New Delhi. गैर-भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री आने वाले समय में मुंबई में मिल सकते हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इन मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखी है। ममता बनर्जी और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव बीते कुछ दिनों से विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश में लगे हैं। इन दोनों की कोशिश कितनी सफल होगी ये तो वक्त ही बताएगा।
ऐसा नहीं है कि इस तरह की कोशिश पहली बार हो रही है। पहले भी कुछ मौकों पर बीजेपी के खिलाफ गठबंधन के प्रयास हो चुके हैं। नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के पहले भी कांग्रेस और बीजेपी के खिलाफ इस तरह के गठबंधन बने हैं। आइए जानते हैं कि देश की राजनीति में पहले कितनी कामयाब रही हैं इस तरह की कोशिशें?
ममता-चंद्रशेखर की युति
मौजूदा दौर में ममता बनर्जी और के. चंद्रशेखर राव की ओर से इस तरह की कोशिशें जारी है। चंद्रशेखर राव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लगातार हमले कर रहे हैं। वे तेलंगाना के बाहर भी अपनी सरकार की उपलब्धियों का प्रचार कर रहे हैं। 10 मार्च को जब 5 राज्यों के चुनाव नतीजे आ रहे थे, तब भी के चंद्रशेखर राव महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मिलने पहुंचे थे।
उधर, ममता भी लगातार अपनी पार्टी का काडर बढ़ाने में लगी हैं। बंगाल के बाहर खासतौर पर पूर्वोत्तर के राज्यों में कई बड़े कांग्रेस नेता उनकी पार्टी में शामिल हो चुके हैं। पार्टी मजबूत करने के साथ ही ममता विपक्ष को एकजुट करने में लगी हुई हैं। चाहे उत्तर प्रदेश में अखिलेश के लिए वोट मांगने जाना हो या फिर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन से मिलना, ममता हर विपक्षी नेता को एक मंच पर लाने में लगी हुई हैं।
2019 में भी इस तरह की कोशिश हुई थी
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भी विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश हुई थीं। चुनाव से पहले ममता के न्योते पर विपक्षी दलों के नेता कोलकाता में एकजुट भी हुए थे। सब ने मंच भी साझा किया। अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, अरविंद केजरीवाल से लेकर चंद्रबाबू नायडू तक इस मंच पर दिखे थे। लोकसभा चुनाव से पहले तेलंगाना विधानसभा चुनाव में मिली जीत से उत्साहित के चंद्रशेखर राव भी इस तरह की कोशिशों में जुटे थे। हालांकि, चुनाव में कोई औपचारिक गठबंधन नहीं बन सका था। अब एक बार फिर ममता और चंद्रशेखर राव 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं।
1977 की विपक्षी एकता पहला सफल प्रयोग
1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया। करीब डेढ़ साल बाद जनवरी 1977 में जब इंदिरा ने चुनाव कराने की बात कही। इसके बाद राजनीतिक कैदियों को छोड़ा गया। 23 जनवरी 1977 को जनसंघ, भारतीय लोकदल, स्वतंत्र पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी जैसी विपक्षी पार्टियों का विलय करके एक नई पार्टी बनाई गई। नाम मिला- जनता पार्टी। चुनाव हुए और जनता पार्टी को बहुत बड़ी जीत मिली।
सत्ताधारी दल के खिलाफ बना गठबंधन सफल रहा। हालांकि, लंबा नहीं चल सका। आपसी कलह के चलते तीन साल में ही जनता सरकार गिर गई। पार्टी के समाजवादी, राष्ट्रवादी धड़े अलग-अलग हो गए। 1980 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने फिर से वापसी की। जनता पार्टी के अलग-अलग टुकड़ों से ही भारतीय जनता पार्टी, लोकदल जैसी पार्टियां अस्तित्व में आईं।
1989 में राजीव विरोधी गठबंधन को मिली जीत
1989 में एक बार फिर सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ विपक्ष एकजुट हुआ। इस बार ये काम किया वीपी सिंह ने। कभी राजीव गांधी के खास रहे वीपी सिंह ने उन्ही के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। 1988 में उनके नेतृत्व में जनता पार्टी से अलग हुईं लोकदल, जन मोर्चा और कांग्रेस (जगजीवन) जैसी पार्टियों को मिलाकर एक नया दल जनता दल बनाया।
1989 के लोकसभा चुनाव में वीपी सिंह के जनता दल ने आंध्र प्रदेश की तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी), तमिलनाडु के डीएमके और असम की असम गढ़ परिषद जैसे क्षेत्रीय दलों को अपने साथ लिया तो दक्षिणपंथी बीजेपी के साथ ही लेफ्ट पार्टियां भी इस गठबंधन का हिस्सा बनीं। वीपी सिंह का नेशनल फ्रंट राजीव गांधी को हराने में कामयाब रहा। ये गठबंधन सत्ता में तो आ गया, लेकिन ज्यादा समय तक टिक नहीं सका। बीजेपी के समर्थन वापस लेने से वीपी सिंह की सरकार गिर गई।
जनता दल के दो हिस्से हो गए। चंद्रशेखर के धड़े ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई। हालांकि, ये सरकार भी ज्यादा नहीं टिकी। गठबंधन ही नहीं, जनता दल का विघटन भी साल दर साल होता रहा। इसी जनता दल से टूटकर समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल सेक्युलर, जनता दल यूनाइटेड जैसे कई दल बने।
चुनाव बाद बना गठबंधन, दो साल में ही सत्ता से बाहर
1977 और 1989 में चुनाव पूर्व पार्टियों के विलय और गठबंधन बने। चुनाव में इन्हें जीत मिली और सत्ताधारी पार्टी सत्ता से बाहर हो गई। 1996 का गठबंधन पिछली दो बार के मुकाबले अलग रहा। 1996 के लोकसभा चुनाव में किसी भी दल या गठबंधन को बहुमत नहीं मिला। चुनाव नतीजों के बाद जनता दल, वाम दलों और कई क्षेत्रीय दलों ने मिलकर एक गठबंधन बनाया। 13 दलों के इस गठंधन को संयुक्त मोर्चा नाम मिला। गठबंधन के साथ ही संयुक्त मोर्चा सत्ता में आया। कांग्रेस और वाम दलों के समर्थन से सरकार बनी। दो साल में इस गठबंधन से दो प्रधानमंत्री बने। प्रधानमंत्री बदलने के बाद भी गठबंधन लंबा नहीं चल सका। दो साल में ही सत्ता से बाहर हो गया। सत्ता जाने के बाद इस गठबंधन में भी बिखराव होता चला गया।
1990 के दशक में गठबंधन सरकारों का दौर चला। संयुक्त मोर्चा के सत्ता से बाहर जाने के बाद चुनाव हुए। 1998 में भाजपा ने 20 से अधिक छोटी पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बनाई। 2004 और 2009 में जब यूपीए सत्ता में आया, तब भी कई दलों का गठबंधन था। हालांकि, सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस थी। करीब तीन दशक बाद 2014 में किसी पार्टी को अकेले दम पर बहुमत मिला। जब भाजपा ने 282 सीटों पर जीत दर्ज की।