भगत के दोस्त सुखदेव ने आरोप लगाया था, प्यार को लेकर चिट्ठी लिखी थी- यह एक मधुर भावना, इंसान के चरित्र को ऊपर उठाता है

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Atul Tiwari
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भगत के दोस्त सुखदेव ने आरोप लगाया था, प्यार को लेकर चिट्ठी लिखी थी- यह एक मधुर भावना, इंसान के चरित्र को ऊपर उठाता है

BHOPAL. भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था। ये जगह अब पाकिस्तान में है। उस समय उनके चाचा अजीत सिंह और श्‍वान सिंह भारत की आजादी की लड़ाई में शामिल थे। ये दोनों करतार सिंह सराभा की गदर पाटी के सदस्‍य थे। भगत सिंह पर इन दोनों का गहरा प्रभाव था। भगत सिंह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से बहुत प्रभावित थे। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला। उस समय भगत महज 12 साल के थे। जानिए, भगत सिंह की कुछ अनसुनी-अनकही चीजों के बारे में...



गांधी के असहयोग आंदोलन में लिया था भाग



1920 में भगत सिंह लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर महात्‍मा गांधी के असहयोग आंदोलन का हिस्सा बन गए। जब गांधीजी के अनुनायी विदेशी कपड़ों की होली जलाते थे तो भगत ने सरकारी स्‍कूलों की पुस्‍तकें और कपड़े जला दिए। इसके बाद वे गांव के पोस्टर बॉय बन गए। 1921 में गोरखपुर में चौरी-चौरा कांड हो गया। ब्रिटिश सरकार से नाराज लोगों ने थाना जला दिया। गांधीजी काफी दुखी हुए। उन्हें लगा कि जनता भी सत्याग्रह के लिए तैयार नहीं है और उन्होंने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। गांधीजी के फैसले से भगत थोड़े दुखी हुए और चन्द्रशेखर आजाद के गदर दल के हिस्‍सा बन गए।



काकोरी कांड में भगत सिंह हुए थे शामिल



9 अगस्त, 1925 को शाहजहांपुर से लखनऊ के लिए चली 8 नंबर डाउन पैसेंजर से काकोरी नामक छोटे से स्टेशन पर सरकारी खजाने को लूट लिया गया। यह घटना काकोरी कांड नाम से इतिहास में प्रसिद्ध है। इसमें भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद और कई क्रांतिकारियों ने अंजाम दिया था। बाद में बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी और रोशन सिंह को फांसी दे दी गई।



दूध का कारोबार संभाला



काकोरी कांड के बाद अंग्रेजों ने HRA यानी हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के क्रांतिकारियों की धरपकड़ तेज कर दी और जगह-जगह अपने एजेंट्स बहाल कर दिए। भगत सिंह और सुखदेव लाहौर पहुंच गए। वहां उनके चाचा सरदार किशन सिंह ने एक खटाल खोल दिया और कहा कि अब यहीं रहो और दूध का कारोबार करो।



वे भगत सिंह की शादी कराना चाहते थे और एक बार लड़की वालों को भी लेकर पहुंचे थे। भगतसिंह कागज-पेंसिल ले दूध का हिसाब करते, पर कभी हिसाब सही मिलता नहीं था। सुखदेव खुद ढेर सारा दूध पी जाते और दूसरों को भी मुफ्त पिलाते।



फिल्में और रसगुल्ले थे पसंद



भगत सिंह को फिल्में देखना और रसगुल्ले काफी पसंद थे। जब भी मौका मिलता तो भगत राजगुरु और यशपाल के साथ फिल्म देखने चले जाते थे। उन्हें चार्ली चैप्लिन की फिल्में बहुत पसंद थीं। इस पर चंद्रशेखर आजाद बहुत गुस्सा होते थे।



महज 21 साल में असेंबली में बम फेंका था



भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में अंग्रेज पुलिस अफसर जेपी सांडर्स को मार दिया। मारने की खास वजह थी। 1928 में भारत में साइमन कमीशन भारत आया था, जिसका देशभर में विरोध हो रहा था। पंजाब में विरोध की अगुआई लाला लाजपत राय कर रहे थे। सांडर्स ने प्रदर्शन में लाठी चार्ज करवाया और लाला जी घायल हो गए। बाद में उनकी मौत हो गई। इसी से भगत और क्रांतिकारी नाराज थे। सांडर्स की हत्या ने भगत को अंग्रेजों का दुश्मन बना दिया।



भगत ने अपने साथियों को समझाया कि छोटी-मोटी घटनाओं से कुछ नहीं होगा। देश को अपनी बात समझानी होगी। इसके लिए जरूरी है कि खुद को गिरफ्तार करवाया जाए। 8 अप्रैल 1929 में भगत और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली में सेंट्रल असेंबली में बम फेंका। बम खाली बेंचों पर फेंके थे। पर्चे भी फेंके, जिस पर लिखा था- बहरों को सुनाने के लिए ज्यादा कोलाहल करना पड़ता है। 1929 में उनकी उम्र महज 21 साल थी। 22वां साल चल रहा था। 



भगत सिंह अध्ययनशील विचारक थे



असेंबली में बम फेंकने के भगत और बटुकेश्वर को गिरफ्तार कर लिया गया। कोर्ट में केस चला। भगत ने गजब की दलीलें दीं। ये उस वक्त के अखबारों में जबर्दस्त छपीं। जेल में उन्होंने कई लेख लिखे। उन्होंने लिखा कि मजदूरों का शोषण करने वाला चाहे भारतीय ही क्यों न हो, वह मेरा दुश्मन है। 



भगत सिंह क्रांतिकारी देशभक्त ही नहीं बल्कि एक अध्ययनशील विचारक,  दार्शनिक, चिंतक, लेखक थे। उन्होंने फ्रांस, आयरलैंड और रूस की क्रांति का गहरा अध्ययन किया था। हिंदी, उर्दू, इंग्लिश, संस्कृत, पंजाबी, बांग्ला और आयरिश भाषा के ज्ञाता थे। 



जेल में भगत और उनके साथियों ने 64 दिनों तक भूख हड़ताल की



उन्होंने जेल में अंग्रेज़ी में एक लेख या छोटी सी किताब कह लीजिए, भी लिखी, जिसका टाइटल है- Why I am Ethist. 'मैं नास्तिक क्यों हूं'? यकीन मानिए, इसे पढ़कर आप भी नास्तिक हो सकते हैं। मैंने पढ़ी है, दिल्ली में कुछ वक्त के लिए नास्तिक हुआ भी था। इसकी भी कहानी है। कभी मौका मिला तो सुनाऊंगा। जेल में भगत और उनके साथियों ने 64 दिनों तक भूख हड़ताल की। इसे दुनिया की सबसे बड़ी भूख हड़ताल कहा जाता है। एक क्रांतिकारी यतीन्द्रनाथ दास ने तो भूख हड़ताल में जान दे दी। 



24 मार्च को होनी थी फांसी, पर एक दिन पहले ही हो गई



सांडर्स हत्याकांड के लिए भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु पर केस चला। 24 मार्च 1931 को फांसी तय की गई थी, लेकिन उससे एक दिन पहले ही यानी 23 मार्च को ही उन्हें फांसी पर लटका दिया गया। असल में इन तीनों वीरों को फांसी देने से देश में लोग भड़के हुए थे और प्रदर्शन हो रहे थे। इससे अंग्रेज सरकार डर गई थी। उन्हें लगा कि माहौल बिगड़ सकता है, इसलिए फांसी का दिन और समय बदल दिया गया। 



भगत सिंह एक खुशमिजाज, ज़िंदादिल और मस्त इंसान थे, हमेशा गुनगुनाने वाले। यह नौजवान अगर फांसी पर न चढ़ा होता तो एक संवदेनशील साहित्यकार, एक सुरीला गायक और दार्शनिक होता। उनके बैठने-उठने, खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने तक में एक करीना था।



बम कांड में इसलिए हुए थे शामिल



नेशनल कॉलेज में पढ़ते समय एक सुंदर-सी लड़की आते-जाते भगत सिंह को देखकर मुस्करा देती थी। सिर्फ भगत सिंह की वजह से वह भी क्रांतिकारी दल में शामिल हो गई थी। जब असेंबली में बम फेंकने की बात दल की मीटिंग में उठाई गई तो ‘अभी दल को भगत सिंह की बहुत जरूरत है’ कहकर दल और आज़ाद ने उन्हें भेजे जाने की संभावना से इनकार कर दिया। उन दिनों भगत सिंह के सबसे नजदीकी दोस्त थे सुखदेव थापर। उन्होंने ताना मारा कि तुम उस लड़की की वजह से बम फेंकने नहीं जा रहे हो। तुम मरने से डरते हो। तुम उससे प्यार करते हो। 



दोस्त को पत्र लिखा



भगत ने दोबारा मीटिंग बुलवाई और बम कांड के लिए अपना नाम लिखवा लिया। असेंबली में बम फेंकने से पहले उन्होंने सुखदेव को लेटर लिखा। 



प्रिय सुखदेव,



जब तक तुम्हें यह पत्र मिलेगा, मैं जा चुका होऊंगा, दूर एक मंज़िल की ओर। मैं आज बहुत खुश हूं। जीवन की तमाम खुशियों के होते हुए भी एक बात मेरे मन में चुभती रही कि मेरे अपने भाई ने मुझे ग़लत समझा और मुझ पर गंभीर आरोप लगाया कमज़ोर होने का। आज मुझे लगता है कि वह बात कुछ भी नहीं थी, एक ग़लतफहमी थी।



मेरे खुले व्यवहार को मेरा बातूनीपन समझा गया और मेरी आत्मस्वीकृति को मेरी कमज़ोरी, लेकिन सच यही है कि मैं कमज़ोर नहीं हूं। मैं साफ दिल से विदा लूंगा। तुम खयाल रखना कि कोई कदम जल्दबाजी में नहीं उठे। गंभीरता और शांति से तुम्हें काम को आगे बढ़ाना है। जल्दबाज़ी में मौका पा लेने की कोशिश न करना। 



जिस प्रश्न पर हमारी बहस है, उस पर कहना चाहता हूं कि मैं आशाओं और आकांक्षाओं से भरपूर हूं और जीवन की आनन्दमयी रंगीनियों से ओत-प्रोत हूं। जरूरत पड़ने पर मैं सब कुछ कुर्बान कर सकता हूं और यही वास्तविक बलिदान है। ये चीज़ें कभी इंसान के रास्ते में रुकावट नहीं बन सकतीं। जल्दी ही तुम्हें इसका प्रमाण मिल जाएगा। किसी व्यक्ति के चरित्र के बारे में बातचीत करते हुए एक बात सोचनी चाहिए कि क्या प्यार कभी किसी इंसान के लिए सहायक सिद्ध हुआ है? मैं कहता हूं, हां।



मेजिनी (मेजिनी इटली के क्रांतिकारी लड़ाके थे) के बारे में तुमने पढ़ा होगा। अपनी पहली नाकामी, मन को कुचल डालने वाली हार और मरे हुए साथियों की याद को वह बर्दाश्त नहीं कर सकता था। वह पागल हो जाता या आत्महत्या कर लेता, लेकिन अपनी प्रेमिका की एक ही चिट्ठी से वह बेहद मज़बूत होकर उभरा। जहां तक प्यार के नैतिक स्तर का संबंध है, तो वह सिवाय एक आवेश के कुछ भी नहीं है, लेकिन यह पाशविक वृत्ति नहीं, एक मधुर मानवीय भावना है। प्यार इंसान के चरित्र को ऊपर उठाता है। सच्चा प्यार कभी गढ़ा नहीं जा सकता। वह अपने ही रास्ते से आता है, कोई नहीं कह सकता कब।



एक युवक और एक युवती आपस में प्यार कर सकते हैं और अपने प्यार के सहारे आवेगों से ऊपर उठ सकते हैं, अपनी पवित्रता बनाए रख सकते हैं। इंसान में प्यार की गहरी भावना होनी चाहिए, जिसे वह एक ही आदमी में सीमित न कर दे बल्कि विश्वमय रखे। मैं यह सब इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि मैं अपना दिल साफ करना चाहता हूं। तुम्हारे सुखी जीवन की कामना सहित....



तुम्हारा- भगत


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