पंकज स्वामी,JABALPUR.कल यानी 16 अगस्त को पारसियों का नववर्ष था। भारत में रहने वाले पारसी समुदाय के लोग पारसी कैलेंडर के मुताबिक 16 अगस्त को पारसी नववर्ष यानी नवरोज (Navroz) का पर्व मनाते हैं। फारसी भाषा में 'नव' का अर्थ है नया और 'रोज़' का अर्थ है दिन, यानि नया दिन। इस दिन को लोग जमशेदी नवरोज,नौरोज,पतेती के नाम से भी जानते हैं। वैसे पूरी दुनिया में पारसी लोग पारसी पंचांग के पहले महीने के पहले दिन यानी 21 मार्च को नया साल मनाते हैं। कुछ जगहों पर इसे साल में 2 बार मनाने का भी चलन है जिसमें 16 अगस्त और 21 मार्च को छमाही और वार्षिक के रुप में मनाते हैं। जबलपुर में रहने वाले पारसी शहंशाही पंचांग को मानते हैं, इसलिए ये लोग 16 अगस्त को नवरोज मनाते हैं।
पारसी समुदाय का जबलपुर से गहरा संबंध
पारसी समुदाय का जबलपुर से गहरा और आत्मीय संबंध है। जबलपुर में पारसियों की संख्या निरंतर कम होती जा रही है। जबलपुर में रहने वाले कई व्यक्ति व परिवार यहां से मुंबई या पुणे रहने चले गए। जबलपुर में प्रत्येक वर्ष नवरोज में नेपियर टाउन स्थित पारसी धर्मशाला में नवरोज का आयोजन होता रहा है। आज कोई आयोजन नहीं हुआ। जितने भी पारसी यहां बचे हुए हैं,उनमें से सभी ने अपने घर में नवरोज मनाया। देश में पारसियों की जनसंख्या निरंतर कम होती जा रही है। अनुमान है कि भारत में लगभग 69 हजार पारसी हैं। जबलपुर भी इससे अछूता नहीं है। जबलपुर अंजुमन के मुखिया दोराब कोवासजी (डॉली) बजान हैं। जबलपुर पारसी धर्मशाला से जुड़े कुछ उल्लेखनीय लोग हैं- सोली दारूवाला मानेक्शॉ, केरमान बाटलीवाला, परवेज ड्रायवर, मीनू श्राफ व केरसी ड्रायवर।
रेल की पांतों के बिछ जाने के बाद पारसियों का जबलपुर में आना हुआ था शुरू
नवसारी से लगभग 150 वर्ष पूर्व पारसी समुदाय जबलपुर व आसपास में आ कर बसा था। वैसे जबलपुर व पारसियों के संबंधों पर कभी इतिहास में कई जिक्र नहीं हुआ। रेल की पांतों के बिछ जाने के बाद जबलपुर में पारसियों का आना शुरू हुआ था। पिता रेलवे में काम करते थे तो उनके पुत्रों ने भी रेलवे में नौकरी की। 1910 के पहले ओमती क्षेत्र में पारसी समुदाय के रूस्तम मेहता की विदेशी शराब और सामान की दुकान हुआ करती थी। उनके साहबज़ादे मंशा सेठ ने अपने मुलाजिम इशाक से विश्व विख्यात पहलवान गामा से कुश्ती मुकाबला करने के लिए उतारा था। इशाक उनका तांगा भी चलाते थे। कुश्ती के इस मुकाबले में इशाक ने गामा को चित कर दिया था। मंशा सेठ के अक्सर अपने प्रिय लिबास पैजामा कमीज और पैरों में काले पम्प शू पहनकर दुकान के बरांडे में बैठे रहते थे। वे उस मुस्लिम बाहुल्य मुहल्ले में उनके लिए एक सदस्यीय पंचायत भी थे। सभी उनका कहा मानते थे। इसके कई सालों बाद जबलपुर में एक और पारसी शराब के कारोबारी हुए,उनका नाम डूंगाजी था। पुराने परिवारों में तारी वाले पटेल, दारूवाला थे। दारूवाला सरनेम था, लेकिन शराब का उनका कोई व्यवसाय नहीं था।
1913 में जबलपुर के नेपियर टाउन में हुआ था पारसी धर्मशाला का निर्माण
