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भारत में 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में राजनीतिक दलों ने रिकॉर्ड स्तर पर धन खर्च किया और प्राप्त किया। चुनावी खर्च की इस विस्तृत रिपोर्ट को एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने प्रस्तुत किया है। इसमें ADR बताया कि 5 राष्ट्रीय दलों और 27 क्षेत्रीय दलों ने मिलकर 7445 करोड़ 566 लाख रुपए एकत्रित किए। इनमें से 93.08% राशि राष्ट्रीय दलों के पास और 6.92% राशि क्षेत्रीय दलों के पास थी।
खर्च का विवरण
चुनाव प्रचार, यात्रा खर्च, और उम्मीदवारों के आपराधिक मामलों का प्रकाशन मुख्य खर्च थे। रिपोर्ट के अनुसार, कुल 3352 करोड़ 81 लाख रुपए खर्च किए गए थे। इनमें से 2204 करोड़ 318 लाख रुपए (65.75%) राष्ट्रीय दलों ने खर्च किए थे। जबकि 1148 करोड़ 492 लाख रुपए (34.25%) क्षेत्रीय दलों ने खर्च किए थे।
प्रमुख राजनीतिक दलों के खर्च
- भारतीय जनता पार्टी (BJP): 1778 करोड़ 70 लाख रुपए
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC): 686 करोड़ 193 लाख रुपए
- बहुजन समाज पार्टी (BSP): 72 करोड़ 45 लाख रुपए
- कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI(M)): 26 करोड़ 332 लाख रुपए
- आम आदमी पार्टी (AAP): 8 करोड़ 367 लाख रुपए
इन खर्चों में अधिकांश राशि मीडिया विज्ञापनों, प्रचार सामग्री और जनसभाओं पर खर्च की गई। इसके अलावा, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी प्रचार पर खर्च किया गया। इसमें 132 करोड़ 853 लाख रुपए का योगदान रहा।
यात्रा और प्रचार किए गए खर्च
चुनाव प्रचार और यात्रा पर कुल 795 करोड़ 414 लाख रुपए खर्च किए गए। इसमें राष्ट्रीय दलों ने 633 करोड़ 91 लाख रुपए और क्षेत्रीय दलों ने 161 करोड़ 504 लाख रुपए खर्च किए। सोशल मीडिया और अन्य प्रचार प्लेटफॉर्म पर भी खर्च को शामिल किया गया, जो अब चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
उम्मीदवारों के आपराधिक मामलों का प्रकाशन
चुनाव प्रचार में एक और महत्वपूर्ण खर्च उम्मीदवारों के आपराधिक मामलों का प्रकाशन था। इस पर कुल 28 करोड़ 253 लाख रुपए खर्च किए गए, जो कुल खर्च का 0.75% था। यह एक विवादास्पद मुद्दा है क्योंकि कुछ दल इस प्रकार के प्रचार का उपयोग अपने विरोधीयों को नीचा दिखाने के लिए करते हैं।
समय सीमा का निर्धारण करता है चुनाव आयोग
चुनाव आयोग से निर्धारित की गई समय सीमा के अनुसार, राजनीतिक दलों को अपने खर्च का विवरण प्रस्तुत करना पड़ता था। बता दें की लोकसभा चुनाव के परिणाम घोषित होने के 90 दिनों और विधानसभा चुनाव के 75 दिनों के भीतर चुनाव आयोग में प्रस्तुत करना था। हालांकि, कई दलों ने देरी से अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जो कि चुनाव आयोग की पारदर्शिता की दृष्टि से महत्वपूर्ण सवाल खड़े करती है।
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