दिल्ली:ज्ञानवापी के बाद अब कुतुब मीनार कॉम्प्लेक्स में भी होगी खुदाई,समझें मामला

author-image
Atul Tiwari
एडिट
New Update
दिल्ली:ज्ञानवापी के बाद अब कुतुब मीनार कॉम्प्लेक्स में भी होगी खुदाई,समझें मामला

New Delhi. अब दिल्ली स्थित कुतुब मीनार परिसर (Qutub Minar Complex) में भी खुदाई का आदेश दिया गया है। दिल्ली के साकेत कोर्ट में मामले की सुनवाई होनी है, इससे पहले ही संस्कृति मंत्रालय (Culture Ministry) ने पुरातत्व विभाग (Archaeological Department) से कुतुब मीनार कॉम्प्लेक्स की खुदाई करने के लिए कहा है। मंत्रालय ने इसकी रिपोर्ट भी मांगी है। कोर्ट में 24 मई को सुनवाई होनी है। यूनाइटेड फ्रंट की ओर से दाखिल याचिका में दावा किया गया है कि कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद को हिंदू और जैन धर्म के 27 मंदिरों को तोड़कर बनाया गया। ऐसे में वहां फिर से मूर्तियां स्थापित की जाएं और पूजा करने की इजाजत दी जाए।



संस्कृति सचिव ने अधिकारियों के साथ निरीक्षण करने के बाद यह फैसला लिया। लिहाजा कुतुब मीनार के दक्षिण में और मस्जिद से 15 मीटर दूरी पर खुदाई का काम शुरू किया जा सकता है। कुतुब मीनार ही नहीं, अनंगताल और लालकोट किले पर भी खुदाई का काम किया जाएगा।



संस्कृति सचिव के साथ टीम ने किया निरीक्षण



कुतुब मीनार परिसर में खुदाई के फैसले से पहले संस्कृति सचिव गोविंद मोहन ने 12 लोगों की टीम के साथ मुआयना किया। इस टीम में 3 इतिहासकार, ASI के 4 अधिकारी और रिसर्चर मौजूद थे। इस मामले में ASI के अधिकारियों का कहना है कि कुतुब मीनार में 1991 के बाद से खुदाई का काम नहीं हुआ।



कुतुब मीनार का नाम बदलने की मांग



10 मई 2022 को हिंदू संगठन महाकाल मानव सेवा कुतुब मीनार पर प्रदर्शन के लिए पहुंचा और इसका नाम बदलने की मांग की थी। हालांकि, पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को कुतुब मीनार पहुंचने से पहले ही रोक लिया और सबको हिरासत में ले लिया। संगठन के कार्यकर्ता कुतुब मीनार परिसर में हनुमान चालीसा का पाठ करने वाले थे, पुलिस ने पहले ही उन्हें रोकने के लिए चारों ओर बैरिकेडिंग कर दी थी। प्रदर्शनकारी तमाम बैनर और पोस्टर लेकर नारेबाजी कर रहे थे कि कुतुब मीनार नहीं विष्णु स्तंभ कहा जाना चाहिए।



कुतुबुद्दीन ऐबक ने कराया था निर्माण



इतिहास में मिलता है कि मुईजुद्दीन या शहाबुद्दीन गौरी (मोहम्मद गौरी) ने 1192 में तराइन के दूसरे युद्ध पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया था। इसके बाद एक तरह से भारत में तुर्क सत्ता की स्थापना का रास्ता साफ हो गया था। हालांकि, गौरी की खोखरों के हमले में जल्दी ही मौत हो गई थी। लेकिन इससे पहले गौरी ने अपने तीन गुलामों कुतुबुद्दीन ऐबक, ताजुद्दीन यल्दौज और कुबाचा में इलाके बांट दिए। दिल्ली ऐबक को मिली। 1198 में ऐबक ने दिल्ली में कुतुब मीनार का निर्माण शुरू कराया। मीनार का निर्माण निर्माण उसी लाल कोट परिसर में शुरू कराया गया था। इसी परिसर में ही ऐबक ने कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण भी कराया। 



इतिहासकारों का कहना है कि लाल कोट (कुतुब परिसर) में 27 हिंदू और जैन मंदिर थे, जिन्हें तुड़वाया गया। इन मंदिरों की ईंटों का इस्तेमाल ही वहां इस्लामिक भवनों में किया गया।



एक ही मंजिल बनवा पाया ऐबक



कुतुबुद्दीन ऐबक की 1210 में चौगान (पोलो जैसा खेल) खेलते समय मौत हो गई। इसके पहले वह कुतुब मीनार की एक मंजिल ही बनवा पाया। इतिहास में मिलता है कि ऐबक ने तब सूफी संत रहे कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के सम्मान में मीनार बनवाई थी। मीनार की दो मंजिलें ऐबक के बाद शासक रहे इल्तुतमिश ने बनवाईं। ऊपर की दो मंजिलें फिरोज तुगलक ने बनवाई। 5 मंजिला मीनार 72.5 मीटर ऊंची है। कुतुब परिसर में ही अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316) भी कुतुब मीनार जैसी ही दूसरी मीनार बनवा रहा था, लेकिन वह बनवा नहीं पाया। 