1913 में जबलपुर के नेपियर टाउन में पारसी धर्मशाला का निर्माण हुआ था। तब से यह धर्मशाला बरकरार है। यहां सिर्फ पारसियों को ठहरने की अनुमति है। जबलपुर अंजुमन के मुखिया दोराब कोवासजी (डॉली) बजान का परिवार जबलपुर के समीप कटनी का पहला पारसी परिवार था। इनका परिवार 1874 में नवसारी से कटनी आया था। डॉली बजान के दादा तेवुरस कोवासजी बजान कटनी आए थे। उनको खान बहादुर का टाइटल मिला था। कटनी में चूना पत्थर की खदान को शुरू करने वाले पॉयनियर वे ही थे। तेवुरस कोवासजी बजान कटनी म्यूनिसिपलिटी के पहले सिविलियन प्रेसीडेंट थे। उनके पूर्व जो भी प्रेसीडेंट रहे वे सब गर्वन्मेंट के थे। डॉली बजान के पिताजी कवासजी भी कटनी म्यूनिसिपलिटी के 1942 से 1950 तक अध्यक्ष रहे। ऑनरेरी मजिस्ट्रेट रहे कवासजी को खान साहब का टाइटल मिला था। डॉली बजान 1976 में कटनी से जबलपुर आ गए थे।
भारत में पारसियों का योगदान है अप्रतिम
भारत में पारसियों का योगदान अप्रतिम है। वे कम हैं लेकिन सबसे ज्यादा शिक्षित व सभ्य माने जाते हैं। देश में 15 से ज्यादा विशिष्ट पारसियों की मान्य सूची है, जिसमें दो पारसी व्यक्ति सीधे रूप से जबलपुर से जुड़े हुए हैं। इस सूची में फीरोज़ गांधी, नाना पालखीवाला, फली एस नारीमन, केएफ रुस्तमजी, रतन टाटा, जेआरडी टाटा, फील्ड मार्शल सेम मानेकशॉ, होमी भाभा, आर्देशिर बुरज़ोरजी तारापोर, भीकाजी कामा, साइरस मिस्त्री, फली होमी मेजर, जमशेद टाटा, एचएस कपाड़िया, सोली सोराबजी, आर्देशिर गोदरेज, पाली उमरीगर, जाल करसेटजी, परेन दाजी, बेजान दारूवाला, नुस्ली वाडिया, नाडिया, सोहराब मोदी, गोदरेज, किर्लोस्कर, पीलू मोदी और रूस्तम खुसरो शापूरजी गांधी को शामिल किया गया है। इस सूची में जबलपुर के जाल करसेटजी व रूस्तम खुसरो शापूरजी गांधी हैं।
भारतीय नौ सेना के एडमिरल जाल करसेटजी पीवीएसएम मार्च 1976 से फरवरी 1979 तक भारतीय नौ सेना प्रमुख रहे। उनका जन्म जबलपुर में 20 मई 1919 को हुआ था। जाल करसेटजी के पिता जबलपुर जेल के सुपरिटेंडेंट रहे। 1971 के पाकिस्तान युद्ध में भारतीय नेवी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और इसके रणनीतिकार जाल करसेटजी ही थे।
इन्होंने निभाई थी ‘ऑपरेशन विजय’ में निर्णायक भूमिका
वाइस एडमिरल रूस्तम खुसरो शापूरजी गांधी का जन्म 1924 में जबलपुर में हुआ था। उन्हें भारत द्वारा लड़े गए सभी नौसैनिक युद्धों में जहाजों की कमान संभालने वाले एकमात्र अधिकारी होने का गौरव प्राप्त है। उन्होंने 1961 के ‘ऑपरेशन विजय’ में निर्णायक भूमिका निभाई थी, जिसमें गोवा में पुर्तगाली शासन का अंत हुआ। 1971 के भारत-पाक युद्ध में उनकी भूमिका के लिए उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया था। अपनी सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल के रूप में कार्य किया।
जेनीफर मिस्त्री का है जबलपुर से गहरा संबंध
टीवी सीरियल तारक मेहता का उल्टा चश्मा की कलाकार जेनीफर मिस्त्री (रोशन कौर सोधी) का जबलपुर से गहरा संबंध है। उनकी शिक्षा-दीक्षा यहीं हुई। जेनीफर नाट्य संस्था विवेचना से जुड़ी रहीं। जबलपुर के प्रत्येक क्षेत्र के विकास में पारसियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उन्होंने व्यवसाय,शिक्षा,रेलवे,रक्षा,मनोरंजन क्षेत्र में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और समाज में शांति व एकांत हो कर अपना जीवन बिताया।