Raipur. प्रदेश की राजनीति में हॉटकेक बने खैरागढ़ उप चुनाव में कल मतगणना है, और ग़ौरतलब है कि कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ओर खामोशी है। जबकि उप चुनाव में 78.92 फ़ीसदी मतदान हुआ तो बंफर पोलिंग के दौरान मतदाता ख़ामोश था, और अब जबकि कुछ घंटो के बाद मतदाता का फ़ैसला ईव्हीएम के ज़रिए सामने होगा, सभी राजनैतिक दल ख़ामोश हैं।
90 विधायकों वाली छत्तीसगढ़ विधानसभा में सत्तर विधायकों का हिमालयीन बहुमत कांग्रेस के साथ है, सत्रह महिने के भीतर प्रदेश में विधानसभा चुनाव है।इस उप चुनाव को मुख्यमंत्री बघेल ने सेमीफाइनल करार दिया, और खैरागढ़ को ज़िला बनाए जाने की बरसों पुरानी माँग को सशर्त घोषणा पत्र के रुप में मतदाताओं के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। घोषणा पत्र में एक तहसील और उप तहसील का भी ऐलान किया गया।वह मान्यता कि उप चुनाव राजनैतिक दल नहीं बल्कि जिस दल की सरकार होती है उसके पक्ष में सरकार लड़ाई लड़ती है और खैरागढ़ में उप चुनाव को इसी अंदाज से देखा ही जा रहा था लेकिन 2013 में बेहद बुरी तरह हार कर केवल पंद्रह स्थानों पर सिमटी भाजपा ने जिस तरीक़े से चुनावी संग्राम में एंट्री ली और बेहद प्रभावी तरीक़े से चुनाव में शामिल हुई उसने समीक्षकों को चौंका कर रख दिया।
कांग्रेस ने बनाई नई रणनीति
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनकी कोर टीम को नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ी और पहले चार दिनों का सीएम बघेल का कार्यक्रम तय किया गया जो चार दिन और बढ़ गया। मुख्यमंत्री बघेल का उड़नखटोला खैरागढ़ में जगह जगह उतरता रहा और रिकॉर्ड 27 से उपर सभाएं सीएम बघेल ने ली।प्रदेश में भाजपा इस उप चुनाव के पहले जिस अंदाज में थी, उसी को लेकर बहुत आसानी थी कि कांग्रेस इस चुनाव में केवल मुख्यमंत्री बघेल का चेहरा प्रोजेक्ट कर चुनाव लड़ती, वो मुख्यमंत्री बघेल जिन्हें उनके विश्वसनीय समर्थक जो बेहद प्रभावी रुप से उन्हे पिछड़ा वर्ग का सबसे प्रभावी चेहरा और किसानों के प्रति समर्पित नेता के रुप में स्थापित करने की क़वायद करते हैं, इस खैरागढ़ में मतदाता किसान है और पिछड़े वर्ग की प्रभावी निर्णायक संख्या भी, और कांग्रेस ने वही किया भी। मुख्यमंत्री बघेल को एकमात्र स्टार प्रचारक बता कर चुनावी समर में कूद गई।
बीजेपी की एकजुटता रंग लाएगी?
भाजपा ने जो एकजुटता के साथ रणनीतिक क़वायद की. उसने साबित किया कि भाजपा को एकदम कमजोर समझना चुक हो गई है।हालाँकि ज़िले के मुद्दे पर भाजपा घिर रही थी,और कांग्रेस की ज़िले की घोषणा माहौल बनाते दिखी लेकिन ज़िले को लेकर सशर्त घोषणा ने भाजपा को सवाल उठाने का मौक़ा दे दिया। ज़िले बनाएँगे की घोषणा को जीत का तुरुप इक्का मानने वाली कांग्रेस इस चुनाव में राम के आसरे भी नुमाया हुई।
खामोश मतदाता, हैवी पोलिंग
लेकिन इस पूरी हलचल सक्रियता के बीच मतदाता पूरी तरह ख़ामोश रहा। 211516 मतदाता संख्या वाले खैरागढ़ में 165798 मत पड़े और खैरागढ़ ने बीते पाँच चुनावों ( विधानसभा ) में बंफर पोलिंग का रिकॉर्ड बरकरार रखा और 78.39फ़ीसदी मतदान दर्ज किया गया।आदिवासी बाहुल्य और भाजपा के लिए चुनौती बनने वाले साल्हेवारा पैलीमेटा इलाक़ा हो या छुई खदान-गंडई ईलाका जिसे भाजपा का मज़बूत इलाक़ा माना जाता था या फिर खैरागढ़ शहर और ग्रामीण क्षेत्र इन सब पर कल नज़रें टिकी रहेंगी। इस सभी इलाक़ों में भाजपा कांग्रेस ने पूरी ताक़त झोंकी और मतदाता ख़ामोश रहा, लेकिन ज़बर्दस्त मतदान के साथ उसने अपना फ़ैसला भी दर्ज करा दिया है। मतदाता की ख़ामोशी और हैवी पोलिंग के कारण कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ही फ़िलहाल पूरी विश्वसनीयता के साथ कुछ नहीं बोल रहे हैं।
जीत की संजीवनी किसे
283 मतदान केंद्रों में दर्ज फ़ैसले की गिनती सुबह आठ बजे से शुरु होगी, मतगणना 21 राउंड की होनी है। ईव्हीएम की मशीनें जब आँकड़े बताने लगेंगी तो समझ आएगा कि किसे जीत का जश्न मनाना है और किसके लिए सबक़ सीखना शेष है।यहाँ यह भी ध्यान रखना होगा कि, भाजपा के लिए जीत संजीवनी है लेकिन यदि हार के आँकड़े भी नज़दीकी हुए तो भाजपा उसे अपने खाते दर्ज करेगी ही, और यदि विशाल मतों के अंतर से कांग्रेस ने जीत दर्ज कर ली तो बिलाशक उत्तर प्रदेश चुनाव की ज़िम्मेदारी सम्हालने वाले मुख्यमंत्री भूपेश और उनके विश्वस्त समर्थकों के लिए यह बोलने का अवसर होगा कि यूपी की बात अलग है छत्तीसगढ़ में तो कका ज़िंदा हैं।