के ईसाई बनने पर उसे धर्मांतरण कहते हुए उसका हिंसक विरोध हुआ, लोगों को मारा-पीटा गया, ऐसे ईसाई बने लोगों के शव गांव के कब्रिस्तान में दफनाने नहीं दिए गए, और जगह-जगह पुलिस और प्रशासन को दखल देना पड़ा। इससे पूरे प्रदेश में जगह-जगह किसी घर में चलती ईसाई प्रार्थना सभा में घुसकर बजरंग दल जैसे संगठनों ने हुड़दंग किया और इसे धर्मांतरण की कोशिश बताते हुए प्रशासन से उसका विरोध किया।
आदिवासी से ईसाई धर्म अपना चुके लोगों के बीच हिंसक झड़पें
भाजपा धर्मांतरण की राजनीति को प्रदेश स्तर पर आक्रामक ढंग से उठाते हुए कांग्रेस को घेरने की कोशिश कर रही है। छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में पिछले 6 महीने से भिन्न-भिन्न जगहों पर 'धर्मांतरण' का मुद्दा उठ रहा है। कई जगहों पर आदिवासी और आदिवासी से ईसाई धर्म अपना चुके लोगों के बीच हिंसक झड़पें भी हुईं।
बीजेपी-कांग्रेस में अंतर्कलह...
बस्तर में बीजेपी और कांग्रेस दोनों दलों में एक समानता है कि दोनों दल आंतरिक कलह का शिकार हैं। जमीनी कार्यकर्ता अपने नेताओं पर उपेक्षा का आरोप लगा रहे हैं। कांग्रेस सत्तारूढ़ दल है, इसलिए लोग खुलकर बोलने से परहेज करते हैं, पर दबी जुबान से आलाकमान और अपने लोगों के बीच इसे व्यक्त करने से गुरेज भी नही करते। वहीं, बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ पिछली विधानसभा के दौरान उपजे असंतोष से लोग अब तक नहीं उबर पाए हैं। वर्तमान में स्थानीय स्तर में उनके ही हाथों में संगठन की कमान भी है, इसलिए हालात ज्यादा नहीं सुधार पा रहे। बीजेपी के पास योग्य सेकंड लाइन लीडरशिप भी नहीं है, इसलिए संभावित प्रत्यशियों को लेकर कांग्रेस से तुलना होती है तो बीजेपी, कांग्रेस के मुकाबले उन्नीस साबित होती है। जीतने योग्य नए प्रत्याशियों की तलाश बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रहा है।
धर्मांतरण को लेकर बस्तर में सर्व आदिवासी समाज मुखर रहा है
बस्तर अनुसूचित क्षेत्र है। यहां संविधान की पांचवीं अनुसूची लागू है। आरक्षण, पेसा कानून,आदिवासी गावों में ड्रोन हमाले और धर्मांतरण को लेकर बस्तर में सर्व आदिवासी समाज काफी मुखर रहा है। वहीं, पेसा एक्ट को लेकर बने कानून को कागजी बताते हए भाकपा भी लगातार आंदोलन करती आ रही है।