नई दिल्ली. कोरोना का नया वैरिएंट ओमिक्रॉन (Omicron) अब तक 47 देशों तक पहुंच चुका है, लेकिन अब तक मौत का एक भी आंकड़ा सामने नहीं आया है। तेजी से बढ़ते संक्रमण (Infection) की वजह से अमेरिका और साउथ अफ्रीका समेत यूरोप के कई देशों के अस्पतालों में संक्रमितों की बाढ़ सी आ रही है। साउथ अफ्रीका और अन्य देशों के साइंटिस्ट यह जानने में जुटे हैं कि क्या ओमिक्रॉन ज्यादा गंभीर बीमारी का कारण बनता है? साउथ अफ्रीकी डॉक्टर और एक्सपर्ट्स शुरुआती रुझानों के आधार पर मान रहे हैं कि इससे होने वाला संक्रमण काफी हल्का (Very Mild) है।
ओमिक्रॉन को क्या माना जा रहा?
ओमिक्रॉन में 50 से ज्यादा म्यूटेशन (Mutation) हो चुके हैं। इतना ही नहीं, अब तक कोरोना के सबसे खतरनाक वैरिएंट माने जा रहे डेल्टा (Delta) की तुलना में ओमिक्रॉन के स्पाइक प्रोटीन (S Protein) में भी 30 से ज्यादा म्यूटेशन हो चुके हैं। इतने ज्यादा म्यूटेशन ही ओमिक्रॉन को डेल्टा की तुलना में तेजी से फैलने वाला वैरिएंट बनाते हैं।
सवाल ये उठता है कि क्या तेजी से फैलने में सक्षम होने से ही ओमिक्रॉन ज्यादा खतरनाक भी हो जाता है? इसके जवाब में महामारी विशेषज्ञों (Epidemic Experts) से लेकर वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) तक के विशेषज्ञों ने ओमिक्रॉन को हल्के लक्षण वाला यानी 'सुपर माइल्ड' वैरिएंट कहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, ओमिक्रॉन एक ऐसा वैरिएंट है जो बहुत तेजी से फैलने में तो सक्षम है लेकिन इससे गंभीर संक्रमण के बजाय हल्के लक्षण ही होते हैं।
फिर चिंता की बात क्या है?
साउथ अफ्रीका हो या यूरोप, ओमिक्रॉन के ज्यादातर संक्रमित युवा हैं। इस वैरिएंट ने उन लोगों को भी संक्रमित किया है जो वैक्सीन की दोनों डोज लगवा चुके हैं। इन दो बातों का मतलब ये है कि ओमिक्रॉन उम्रदराज लोगों की तुलना में मजबूत इम्यूनिटी के माने जाने वाले युवाओं और पूरी तरह वैक्सीनेटेड लोगों को भी संक्रमित करने में सक्षम है।
सर्दी-जुकाम की तरह फैलेगा?
ओमिक्रॉन के तेजी से फैलने में सक्षम (Capable) होने की वजह से माना जा रहा है कि ये दुनिया के कुल कोरोना मामलों में से 99% के लिए जिम्मेदार डेल्टा वैरिएंट (Delta Variant) को भी पीछे छोड़ सकता है। अगर ओमिक्रॉन डेल्टा से ज्यादा असरदार (Effective) बन जाता है लेकिन इसके लक्षण माइल्ड होते हैं, तो यह इस वायरस के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हो सकता है।
अमेरिका के सैन डियागो के रिसर्च डिपार्टमेंट ऑफ इम्यूनोलॉजी एंड माइक्रोबायोलॉजी के संक्रामक बीमारियों के रिसर्चर सुमित चंदा बताते हैं कि अगर ओमिक्रॉन तेजी से फैलने के बावजूद माइल्ड सिम्पटम्स ही पैदा करता है तो यह सीजनल बीमारियों जैसे सर्दी-जुकाम जैसा बन जाएगा। शुरुआती रिपोर्ट्स में इससे गंभीर बीमारी या मौत का खतरा कम बताया जा रहा है, लेकिन अभी इसे लेकर और शोध होना बाकी है।
च्यूइंग गम से संक्रमण रोकने की कोशिश
अमेरिकी (US) वैज्ञानिकों ने ऐसी च्यूइंग गम पर काम शुरू किया है, जो कोरोना को रोक सके। इसके लिए पौधों से मिलने वाले प्रोटीन का इस्तेमाल किया जा रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार ACE-2 नामक प्रोटीन लोगों के मुंह में मौजूद वायरस की संख्या घटाने में मदद करता है। इस तरह संक्रमित व्यक्ति के जरिए वायरस फैलने की आशंका घट जाएगी। पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी के हेनरी डेनियल के मुताबिक, संक्रमित व्यक्ति के खांसने, छींकने या बोलने से भी वायरस फैलता है, लेकिन इस विशेष प्रोटीन युक्त च्यूइंग गम से मुंह से वायरस की संख्या कम की जाती है। ऐसा करने से वातावरण में फैल रहे वायरस को कम किया जा सकेगा। वैज्ञानिक इसके परीक्षणों के लिए कानूनी अनुमति के इंतजार में हैं।
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