GWALIOR. इस समय पूरे देश की निगाहें मध्यप्रदेश के चम्बल अंचल के आदिवासी बहुल जिला श्योपुर के कूनो पालपुर अभ्यारण्य पर लगी हुई हैं। यहां दक्षिण अफ्रीकी देश नामीबिया से आने वाले विदेशी मेहमानों की अगवानी की तैयारी हो रही है। इनके लिए करोड़ों रुपए की लागत से लम्बे चौड़े भू-भाग पर अभ्यारण्य बनाया गया है। इसमें भी उनके लिए पहले डेढ़ माह के लिए अलग और फिर डेढ़ साल तक रहने के लिए अलग-अलग आरामगाह और सैरगाह बनाई गई है। इनके खानपान से लेकर इनके स्वास्थ्य तक के लिए बंदोबस्त किए जा रहे हैं लेकिन सबसे खास है इनके लिए मित्रों की लम्बी श्रंखला तैयार होना।
अब तक 452 चीता मित्र तैयार
इस अभ्यारण्य क्षेत्र में अब तक 452 चीता मित्र बनाए जा चुके हैं। ये चीता मित्र कैसे काम करेंगे ? इनका काम भी बड़ा महत्वपूर्ण और रोचक है। खास बात ये है कि दुनिया में अलग तरह के ही दोस्त होंगे जिनकी दोस्तों से न मुलाकात होगी और न ही सीधे बातचीत लेकिन इनका जिंदगी से बड़ा गहरा नाता रहेगा।
कैसे आया चीता मित्र बनाने का विचार
कूनो नेशनल पार्क के डीएफओ पीके वर्मा इन चीता मित्रों को तैयार करने में बीते डेढ़ माह से जुटे हुए हैं और अब तक ऐसे 452 चीता मित्रों को तैयार भी कर चुके हैं। चीता मित्र बनाने के कंसेप्ट की कहानी भी बड़ी मजेदार है जो वर्मा ने 'द सूत्र' के साथ शेयर की। वर्मा बताते हैं कि ये परिकल्पना हमारे वन सचिव की थी। दो महीने पहले की बात है जब ये तय हो गया कि चीते आने ही वाले हैं और इसकी तैयारियों को अंतिम रूप दिया जाना था तब वन सचिव ने भोपाल में विभाग के अधिकारियों की एक बैठक बुलाई इसमें शिकारियों को लेकर चर्चा हुई तो पता चला कि इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में तेंदुए भी रहते हैं जो हिंसक होते हैं और ग्रामीण उनसे भयभीत रहते हैं जिसके चलते अनेक बार भिड़ंत भी होती है जिसमें मौत भी हो जाती है।
ग्रामीणों को जागरुक करने के लिए चीता मित्र
खास बात ये है कि चीता और तेंदुए में थोड़ी-बहुत समानता दिखती है हालांकि वो होती नहीं है। बस यहीं से ये विचार आया कि अभ्यारण्य के आसपास बेस ग्रामों में निवास करने के लिए कुछ लोगों को तैयार किया जाए जिसमें चीता और तेंदुए के बीच के अंतर को लेकर ग्रामीणों को जागरुक करने के लिए कुछ ग्रामीण स्वयंसेवक तैयार किए जाएं। जो स्वेच्छिक रूप से पहले ट्रेनिंग लें और फिर गांव-गांव जाकर लोगों को ये समझा सकें। उसी दिन इसका नामकरण भी हुआ और नाम दिया गया चीता मित्र।
ऐसे तैयार हुए चीता मित्र
इसके बाद जिले में कूनो अभ्यारण्य के आसपास के गांव में रहने वाले शिक्षित युवा, ग्रामसेवक, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, शिक्षक और ग्राम पंचायत सचिवों की तलाश की गई जो उत्साही भी हो और अपना समय दान कर सकें। इसके साथ ही वन्यप्राणी संरक्षण में रुचि भी रखते हों। इनको पीपीटी, चित्रों कैलेंडर और साहित्य के जरिए चीता और तेंदुआ का भेद समझाया गया। चीते के तौर तरीके बताए गए और बताया गया कि अब तक चीता किसी पर आक्रमण नहीं करता, वो नरभक्षी नहीं है। वो किसी पर हमला नहीं करता। वो गांव के पास पहुंच भी जाए तो डरें नहीं ना ही उस पर हमला करें। वो सीधे रास्ते से निकल जाएगा बल्कि शांति से उसे जाने की जगह दे दें।
अब तक बने 452 दोस्त
4 सितम्बर को डीएफओ वर्मा ने इसकी समीक्षा के लिए अपने अधिकारियों की बैठक बुलाई। इसमें प्रस्तुत के गई जानकारी के अनुसार परिक्षेत्र अपरा के 8 ग्रामों में 46, धोरेट के पांच गांव में 21, सिरोनी के 14 गांव में 70 , ओछापुरा के 14 गांव के 86, मोरवन पूर्व क्षेत्र के 21 गांव में 137, मोरवन पश्चिम के 27 गांव के 65, पालपुर पूर्व के 9 गांव के 27 लोग अब तक चीता मित्र के रूप में न केवल प्रशिक्षित हो चुके हैं बल्कि इनके अपने-अपने परिक्षेत्र में रहने वाले ग्रामीणों को प्रशिक्षित किया जा चुका है।
ये होता है चीता और तेंदुए में अंतर
वन्य एक्सपर्ट बताते हैं कि चीता और तेंदुआ भले ही पहली नजर एक जैसा दिखता हो लेकिन दोनों के बीच बड़े अंतर साफ दिखाई देते हैं। जो खास अंतर है वह ये है कि दोनों की पूंछ में बहुत अंतर होता है। तेंदुए की पूंछ मोटी और छोटी होती है जबकि चीता की लम्बी और मोटी होती है। दोनों के शरीर पर रहने वाली धारियां भी अलग तरह की होती हैं और चीता अटैक नहीं करता जबकि तेंदुआ अटैक करता है।
चीता मित्रों से मिलेंगे पीएम मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीता पिंजरे से बाड़े में छोड़ते समय कूनो अभ्यारण्य में मौजूद रहेंगे। वे ही पिंजरे का गेट हाइड्रोलिक सिस्टम से दूर से खोलेंगे। इस दौरान हालांकि आम जन की वहां जाने की मनाही है लेकिन पीएम मोदी से चीता मित्रों की मुलाकात कराने की योजना है। डीएफओ वर्मा कहते हैं कि उनकी योजना 300 मित्रों से पीएम से मिलवाने की है लेकिन कहां मिलेंगे और कितने मिलेंगे ये दिल्ली और भोपाल के वरिष्ठ अधिकारी ही तय करेंगे लेकिन हमारी तैयारी पूरी है।