RAIPUR. छत्तीसगढ़ में एक बार फिर आरक्षण का मुद्दा गर्मा गया है। दरअसल, रायपुर के कृषि विवि के एक कार्यक्रम में आज राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन पहुंचे। इस दौरान आरक्षण पर सवाल पूछा गया तो राज्यपाल ने कहा कि मुख्यमंत्री से पूछे, यह सियासी मसला है। इसके बाद मुख्यमंत्री ने कहा कि मैंने तो प्रधानमंत्री को पत्र लिखा, लेकिन उधर से जवाब नहीं आ रहा है। कुल मिलाकर भारतीय जनता पार्टी आरक्षण के खिलाफ में है। मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि विधानसभा से जो पारित है वो विधेयक राजभवन में अटका है। हमें कृषि महाविद्यालय शुरू करने हैं और भी महाविद्यालय खोले जा रहे हैं।
आज मीडिया से चर्चा करते हुए सीएम भूपेश ने कहा कि अब हमें भर्ती करनी है, स्टाफ की, असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती करने पड़ेगी लेकिन जब तक कि आरक्षण की बिल लटका हुआ तब तक हम भर्ती नहीं कर पा रहे हैं। मुख्यमंत्री ने बहुत सारे विभाग है जिनमें हमें भर्ती करनी है लेकिन भर्ती अटकी है। चाहे एजुकेशन हो, पुलिस हो, चाहे हेल्थ डिपार्टमेंट हो, एग्रीकल्चर की बात हो, इरीगेशन की बात तो सब में भर्ती करनी है लेकिन भर्ती रुकी हुई है। दूसरी तरफ यह है कि एग्जाम भी होनी है उसमें भी आरक्षण का मामला है, इसलिए फैसला करना चाहिए।
बीजेपी का हमला... बृजमोहन बोले- पुराने आरक्षण पर नौकरियां दे सरकार
इधर, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखी चिट्ठी पर वरिष्ठ भाजपा नेता एवं पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने हमला बोला है। बृजमोहन ने कहा कि मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ वासियों को गुमराह करने की कोशिश के रहे है। उन्हें भी पता है कि जिस विधेयक के ऊपर राज्यपाल के हस्ताक्षर न हुए हो वो विधेयक न तो विधानसभा में पारित हो सकता है न ही नौवीं अनुसूची में शामिल हो सकता है। वो केवल हवा हवाई बातों से जनता को बरगलाने की कोशिश कर रहे है। बृजमोहन ने कहा कि उनका मानना है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट से आरक्षण पर निर्णय नहीं हो जाता तब तक पूर्व की 50 प्रतिशत या फिर 58 प्रतिशत आरक्षण के आधार पर भर्तियां शुरू करनी चाहिए।
ये है पूरा मामला
छत्तीसगढ़ विधानसभा में 2 दिसंबर को आरक्षण बिल पारित हुआ। इसमें अनुसूचित जनजाति के लिए 32 फीसदी, ओबीसी के लिए 27 फीसदी, अनुसूचित जाति के लिए 13 फीसदी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 4 फीसदी आरक्षण कर दिया गया। विधेयक को मंजूरी के लिए राज्यपाल के पास भेजा गया। तत्कालीन राज्यपाल अनुसूईया उइके ने इसे मंजूरी नहीं दी और अपने पास रख लिया। राज्यपाल बदल गए लेकिन आरक्षण बिल पर अब तक हस्ताक्षर नहीं हुअा है। इसके बाद से सिर्फ सियासत ही चल रही है।