एक वकील जो बन गया 'रावण': कैसे बनाई भीमआर्मी, कहां है कितनी पकड़, जानें

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एक वकील जो बन गया 'रावण': कैसे बनाई भीमआर्मी, कहां है कितनी पकड़, जानें

भोपाल. आजाद समाज पार्टी (भीम आर्मी) के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद (chandrashekhar azad) गोरखपुर से विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। इस सीट पर वह यूपी के मुख्यमंत्री और हिंदुत्व का सबसे बड़ा चेहरा योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को टक्कर देंगे। हालांकि, इस सीट से उनके जीतने की उम्मीदें बेहद कम है। लेकिन सीधा मुख्यमंत्री के खिलाफ मैदान में उतरकर चंद्रशेखर ने अपने तेवर बता दिए हैं। आइए जानते हैं भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर रावण का क्या रोल है?



कौन हैं चंद्रशेखर उर्फ 'रावण': साल 2017 में सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में दलितों और सवर्णों के बीच हिंसा की एक घटना हुई। इस हिंसा के दौरान एक संगठन उभरकर सामने आया, जिसका नाम था भीम आर्मी। भीम आर्मी का पूरा नाम 'भारत एकता मिशन भीम आर्मी' है। इसका गठन करीब 6 साल पहले किया गया था। इस संगठन के संस्थापक और अध्यक्ष हैं चंद्रशेखर। उन्होंने अपना उपनाम 'रावण' रखा हुआ है। रावण पेशे से वकील हैं। 



क्यों कहते हैं खुद को रावण: देहरादून से लॉ की पढ़ाई करने वाले चंद्रशेखर खुद को 'रावण' कहलाना पसंद करते हैं। इसके पीछे चंद्रशेखर का तर्क था कि "भले ही रावण का नकारात्मक चित्रण किया जाता रहा हो लेकिन जो व्यक्ति अपनी बहन के सम्मान के लिए लड़ सकता हो और अपना सब कुछ दांव पर लगा सकता हो वो ग़लत कैसे हो सकता है।



गांव के कुछ युवाओं ने मिलकर बनाई भीम आर्मी: शब्बीरपुर में हुई हिंसा के बाद 'रावण' ने 9 मई 2017 को सहारनपुर के रामनगर में महापंचायत बुलाई। इस महापंचायत के लिए पुलिस ने अनुमति नहीं दी, लेकिन सोशल मीडिया के जरिए महापंचायत की सूचना भेजी गई। सैंकड़ों की संख्या में लोग इसमें शामिल होने के लिए पहुंचे, जिन्हें रोकने के दौरान पुलिस और भीम आर्मी के समर्थकों के बीच संघर्ष हुआ और इसके बाद चंद्रशेखर के खिलाफ मामला दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। करीब छह साल पहले 2011 में गांव के कुछ युवाओं के साथ मिलकर चंद्रशेखर ने 'भारत एकता मिशन भीम आर्मी' का गठन किया था। भीम आर्मी आज दलित युवाओं का एक पसंदीदा संगठन बन गया है। 



किस उद्देश्य से हुई संगठन की स्थापना: भीम आर्मी की स्थापना दलित समुदाय में शिक्षा के प्रसार को लेकर अक्टूबर 2015 में हुई थी, इसके बाद सितंबर 2016 में सहारनपुर के छुटमलपुर में स्थित एएचपी इंटर कॉलेज में दलित छात्रों की कथित पिटाई के विरोध में हुए प्रदर्शन से ये संगठन चर्चा में आया। चंद्रशेखर का दावा है कि भीम आर्मी के सदस्य दलित समुदाय के बच्चों के साथ हो रहे कथित भेदभाव का मुखर विरोध करते हैं और इसी के कारण इस संगठन की पहुंच दूर दराज़ के गांवों तक हुई है। 



कहां है कितनी पकड़: चंद्रशेखर इन दिनों खुद को दलितों का सबसे बड़ा नेता बताते हैं। उत्तरप्रदेश में विधानसभा के चुनाव भी होने हैं। ऐसे में एक बार फिर से खद को साबित करने के लिए 'रावण' मैदान में दिखाई देने लगा है। लेकिन चंद्रशेखर की यूपी की सभी विधानसभा क्षेत्रों में आजाद समाज पार्टी की इकाइयां गठित हैं पर उनके पास कार्यकर्ताओं का मजबूत काडर नहीं है। बूथ तक मजबूत नेटवर्क नहीं है। कम से कम इनकी मौजूदगी फिलहाल ऐसी तो बिल्कुल नहीं कि दलित मतदाता मायावती की बजाय चंद्रशेखर के नेतृत्व पर भरोसा करें। यहां तक कि पश्चिमी यूपी में चंद्रशेखर बहुत मजबूत नजर आते हैं वहां भी सांगठनिक नेटवर्क गहरा नहीं कहा जा सकता। पश्चिमी यूपी के कुछ जिलों में चंद्रशेखर का प्रभाव है लेकिन इतना भी नहीं कि वो विधानसभा चुनाव को प्रभावित कर सकें। 



BJP का मजबूत गढ़ है गोरखपुर: चंद्रशेखर शहर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे। ये सीट बीजेपी का गढ़ मानी जाती है। इसलिए योगी ने इस सीट से उतरने का फैसला लिया है। यह सीट पिछले 33 वर्षों से बीजेपी के पास है। 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा व कांग्रेस का गठबंधन हुआ था। दोनों दलों ने मिलकर राहुल राणा सिंह को संयुक्त प्रत्याशी बनाया था। लगा था कि चुनाव रोचक और जोरदार होगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। नतीजे चौंकाने वाले आए। BJP प्रत्याशी को 1,22,221 वोट मिले, जबकि सपा-कांग्रेस के प्रत्याशी को 61,491 वोट ही मिल सके। भाजपा के डॉ आरएमडी अग्रवाल को 60,730 वोटों के अंतर से जीत मिल गई। यही नहीं, 2012 के मुकाबले 2017 के विधानसभा चुनाव में ज्यादा बड़ी जीत मिली। जीत का अंतर भी बढ़ गया।


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