NAGPUR. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने विजयादशमी के अवसर पर नागपुर की रैली में जी-20 के सफल आयोजन से लेकर राम मंदिर और मणिपुर हिंदू-मुस्लिम एकता का जिक्र किया। भागवत ने अपने भाषण में संघ के मुस्लिमों के बीच पहुंच बढ़ाने की कोशिश का भी जिक्र करते हुए बड़ा संदेश देने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि आखिर एक ही देश में रहने वाले इतने पराए कैसे हो गए? संघ प्रमुख का इशारा मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधियों से मुलाकात को लेकर स्वयंसेवकों की तरफ से उठ रहे सवालों की तरफ था।
कौन बेहतर, उसे ही वोट देना है
भागवत ने कहा कि अविवेक और असंतुलन नहीं होना चाहिए। अपना दिमाग ठंडा रखकर सबको अपना मानकर चलना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि चुनावों में हमें सतर्क रहना है और किसी के बहकावे में आकर मतदान नहीं करना है। बेहतर कौन है, उसे ही वोट देना है। भागवत ने दशहरा के भाषण में केंद्र सरकार के लिए कई इशारे कर गए।
बस्ती का जिक्र और पीएम मोदी को दे गए संदेश
संघ प्रमुख भागवत ने सरकार की तारीफ करने के साथ ही यह भी कहा कि ठंडे दिमाग से यह सोचकर वोट दें कि किसने अच्छा काम किया है। उन्होंने कहा कि ये नहीं मानना कि लड़ाई चल रही थी और अब सीजफायर हो गया। दरअसल उनका इशारा संघ के मुस्लिमों के बीच पहुंच बढ़ाने की तरफ था।
'विक्टिम हुड की मानसिकता से काम नहीं चलेगा'
संघ प्रमुख ने कहा कि यह मानिसकता सही नहीं है कि उनकी वजह से हमें नहीं मिल रहा है या उनकी वजह से हम पर अन्याय हो रहा है। उन्होंने कहा कि विक्टिम हुड की मानसिकता से काम नहीं चलेगा। कोई विक्टिम नहीं है, उन्होंने कहा कि ‘वे कहते हैं मुझे किसी बस्ती में घर नहीं मिलता, इसलिए अपनी बस्ती में ही रहना होता है। एक ही देश में रहने वाले लोग इतने पराए हो गए? माना जा रहा है कि इस बयान के जरिए भागवत ने पीएम मोदी के मुसलमानों के बीच पहुंच बढ़ाने के कार्यक्रम को हरी झंडी दे दी है।
'भावना भड़काकर वोट लेना ठीक नहीं'
भागवत ने कट्टरपंथ पर निशाना साधते हुए कहा कि इससे उन्माद बढ़ता है। उन्होंने कहा कि भावना भड़काकर लोगों के वोट लेना ठीक नहीं है। आरएसएस चीफ ने भाषण में मोदी सरकार के सफल जी-20 सम्मेलन का भी खासकर जिक्र किया। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन में भारत के वसुधैव कटुंबकम की भावना साफ दिखी।
मणिपुर हिंसा पर क्या बोले भागवत
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, मणिपुर की वर्तमान स्थिति को देखते हैं तो यह बात ध्यान में आती है। लगभग एक दशक से शांत मणिपुर में अचानक यह आपसी फूट की आग कैसे लग गई? क्या हिंसा करने वाले लोगों में सीमापार के अतिवादी भी थे? अपने अस्तित्व के भविष्य के प्रति आशंकित मणिपुरी मैतेई समाज और कुकी समाज के इस आपसी संघर्ष को सांप्रदायिक रूप देने का प्रयास क्यों और किसके द्वारा हुआ? वर्षों से वहां पर सबकी समदृष्टि से सेवा करने में लगे संघ जैसे संगठन को बिना कारण इसमें घसीटने का प्रयास करने में किसका निहित स्वार्थ है? इस सीमा क्षेत्र में नागाभूमि और मिजोरम के बीच स्थित मणिपुर में ऐसी अशांति और अस्थिरता का लाभ प्राप्त करने में किन विदेशी सत्ताओं को रुचि हो सकती है? क्या इन घटनाओं की कारण परंपराओं में दक्षिण पूर्व एशिया की भू-राजनीति की भी कोई भूमिका है? देश में मजबूत सरकार के होते हुए भी यह हिंसा किनके बलबूते इतने दिन बेरोकटोक चलती रही है? पिछले 9 वर्षों से चल रही शांति की स्थिति को बरकरार रखना चाहने वाली राज्य सरकार होकर भी यह हिंसा क्यों भड़की और चलती रही? आज की स्थिति में जब संघर्षरत दोनों पक्षों के लोग शांति चाह रहे हैं, उस दिशा में कोई सकारात्मक कदम उठता हुआ दिखते ही कोई हादसा करवा कर, फिर से विद्वेष और हिंसा भड़काने वाली ताकतें कौन सी हैं?'
मार्क्सवाद पर साधा निशाना ?
आरएसएस चीफ ने कहा कि समाज विरोधी कुछ लोग अपने आपको सांस्कृतिक मार्क्सवादी या वोक यानी जगे हुए कहते हैं। परंतु मार्क्स को भी उन्होंने 1920 दशक से ही भुला रखा है। विश्व की सभी सुव्यवस्था, मांगल्य, संस्कार तथा संयम से उनका विरोध है। मुठ्ठी भर लोगों का नियंत्रण संपूर्ण मानवजाति पर हो, इसलिए अराजकता का पुरस्कार, प्रचार एवं प्रसार करते हैं। माध्यमों तथा अकादमियों को हाथ में लेकर देशों की शिक्षा, संस्कार, राजनीति और सामाजिक वातावरण को भ्रम और भ्रष्टता का शिकार बनाना उनकी कार्यशैली है। ऐसे वातावरण में असत्य भय, भ्रम और द्वेष आसानी से फैलता है। आपसी झगड़ों में उलझकर असमंजस और दुर्बलता में फंसा तथा टूटा हुआ समाज, अचानक ही इन सर्वत्र अपनी ही अधिसत्ता चाहने वाली विध्वंसकारी ताकतों का का निशाना बनता है।
राम मंदिर से भी दे दिया बड़ा संदेश
भावगत ने कहा कि हमारे संविधान की मूल प्रति के एक पृष्ठ पर जिनका चित्र अंकित है, ऐसे धर्म के मूर्तिमान प्रतीक श्रीराम के बालक रूप का मंदिर अयोध्या में बन रहा है। अगले साल 22 जनवरी को मंदिर के गर्भगृह में श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी। व्यवस्थागत कठिनाइयों के और सुरक्षाओं की सावधानियों के चलते उस पावन अवसर पर अयोध्या में बहुत बड़ी संख्या में लोग नहीं रह पाएंगे।
'अयोध्या में श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा के दिन अनेक स्थानों पर हों आयोजन'
श्रीराम अपने देश के आचरण की मर्यादा के प्रतीक हैं, कर्तव्य पालन के प्रतीक हैं, स्नेह और करुणा के प्रतीक हैं। अपने-अपने स्थान पर ही ऐसा वातावरण बने। राम मंदिर में श्रीरामलला के प्रवेश से प्रत्येक ह्रदय में अपने मन के राम को जागृत करते हुए मन की अयोध्या सजे और सर्वत्र स्नेह, पुरुषार्थ तथा सद्भावना का वातावरण उत्पन्न हो ऐसे, अनेक स्थानों पर परन्तु छोटे-छोटे आयोजन करने चाहिए।