Raipur. आरक्षण विधेयक मसले को लेकर राज्य सरकार की ओर से हाईकोर्ट में पेश याचिका जिसमें राजभवन सचिवालय के ज़रिए राज्यपाल आरोप के केंद्र में हैं उसे लेकर राज्यपाल अनुसूईया उईके की ओर से बेहद कड़े तेवर के साथ पत्र राज्य के मुख्य सचिव अमिताभ जैन को भेजा गया है।राज्यपाल सुश्री अनुसूईया उईके की ओर से राज्यपाल के सचिव ने यह पत्र भेजा है।इस पत्र में राज्यपाल अनुसूईया उईके ने राज्य शासन और महाधिवक्ता के विरुध्द ‘घोर अप्रसन्नता’ ( Grave Displeasure ) शब्द के साथ नाराज़गी जताई है।इस पत्र को लेकर कि क्या कोई ऐसा पत्र लिखा गया भेजा गया है का प्रश्न जवाबदेह अधिकारियों से किया गया और उन्होंने इसकी पुष्टि की लेकिन नाम का उपयोग करने या कि पहचान सार्वजनिक करने से मना कर दिया है।
क्या लिखा है पत्र में
राज्यपाल के सचिव अमृत खलखो की ओर से जारी पत्र में जो कि राज्य के मुख्य सचिव को संबोधित है, उसमें राज्य सरकार द्वारा हाईकोर्ट में राज्यपाल के सचिवालय के विरुध्द प्रस्तुत WPC क्रमांक 2473/2023 दिनांक 31 जनवरी 2023 के उल्लेख के साथ लिखा गया है
“राज्यपाल महोदया को विभिन्न समाचार पत्रों एवं विभिन्न प्रिंट मीडिया के माध्यम से एवं माननीय उच्च न्यायालय की वेबसाइट के केस डिटेल से ज्ञात हुआ है कि, राज्य शासन ने माननीय राज्यपाल महोदया के सचिवालय के विरुध्द रिट याचिका छत्तीसगढ़ लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण) (संशोधन) विधेयक,2022 क्रमांक 19 एवं 19 सन् 2022) में माननीया राज्यपाल महोदया को निर्देश देने एवं माननीय राज्यपाल की अनुच्छेद 200 के तहत प्रदान की गई शक्तियों के संबंध में प्रस्तुत किए हैं।उक्त रिट याचिका में राज्य शासन की ओर से राज्य शासन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री कपिल सिब्बल एवं राज्य के एडवोकेट जनरल श्री सतीश चंद्र वर्मा भी उपस्थित हुए।राज्य शासन का माननीय राज्यपाल महोदया के विरुध्द उक्त प्रकार से रिट याचिका प्रस्तुत करना और उसमें राज्य के एडवोकेट जनरल द्वारा माननीय राज्यपाल के विरुध्द पैरवी करना माननीय उच्चतम न्यायालय की उक्त संवैधानिक पीठ द्वारा पारित निर्णय दिनांक 24 जनवरी 2006 के पैरा 173 के पूर्णतः विरुध्द है। ऐसा अभिमत माननीया राज्यपाल का है…. उक्त संवैधानिक पीठ ने अपने निर्णय के पैरा 173 में यह अभिनिर्धारित किया है कि, यदि राज्यपाल के विरुध्द कोई रिट याचिका प्रस्तुत होती है तो उसमें राज्यपाल की प्रतिरक्षा शासन द्वारा होती है।इस संबंध में संविधान का अनुच्छेद-361 भी अवलोकनीय है, जिसमें यह प्रावधान है कि,राज्य के राज्यपाल अपने पद की शक्तियों के प्रयोग और कर्तव्यों का पालन करते हुए अपने द्वारा किए गए या किये जाने के लिए तात्पर्यापित किसी कार्य के लिए किसी न्यायालय को उत्तरदायी नहीं होगा।अतः उक्त संदर्भित संवैधानिक पीठ के निर्णय एवं संविधान के अनुच्छेद 361 को न केवल राज्य शासन ने विचार में लिया है और न ही राज्य के महाधिवक्ता ने विचार में लिया है।अतः महाधिवक्ता द्वारा राज्यपाल या उनके सचिवालय के विरुध्द रिट याचिका प्रस्तुत करना माननीय राज्यपाल महोदया के अभिमत के अनुसार महाधिवक्ता के कदाचरण को दर्शाता है।… वर्ष 2012 में लागू किये गये 58 प्रतिशत आरक्षण के संबंध में माननीय उच्चतम न्यायालय में कुल 11 रिट याचिकायें प्रस्तुत की गई है, जिस पर निर्णय आना अभी शेष है,और ऐसी स्थिति में राज्य शासन द्वारा माननीय उच्च न्यायालय में रिट याचिका प्रस्तुत करना देश की संवैधानिक संस्थाओं की अवमानना एवं अपमान करने के बराबर भी है।”
राजभवन से जारी पत्र जो कि तीन पृष्ठों में है।अंतिम पृष्ठ पर पत्र में लिखा गया है
“उक्त दर्शित एवं उल्लेखनीय परिस्थितियों में माननीया राज्यपाल महोदया ने राज्य शासन एवं राज्य के महाधिवक्ता के विरुध्द “घोर अप्रसन्नता” (Grave Displeasure) व्यक्त की है।… आप माननीय राज्यपाल महोदया के अवलोकनार्थ रखने हेतु राज्य के महाधिवक्ता से इस आशय की तीन दिन के अंदर टीप आहूत करें कि, उन्होंने किन परिस्थितियों में माननीय राज्यपाल महोदया के विरुध्द शासन की ओर से रिट याचिका प्रस्तुत की है।”
बोले AG सतीश चंद्र वर्मा
इस पत्र को लेकर जिसमें राज्य के महाधिवक्ता से जवाब लेने के निर्देश उल्लेखित हैं,हमने राज्य के महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा से संपर्क कर प्रतिक्रिया माँगी। AG सतीश चंद्र वर्मा ने कहा
““मेरे पास ऐसा कोई पत्र आया नहीं है, जबकि आएगा तो मैं इस पर अपनी प्रतिक्रिया दूँगा, यह जरुर बता सकता हूँ मैं संवैधानिक पद पर हूँ, और किसी प्रश्न का जवाब देने बाध्य नहीं हूँ”