Raipur. आरक्षण विधेयक को लेकर मसला एक बार फिर गरमा गया है। राज्यपाल अनुसूईया उईके ने इस मसले पर मार्च तक इंतज़ार की बात कही तो सीएम बघेल ने तीखी टिप्पणी करते हुए सवालिया लहजे में कह दिया कि मार्च में क्या कोई मुहूर्त निकला है। राज्यपाल पर टिप्पणी कांग्रेस संगठन ने भी की। इस पूरे मसले पर राजभवन की ओर से मीडिया को पत्र भेजा गया है, जिसमें राज्यपाल पर टिप्पणी को लेकर नाराज़गी जताई गई है। राजभवन से जारी इस पत्र में मुख्यमंत्री बघेल अथवा कांग्रेस का ज़िक्र नहीं है लेकिन टिप्पणियों का संदर्भ उन्हीं से जोड़ कर देखा जा रहा है।राजभवन से जारी इस पत्र में मार्च के उल्लेख का ब्यौरा भी दिया गया है, ब्यौरे में मार्च की बात को सुप्रीम कोर्ट में लंबित आरक्षण याचिका से संबंधित बताया गया है।
राजभवन के तेवर तल्ख़, लिखा - “कुछ लोग”
राजभवन से जारी इस पत्र में राज्यपाल पर की जा रही टिप्पणियों पर नाराज़गी जताई गई है। लेकिन जिन शब्दों में इसको ज़ाहिर किया गया है, वह विशेष तौर पर ध्यान खींचता है। विदित हो कि राज्यपाल के मार्च वाले बयान पर टिप्पणी या तो खुद सीएम बघेल ने की या फिर कांग्रेस संगठन की ओर से टिप्पणी की गई।राजभवन के इस बयान में लिखा गया है
“कुछ लोगों द्वारा संवैधानिक प्रमुख के लिए अमर्यादित भाषा बोलना उपयुक्त नहीं है”
मार्च से आशय सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिका से, जिसमें सरकार ने जवाब दाखिल नहीं किया
राजभवन से जारी इस पत्र में दस बिंदु हैं जिनमें से छ बिंदु मार्च वाली टिप्पणी का संदर्भ प्रसंग बताते हैं। पत्र में लिखा गया है
“शासन एवं सर्व आदिवासी समाज के प्रकाश ठाकुर द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में एक पिटीशन लगाई गई है।जिसमें हाईकोर्ट के दिनांक 19 सितंबर 2022 के निर्णय से जनजाति समाज का आरक्षण 32 प्रतिशत से घटकर 20 प्रतिशत हो गया है। शासन एवं सर्व आदिवासी समाज द्वारा हाईकोर्ट के निर्णय के विरुध्द स्थगन माँगा गया था, किंतु कोर्ट द्वारा स्थगन नहीं दिया गया है। इस पिटीशन में समाज की माँग है कि,उनका आरक्षण वापिस 32 प्रतिशत किया जाए। दिनांक 16 दिसंबर 2022 को हियरिंग थी जिसमें छत्तीसगढ़ शासन द्वारा एक महीने का समय उत्तर देने के लिए माँगा गया, दिनांक 16 जनवरी 2023 को भी शासन द्वारा उत्तर प्रस्तुत नहीं किया गया।सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपनी ओर से सभी पक्ष को 4 मार्च 2023 तक उत्तर देने के लिए कहा और दिनांक 22-23 मार्च 2023 को अंतिम सुनवाई कर अपना निर्णय देने की बात कही गई है।इसी परिप्रेक्ष्य में राज्यपाल द्वारा पत्रकार को उत्तर दिया गया है, जिसका अर्थ लंबित आरक्षण विधेयक से जोड़ दिया गया है, जबकि राज्यपाल का उत्तर सुप्रीम कोर्ट के परिप्रेक्ष्य में था।”
अंतिम बिंदु में फिर से बताया - नहीं मिली आयोग की रिपोर्ट,सवालों के जवाब भी संतोषजनक नहीं
राजभवन की ओर से जारी पत्र के अंतिम बिंदु में एक बार से बताया गया है कि, राज्यपाल को क्वांटिफाएबल डाटा आयोग की रिपोर्ट नहीं मिली है। पत्र में लिखा गया है
“राज्यपाल महोदया द्वारा पूर्व में भी शासन से क्वांटिफाएबल डाटा आयोग की रिपोर्ट तलब की गई है, जो कि प्राप्त नहीं हुई है, साथ ही उन्हें 10 प्रश्नों का उत्तर भी संतोषजनक नहीं मिला है।”
राजभवन की ओर से जारी पत्र देखने हेतु कृपया लिंक क्लिक करें
राजभवन के तल्ख़ तेवर, राजभवन ने लिखा - कुछ लोगों द्वारा संवैधानिक प्रमुख के लिए अमर्यादित भाषा बोलना उपयुक्त नहीं
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Raipur. आरक्षण विधेयक को लेकर मसला एक बार फिर गरमा गया है। राज्यपाल अनुसूईया उईके ने इस मसले पर मार्च तक इंतज़ार की बात कही तो सीएम बघेल ने तीखी टिप्पणी करते हुए सवालिया लहजे में कह दिया कि मार्च में क्या कोई मुहूर्त निकला है। राज्यपाल पर टिप्पणी कांग्रेस संगठन ने भी की। इस पूरे मसले पर राजभवन की ओर से मीडिया को पत्र भेजा गया है, जिसमें राज्यपाल पर टिप्पणी को लेकर नाराज़गी जताई गई है। राजभवन से जारी इस पत्र में मुख्यमंत्री बघेल अथवा कांग्रेस का ज़िक्र नहीं है लेकिन टिप्पणियों का संदर्भ उन्हीं से जोड़ कर देखा जा रहा है।राजभवन से जारी इस पत्र में मार्च के उल्लेख का ब्यौरा भी दिया गया है, ब्यौरे में मार्च की बात को सुप्रीम कोर्ट में लंबित आरक्षण याचिका से संबंधित बताया गया है।
राजभवन के तेवर तल्ख़, लिखा - “कुछ लोग”
राजभवन से जारी इस पत्र में राज्यपाल पर की जा रही टिप्पणियों पर नाराज़गी जताई गई है। लेकिन जिन शब्दों में इसको ज़ाहिर किया गया है, वह विशेष तौर पर ध्यान खींचता है। विदित हो कि राज्यपाल के मार्च वाले बयान पर टिप्पणी या तो खुद सीएम बघेल ने की या फिर कांग्रेस संगठन की ओर से टिप्पणी की गई।राजभवन के इस बयान में लिखा गया है
“कुछ लोगों द्वारा संवैधानिक प्रमुख के लिए अमर्यादित भाषा बोलना उपयुक्त नहीं है”
मार्च से आशय सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिका से, जिसमें सरकार ने जवाब दाखिल नहीं किया
राजभवन से जारी इस पत्र में दस बिंदु हैं जिनमें से छ बिंदु मार्च वाली टिप्पणी का संदर्भ प्रसंग बताते हैं। पत्र में लिखा गया है
“शासन एवं सर्व आदिवासी समाज के प्रकाश ठाकुर द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में एक पिटीशन लगाई गई है।जिसमें हाईकोर्ट के दिनांक 19 सितंबर 2022 के निर्णय से जनजाति समाज का आरक्षण 32 प्रतिशत से घटकर 20 प्रतिशत हो गया है। शासन एवं सर्व आदिवासी समाज द्वारा हाईकोर्ट के निर्णय के विरुध्द स्थगन माँगा गया था, किंतु कोर्ट द्वारा स्थगन नहीं दिया गया है। इस पिटीशन में समाज की माँग है कि,उनका आरक्षण वापिस 32 प्रतिशत किया जाए। दिनांक 16 दिसंबर 2022 को हियरिंग थी जिसमें छत्तीसगढ़ शासन द्वारा एक महीने का समय उत्तर देने के लिए माँगा गया, दिनांक 16 जनवरी 2023 को भी शासन द्वारा उत्तर प्रस्तुत नहीं किया गया।सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपनी ओर से सभी पक्ष को 4 मार्च 2023 तक उत्तर देने के लिए कहा और दिनांक 22-23 मार्च 2023 को अंतिम सुनवाई कर अपना निर्णय देने की बात कही गई है।इसी परिप्रेक्ष्य में राज्यपाल द्वारा पत्रकार को उत्तर दिया गया है, जिसका अर्थ लंबित आरक्षण विधेयक से जोड़ दिया गया है, जबकि राज्यपाल का उत्तर सुप्रीम कोर्ट के परिप्रेक्ष्य में था।”
अंतिम बिंदु में फिर से बताया - नहीं मिली आयोग की रिपोर्ट,सवालों के जवाब भी संतोषजनक नहीं
राजभवन की ओर से जारी पत्र के अंतिम बिंदु में एक बार से बताया गया है कि, राज्यपाल को क्वांटिफाएबल डाटा आयोग की रिपोर्ट नहीं मिली है। पत्र में लिखा गया है
“राज्यपाल महोदया द्वारा पूर्व में भी शासन से क्वांटिफाएबल डाटा आयोग की रिपोर्ट तलब की गई है, जो कि प्राप्त नहीं हुई है, साथ ही उन्हें 10 प्रश्नों का उत्तर भी संतोषजनक नहीं मिला है।”
राजभवन की ओर से जारी पत्र देखने हेतु कृपया लिंक क्लिक करें