New Delhi. केंद्र सरकार और तीनों सेनाओं के प्रमुखों की तरफ से दो दिन पहले ही लॉन्च की गई अग्निपथ योजना (Agnipath Recruitment Scheme) को लेकर विरोध भी शुरू हो गया है। बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश से लेकर हरियाणा तक बड़ी संख्या में युवाओं ने सड़क पर आकर प्रदर्शन किया। अपोजिशन और सेना के कुछ पूर्व सैनिकों ने भी इस योजना को लेकर सवाल उठाए हैं। ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर स्कीम को लेकर एक्सपर्ट्स के सवाल क्या हैं? खासकर योजना की सीमित अवधि और इसमें भर्ती किए जाने वाले नए अग्निवीरों को लेकर। इन सवालों सरकार और सेना की तरफ से क्या जवाब दिए हैं?
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1. सवाल: अग्निपथ योजना से पूर्ण जवान नहीं बन पाएंगे, कम उम्र में आने वाले लोग टूरिस्ट की तरह होंगे?
सेना का जवाब: तकनीक के इस्तेमाल और तरीकों में बदलाव लाने के बाद जो कौशल और क्षमताएं एक जवान के साथ होनी चाहिए, वे ही एक अग्निवीर के साथ भी होंगी। जो अभियान से जुड़ी चुनौतियां होंगी। सेना में हमारे ट्रेनिंग स्टैंडर्ड साफ तौर पर तय किए जाते हैं और इन तरीकों की निगरानी और परीक्षण भी किया जाता है। यानी अग्निवीर की भर्ती में उन्हीं स्टैंडर्ड का पालन होगा जो जवानों की भर्ती में अभी होता। यानी, स्टैंडर्ड्स से कोई समझौता नहीं होगा।
2. सवाल: अग्निवीर टूरिस्ट की तरह आएंगे इसलिए उनके साथ अनुशासन की दिक्कत होगी, ट्रेनिंग के लिए कम समय होने की वजह से वे कम ट्रेन्ड होंगे?
सेना का जवाब: अग्निवीर चार साल की अवधि के दौरान सेना से पूरी तरह जुड़े रहेंगे। आवश्यकतानुसार इन्हें हम चीन और पाकिस्तान के बॉर्डर पर भी तैनात कर सकते हैं। हम अग्निवीरों को अपनी यूनिट्स में सही संख्या में तैनात करेंगे और इस क्षमता में कोई कमी नहीं आएगी।
नौसेना का जवाब: नौसेना में अग्निवीरों के लिए पाठ्यक्रम भी तैयार किया है। इनकी ट्रेनिंग पहले के जवानों की तरह ही होगी, लेकिन कुछ सुधारों के साथ। पहले ट्रेनिंग 22 हफ्तों की होती थी। अब हमने उसे कम कर दिया है। अब 16 हफ्तों की ट्रेनिंग बेस पर होगी और दो हफ्तों की ट्रेनिंग शिप पर होगी। इसके जरिए हम नई तकनीक और नई प्रक्रिया लाकर ट्रेनिंग का तरीका ही बदल देंगे। ट्रेनिंग की अवधि कम होगी, लेकिन इसका तरीका बेहतर होगा। यानी चार साल में अग्निवीर उसी तरह क्षमतावान होंगे, जैसे आम जवान होंगे।
नौसेना प्रमुख मानते हैं कि गहरे मेंटेनेंस से जुड़े कार्यों में समस्या आएगी। उन्होंने कहा, ‘उनके लिए हम आईटीआई से शिक्षित लोगों को लेंगे, जिनका तकनीकी ज्ञान बाकियों से ज्यादा होगा। कुछ और अहम ट्रेनिंग होंगी, जो कि अग्निवीरों को चार साल बाद सेना में नियमित हो जाने के बाद दी जाएंगी।’
3. सवाल: इस योजना से सैनिकों के दो वर्ग बन जाएंगे, एक नियमित सैनिक और दूसरे अग्निवीर जिनका आना-जाना लगा रहेगा?
सेना का जवाब: इसका सिर्फ सकारात्मक तौर पर ही असर होगा। जैसे शिप या यूनिट्स में जो जवान भेजे जाते हैं, उन्हें हम दो-तीन साल में बदलते रहते हैं। वे या तो दूसरे शिप में जाते हैं या बाहर आ जाते हैं। नौसेना में एक डिविजनल सिस्टम होता है जिसमें 11 जवानों की एक डिविजन होती है, उसमें अधिकारियों के साथ जवानों को भी रखा जाता है। बाद में इनकी डिवीजन को बदला जाता है। यानी जहां एक डिवीजन में कुछ जवान नियमित रहते हैं, वहीं कुछ बदल जाते हैं। बड़े परिप्रेक्ष्य में देखें तो इस योजना के जरिए सीनियर और जूनियर का एक अंतर बना रहेगा, लेकिन वर्गीकरण पहले की तरह ही रहेगा।
4. सवाल: योजना का समाज पर बुरा असर होगा, लौटने वाले अग्निवीरों को नौकरी न मिलने पर गुस्सा बढ़ सकता है, अर्थव्यवस्था के न बढ़ने पर बंदूक और असलहे चलाने की ट्रेनिंग मिलने की वजह से यह खतरा भी पैदा कर सकते हैं?
