Bilaspur। उच्च स्तरीय जाति छानबीन समिति के द्वारा कोरबा ज़िले में पदस्थ महिला बाल विकास विभाग की सुपरवाइज़र के जाति प्रमाण पत्र को निरस्त किए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने जाति प्रमाण पत्र निरस्त किए जाने के आदेश पर रोक लगाते हुए सुपरवाइज़र के खिलाफ किसी संभावित कार्यवाही पर भी आगामी आदेश तक रोक लगा दी है।
कोरबा के महिला बाल विकास विभाग में सुपरवाइज़र पद पर पदस्थ श्रीमती रुपा रोजनिल बारिया की नियुक्ति अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित पद पर हुई थी। श्रीमती रुपा ने अपनी जाति ईसाई ( भील ) दर्शाई थी। इस की जाँच उच्च स्तरीय जाति छानबीन समिति ने की और तय नियमों के अनुरुप पाया कि सन् 1950 के पूर्व का कोई भी दस्तावेज जाति को सिद्ध करने वाला पेश नहीं किया गया।इस आधार पर हाईपॉवर कमेटी ने जाति प्रमाण पत्र निरस्त कर दिया।
इस पर हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई जिसमें यह तर्क दिया गया कि,अजा, अजजा और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए किसी भी जाति प्रमाण पत्र के सत्यापन की अधिकारिता जिला स्तरीय छानबीन समिति को है, लेकिन श्रीमती बारिया के मामले में सीधे उच्च स्तरीय जाति छानबीन समिति के द्वारा सत्यापन किया गया। याचिका में आवेदिका के अधिवक्ताओं मतीन सिद्दीक़ी और नरेंद्र मेहर ने इसे नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ बताया। याचिका की सुनवाई जस्टिस पार्थप्रतीम साहू ने करते हुए हाई पॉवर कमेटी के जाति प्रमाण पत्र के निरस्त किए जाने के आदेश पर रोक लगाते हुए पर्यवेक्षिका के खिलाफ किसी भी कार्यवाही पर रोक लगाने का आदेश जारी कर दिया। हाईकोर्ट ने महिला बाल विकास विभाग के सचिव, हाई पावर कमेटी के अध्यक्ष और सचिव को नोटिस जारी कर जवाब माँगा है।