क्या कहते हैं ICHR के निदेशक?




om

ICHR के डायरेक्टर ओमजी उपाध्याय कहते हैं कि मीनार को लेकर कुतुबुद्दीन ऐबक के कई समकालीन इतिहासकार चुप हैं। 




कुतुब मीनार विवाद पर भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (ICHR) के निदेशक डॉ. ओमजी उपाध्याय ने बताया कि कई सालों से इतिहासकारों में ये विमर्श चल रहा है कि आखिर कुतुब मीनार की सच्चाई क्या है? क्या कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपने नाम पर मीनार बनवाई?कुछ लोग कहते हैं कि बगदाद के संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर मीनार बनवाई। लेकिन इतिहासकारों का एक बड़ा वर्ग ये मानता है कि कुतुबुद्दीन ऐबक का इससे कोई लेना-देना नहीं है। 



असल में वर्तमान कुतुब परिसर में गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य का लौह स्तंभ है। इसके आसपास 27 हिंदू-जैन मंदिर थे। इन मंदिरों के अवशेष (मूर्तियां, हिंदू प्रतीक) वहां किसी को भी दिखाई दे सकते हैं। इतिहासकार मानते हैं कि ऐबक ने वहां कुछ हिस्से को हटवाकर वहां अरबी में कुछ लिखवा दिया। मूलत: वहां ऑब्जर्वेटरी के रूप में स्तंभ था। 5वीं सदी में चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के समय ऑब्जर्वेटरी की स्थापना कराई गई थी। छठी शताब्दी में वराहमिहिर ने ऑब्जर्वेटरी को वेधशाला के रूप में इस्तेमाल किया था। वह कुतुब मीनार नहीं, ध्रुव स्तंभ, सूर्य स्तंभ या विष्णु स्तंभ है। जहां ये सबकुछ स्थित है, उसे विष्णुगिरि पहाड़ी कहा जाता था। 



ओमजी के मुताबिक, जो स्ट्रक्चर (कुतुब मीनार) है, उसमें मंजिल जैसा कुछ नहीं है, उसमें आप अंदर से सीढ़ी चढ़ते हुए जा सकते हैं। उसमें 27 झरोखे (खिड़कियां) हैं। ये 27 खिड़कियां भारतीय ज्योतिष के 27 नक्षत्र मानी जाती हैं। हर खिड़की पर 4 लोगों के बैठने की जगह है। इसी परिसर में नवग्रह मंदिर है। इतिहासकारों का बड़ा वर्ग मानता है कि ये कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा बनवाई गई कोई मीनार नहीं, बल्कि वेधशाला थी। जब मुस्लिम आक्रांता आए तो उन्हें भारतीय स्ट्र्क्चर्स को तोड़कर उसके मलबे से अपने ढांचे खड़े किए। इसके इतिहास में तमाम रिफरेंसेंस मिल जाएंगे। 



साहित्य के आदिकाल के कवि जयानक ने पृथ्वीराज विजय ग्रंथ लिखा था, जिसमें उन्होंने बेला का सतखंड की चर्चा की। बेला, पृथ्वीराज चौहान की बेटी थी। जयानक लिखते हैं कि बेला, एक टॉवर पर चढ़कर यमुना नदी का दर्शन करती थी। कई इतिहासकारों का मानना है कि ये टॉवर ही मीनार है। 



ओमजी बताते हैं कि इल्तुतमिश के समकालीन इतिहासकार या तो इस बारे में चुप हैं या कन्फ्यूज कर रहे हैं। इल्तुतमिश के ही समकालीन नुरूद्दीन मोहम्मद अपनी किताब जमीरुल हिकायत में अपने सुल्तान के बारे में लिखते हैं, लेकिन ये नहीं बताते कि वह ऐसी किसी मीनार के निर्माण को पूर्ण करा रहा है। मिन्हाज-उस-सिराज अपने ग्रंथ तबकाते-नासिरी में इसका कोई वर्णन नहीं करता। हसन निजामी ने ताजुल मआसिर में इस मीनार का कोई उल्लेख नहीं किया। फुतुहाते फिरोजशाही में लिखा गया कि मुईजुद्दीन साम यानी मोहम्मद गौरी ने मीनार का निर्माण शुरू करवाया। ये बात साफ है कि महरौली का पूरा क्षेत्र नक्षत्रों के अध्ययन के लिए था।  


Gyanvapi ज्ञानवापी Archaeological Survey of India Delhi दिल्ली ASI एएसआई Varanasi वाराणसी Qutub Minar कुतुब मीनार Excavation ICHR Culture Ministry खुदाई आईसीएचआर भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण