भारत रत्न पर विशेष: कई दावे- नेहरू ने खुद को सम्मान दिया, सच क्या है, पढ़ें सबकुछ

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भारत रत्न पर विशेष: कई दावे- नेहरू ने खुद को सम्मान दिया, सच क्या है, पढ़ें सबकुछ

नई दिल्ली. आज के दिन यानी 2 जनवरी 1954 को पहली बार (First ) भारत रत्न सम्मान के लिए सरकार ने नोटिफिकेशन जारी किया गया था। इसके बाद तीन हस्तियों डॉ. सीवी रमन, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन और सी राजगोपालाचारी को पहली बार भारत रत्न सम्मान दिया गया। तब से अब तक 48 शख्सियतों को ये सम्मान दिया जा चुका है, जिसमें से 14 को ये सम्मान मरणोपरांत दिया गया। ओरिजिनल नियम में मरणोपरांत सम्मान देने का जिक्र नहीं था, 1955 में इसमें बदलाव करते हुए मरणोपरांत (Posthumous) देने का भी फैसला लिया गया। 1966 में लाल बहादुर शास्त्री को मरणोपरांत भारत रत्न दिया गया। 2014 में सचिन तेंदुलकर 40 साल की उम्र में भारत रत्न पाने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति बने।



1955 में पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को भगवान दास और इंजीनियर एम विश्वेश्वरैया के साथ भारत रत्न दिया गया। सोशल मीडिया कई बार ये लिखा गया कि नेहरू ने खुद को नॉमिनेट किया। आज हम आपको इसका सच बता रहे हैं...



सच का पहला हिस्सा

Facthunt.in में 18 नवंबर 2018 को एक खबर छपी। इसमें एक आरटीआई (RTI) के हवाले से बताया गया है कि प्रधानमंत्री नेहरू ने भारत रत्न के लिए खुद का नाम आगे नहीं बढ़ाया था। आरटीआई लगाने वाले अशोक ने अपनी आरटीआई का विस्तार से जिक्र किया। अशोक ने 23 नवंबर 2013 को राष्ट्रपति सेक्रेटरिएट में RTI लगाई। उन्होंने पूछा था कि प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का नाम भारत रत्न के लिए किसने प्रस्तावित किया था? जवाब मिला- सरकार के पास इस बात का कोई रिकॉर्ड नहीं है कि भारत रत्न के लिए नेहरू का नाम किसने प्रस्तावित किया था।



ये है असल बात

1955 की गर्मियां थीं। नेहरू तत्कालीन सोवियत संघ (अब रूस) गए हुए थे। उनकी ये ट्रिप करीब एक महीने की थी, जो भारत के किसी भी प्रधानमंत्री की अब तक की सबसे लंबी ट्रिप है। जब नेहरू इस ट्रिप से लौटे, तो भारत के राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 15 जुलाई 1955 को राष्ट्रपति भवन में एक कार्यक्रम आयोजित किया। ये कार्यक्रम प्रधानमंत्री की विदेश दौरे की कामयाबी के लिए था। अलाइड पब्लिशर्स लिमिटेड से छपी और वाल्मीकि चौधरी की संपादित ‘डॉ राजेंद्र प्रसाद: करसपॉन्डेंस एंड सिलेक्टेड डॉक्यूमेंट्स’ के 17वें वॉल्यूम में पेज नंबर 456 पर इस कार्यक्रम के बारे में लिखा है कि राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा- ‘मैं एक बार ऐसा कर रहा हूं। मुझे असंवैधानिक कहा जा सकता है, क्योंकि मैं बिना किसी की सिफारिश के या फिर बिना अपने प्रधानमंत्री की सलाह के खुद से ही प्रधानमंत्री नेहरू का नाम भारत रत्न के लिए प्रस्तावित करता हूं। लेकिन मैं जानता हूं कि इसे लोग बेहद उत्साह के साथ स्वीकार करेंगे।’



उस वक्त के अखबारों ने भी लिखा कि राष्ट्रपति ने माना था कि बिना किसी सिफारिश के, बिना प्रधानमंत्री या कैबिनेट की सलाह के उन्होंने सम्मान देने का फैसला किया है, जो असंवैधानिक है। यानी प्रधानमंत्री नेहरू ने खुद को भारत रत्न नहीं दिया था। ये फैसला अकेले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का था और इसके बारे में वो खुद मान चुके थे कि इसे असंवैधानिक (Unconstitutional) कहा जा सकता है।



2 जनवरी 1954 को नोटिफाई हुआ था भारत रत्न

भारत रत्न का नोटिफिकेशन 2 जनवरी 1954 को जारी हुआ था। इसे भारत के राजपत्र (Gazette) में प्रकाशित किया गया था। 15 जनवरी 1955 को एक नए गजट में पुरस्कार को मरणोपरांत भी दिए जाने की बात कही गई। आमतौर इस सम्मान के लिए प्रधानमंत्री नाम का चयन करते हैं और उसे राष्ट्रपति को भेज देते हैं। एक साल में प्रधानमंत्री अधिकतम 3 लोगों का नाम राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं। ये एक सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन 2 जनवरी 1954 या फिर 15 जनवरी 1955 के गजट में इसका जिक्र नहीं है। 



10 जनवरी, 1996 को आउटलुक में छपी एक खबर के मुताबिक, 1996 में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने भारत रत्न को लेकर कुछ सुझाव दिए। इस बेंच में उस वक्त के चीफ जस्टिस (CJI) एएम अहमदी, जस्टिस कुलदीप सिंह, जस्टिस बीपी जीवन, जस्टिस एनपी सिंह और जस्टिस सगीर एस अहमद शामिल थे। पीठ ने सुझाव दिया कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई जाए, जो भारत रत्न के लिए नाम प्रस्तावित करे। इस कमेटी में प्रधानमंत्री के साथ ही लोकसभा स्पीकर और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस या चीफ जस्टिस का कोई प्रतिनिधि शामिल रहे।


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