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2025 में देश में अगली जनगणना शुरू होगी, जो 2026 तक चलेगी। यह जनगणना 2021 में होनी थी, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था। जनगणना का चक्र अब 10 साल से बदलकर 2035, 2045, 2055 पर शिफ्ट होगा, ताकि भविष्य की गणनाएं इन वर्षों में हों।
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इस बार जनगणना में धर्म और वर्ग के साथ-साथ संप्रदाय के बारे में भी सवाल पूछे जाने की संभावना है। संप्रदाय के आधार पर जानकारी इकट्ठा करने की मांग सरकार के समक्ष रखी गई है, जिससे विभिन्न समूहों की पहचान और सांख्यिकी को और बेहतर तरीके से समझा जा सके। उदाहरणस्वरूप, कर्नाटक में लिंगायत समुदाय को अलग संप्रदाय मानने के सुझाव दिए गए हैं, और अनुसूचित जातियों में वाल्मीकि और रविदासी जैसी अन्य उप-समूहों को भी सम्मिलित किया जा सकता है।
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लोकसभा सीटों के परिसीमन की राह होगी साफ
लोकसभा सीटों का परिसीमन भी जनगणना के आधार पर होगा, जो 2028 तक पूरा होने की संभावना है। परिसीमन प्रक्रिया जनगणना के नतीजों के आधार पर क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व में बदलाव लाने का कार्य करेगी, जिससे जनसंख्या में वृद्धि और क्षेत्रीय आवश्यकताओं के अनुसार सीटों का आवंटन सुनिश्चित किया जा सके।
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पहली जनगणना 1872 में की गई
भारत में जनगणना का इतिहास 1872 से है, जब लॉर्ड मेयो के शासन में पहली बार आंशिक रूप से जनगणना की गई थी। 1881 में भारत की पहली संपूर्ण जनगणना हुई, और तब से यह 10 साल के अंतराल पर होती रही है। आजादी के बाद, पहली जनगणना 1951 में हुई, और इसके बाद 2011 तक हर दशक की शुरुआत में नियमित रूप से आयोजित होती रही है।
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