सरकार सालभर में कहां से कितना कमाएगी और कहां कितना खर्च करेगी, इसी का हिसाब-किताब होता है बजट में। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (1 फरवरी 2022) को बजट पेश करेंगी। बजट का असर हम सब पर पड़ता है, इसलिए इसे समझना भी बहुत जरूरी है। बजट में कई ऐसे शब्दों का इस्तेमाल भी होता है जिन्हें समझ पाना कठिन होता है। आइए बताते हैं आपको बजट से जुड़ी जानकारी।
फाइनेंस बिल यानी वित्त विधेयक: बजट पेश होने के बाद संसद में सरकार फाइनेंस बिल पेश करती है। इसमें सरकार की कमाई का ब्यौरा होता है।
एप्रोप्रिएशन बिल यानी विनियोग विधेयक: एप्रोप्रिएशन बिल फाइनेंस बिल के साथ ही पेश किया जाता है। इसमें सरकार के खर्च का ब्यौरा होता है।
बजट एस्टिमेट यानी बजट अनुमान: आने वाले वित्त वर्ष यानी फाइनेंशियल इयर में सरकार जो कमाई और खर्च का अनुमान बताती है, उसे बजट एस्टिमेट कहते हैं।
रिवाइज्ड एस्टिमेट यानी संशोधित अनुमान: पिछले वित्त वर्ष में सरकार ने कमाई और खर्च का जो अनुमान लगाया था, उसे फिर से संशोधित करके पेश करती है, तो उसे रिवाइज्ड एस्टिमेट कहते हैं।
एक्चुअल यानी वास्तविक: सरकार ने असल में जितना कमाया है और जितना खर्च किया है, उसे एक्चुअल कहते हैं।
फिस्कल डेफिसिट यानी राजकोषीय घाटा: सरकार की कमाई कम है और खर्च ज्यादा है, यानी सरकार घाटे में है, तो उसे फिस्कल डेफिसिट कहते हैं।
फिस्कल सरप्लस यानी राजकोषीय मुनाफा: सरकार की कमाई ज्यादा है और खर्च कम है, यानी सरकार फायदे में है तो उसे फिस्कल सरप्लस कहते हैं।
रेवेन्यू डेफिसिट यानी राजस्व घाटा: सरकार ने कमाई का जो टारगेट सेट किया था, लेकिन उतनी कमाई नहीं हुई, तो उसे रेवेन्यू डेफिसिट कहते हैं।
टैक्स यानी कर
डायरेक्ट टैक्स: वो टैक्स जो सरकार आम आदमी से सीधे लेती है। जैसे-इनकम टैक्स, कॉपोर्टेट टैक्स, प्रॉपर्टी टैक्स वगैरह।
इनडायरेक्ट टैक्स: वो टैक्स जो आम आदमी से इनडायरेक्टली लिया जाता है। जैसे- एक्साइज ड्यूटी, कस्टम ड्यूटी, सर्विस टैक्स वगैरह।
कंसोलिडेटेड फंड यानी समेकित कोष: सरकार जो भी कमाती है, उसे कंसोलिडेटेड फंड में रखा जाता है। इससे पैसा निकालने के लिए संसद की मंजूरी जरूरी होती है।
कंटिन्जेंसी फंड यानी आकस्मिक कोष: अचानक जरूरत पड़ने पर सरकार जिस फंड से पैसा निकालती है, उसे कंटिन्जेंसी फंड कहते हैं। इससे पैसा निकालने के लिए संसद की मंजूरी जरूरी नहीं होती।
रेवेन्यू एक्सपेंडिचर यानी राजस्व व्यय: देश चलाने के लिए सरकार को जिस खर्च की जरूरत होती है, उसे रेवेन्यू एक्सपेंडिचर कहते हैं। ये खर्च सब्सिडी देने, सैलेरी देने, कर्ज देने, राज्य सरकारों को ग्रांट देने में होता है।
कैपिटल एक्सपेंडिचर यानी पूंजीगत व्यय: ऐसा खर्च जिससे सरकरार को कमाई होती है, उसे कैपिटल एक्सपेंडिचर कहते हैं। ये खर्च सरकरा किसी तरह के इन्वेस्टमेंट में या स्कूल-कॉलेज, सड़क, अस्पताल बनाने में करती है।
डिसइन्वेस्टमेंट यानी विनिवेश: जब सरकार सरकारी कंपनियों की कुछ हिस्सेदारी बेचकर कमाई करती है, तो उसे डिसइन्वेस्टमेंट कहते हैं।