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का जवाब: कई मंत्रालयों द्वारा और बहुत सारी राज्य सरकारों द्वारा पूर्व अग्निवीर के लिए नौकरियों का एलान होगा। उन्होंने अपनी सहमति व्यक्त की है, इसलिए यह कह रहा हूं। उन्होंने कहा है कि अग्निवीर से जो चार साल बाद निकलेंगे, उन्हें राज्यों में, मंत्रालयों में, उद्योंगों में, कॉरपोरेशन और अन्य में प्राथमिकता मिलेगी।
रक्षा मंत्री के जवाब के बाद गृह मंत्रालय, मध्य प्रदेश सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार, हरियाणा और असम सरकार ने अग्निवीर को नौकरियों में वरीयता देने का एलान किया है। इसके अलावा सीएपीएफ और अन्य पैरामिलिट्री बलों में भी इन जवानों की भर्ती का आश्वासन दिया जा रहा है।
एयरफोर्स का जवाब: आज के समय में 12वीं कक्षा के बाद युवा के पास तीन विकल्प होते हैं। या तो वह हायर स्टडीज में जाएगा या किसी कौशल विकास कार्यक्रम में जुड़ेगा या नौकरी ढूंढेगा। अग्निवीर योजना से हम तीनों मौके साथ-साथ दे रहे हैं। एक तो अच्छी सैलरी और कार्यावधि के अंत में अच्छा खासा बैंक बैलेंस और इसके साथ उस व्यक्ति का कौशल विकास भी होगा।
यानी चार साल बाद अगर वह कोई नौकरी भी ढूंढेगा तो ये कौशल उसके काम आएंगे। इसके अलावा सेना की जो कोर वैल्यूज होंगी, वह भी आगे नौकरियों में उसके काम आएंगी। इसके अलावा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत, जितनी भी ट्रेनिंग उसे दी जाएगी, उसके क्रेडिट पॉइंट्स भी उसे मिलेंगे। इनके दम पर वह हायर स्टडीज में भी जा सकता है। यानी वह 12वीं के बाद के सारे लक्ष्य हासिल करेगा। चार साल के बाद जो सेलेक्ट होंगे, उनके पास पेंशन वाली नौकरी होगी और जो नहीं सेलेक्ट होंगे, उनके पास जो कौशल होंगे, वह आगे उनकी मदद करेंगे।
5. सवाल: चार में से तीन अग्निवीरों को चार साल बाद ट्रेनिंग छोड़कर लौटना पड़ेगा, इससे सेना में पुराने संबंधों, टीम स्पीरिट में कमी देखने को मिलेगी, खासकर तीसरे और चौथे साल में जब इन युवाओं को सेना में रहने के लिए आपस में ही मुकाबला करना होगा, ऐसे में उनमें सहयोग की भावना में भी कमी आएगी?
एक्सपर्ट्स: अग्निपथ योजना के आलोचकों का कहना है कि छोटी अवधि के सैनिकों की कम ट्रेनिंग की वजह से वे सेना के नियमों में पूरी तरह ढल नहीं पाएंगे और चार साल के कोर्स में वे आगे सेलेक्शन के लिए एक-दूसरे से ही प्रतियोगिता में जुटे रहेंगे। इससे सैनिकों में पहले की तरह टीम स्पिरिट में कमी दिखेगी। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में सैन्य सेवा की छोटी अवधि रहने का यह कोई पहला मामला नहीं है। बल्कि विश्व युद्ध से पहले ब्रिटिश सेना में भी भारतीयों की भर्ती सात साल के लिए ही होती थी। यहां तक कि तब विक्टोरिया क्रॉस पाने वाले अधिकतर सैनिकों ने सेना में सिर्फ पांच साल की ही सेवा दी थी।
6. सवाल: इससे सीओओ और जेसीओ के प्रशासनिक कार्य बढ़ेंगे और उन्हें अपनी बटालियन को युद्ध के लिए तैयार रखने में मुश्किल होगी?
सेना का जवाब: यह हमारा फोकस रहेगा कि अग्निवीरों की भर्ती और इसे स्थायित्व देने के दौरान हमारी क्षमता में खासकर सीमाई इलाकों में कोई कमी न आए।
7. सवाल: इससे सेना के परंपरागत और परखे हुए रेजिमेंट सिस्टम पर असर पड़ेगा, जो कि जाति और वर्ग के आधार पर बनाई गई है?
सेना का जवाब: यह स्पष्ट है कि भारतीय सेना ऑल इंडिया-ऑल क्लास पर आधारित है। आज भी सेना की 75 फीसदी यूनिट इसी ऑल इंडिया-ऑल क्लास कंपोजिशन पर बनी हैं। सिर्फ कुछ सीमित यूनिट्स को ही अलग-अलग वर्गों के हिसाब से बनाया गया है। हमें यह समझना होगा कि अग्निवीरों की ऑल इंडिया-ऑल क्लास के आधार पर भर्ती की योजना इसीलिए लाई गई है ताकि युवाओं को देश सेवा के लिए बराबरी के मौके दिए जा सकें। हमारी सेना इस तरह के संबंध बनाने में विश्वास रखती है, जो टीम स्पिरिट और सहयोग की भावना के साथ काम करती रहेगी, बजाय जाति, वर्ग और कॉमरेडशिप के।