रायपुर. 15 साल के शासनकाल के बाद 90 विधायकों की संख्या वाली छत्तीसगढ़ विधानसभा में चौदह (एक सीट उपचुनाव में गंवाई ) पर नुमाया हो रही बीजेपी के लिए कौन सी संजीवनी काम आएगी, इसके लिए संगठन लगातार काम कर रहा है। हाल में बीजेपी संगठन प्रभारी डी पुरंदेश्वरी बस्तर के लंबे प्रवास पर रहीं तो छत्तीसगढ़ के दूसरे छोर सरगुजा में सह-प्रभारी नितिन नबीन ने मोर्चा संभाला। ये दोनों ही इन इलाकों में बूथस्तर तक कांग्रेस के लिए स्थाई माने जाते थे, लेकिन बीजेपी ने इन दोनों इलाकों पर ऐसा कब्जा किया कि उसे पार्टी का ‘गढ़’ मान लिया गया। 2018 के चुनाव में बस्तर और सरगुजा दोनों ही इलाकों में कांग्रेस ने फिर से कब्जा कर लिया। इसके साथ ही दोनों इलाकों में बीजेपी विधानसभा चुनाव में हाशिए पर आ गई।
बीजेपी को पटरी पर लाने की कोशिश: छत्तीसगढ़ के उत्तरी और दक्षिणी इलाकों में संगठन पदाधिकारियों के अभी और दौरे होने हैं। प्रभारी डी पुरंदेश्वरी और सह-प्रभारी नितिन नबीन, बीजेपी के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिव प्रकाश के निर्देशन में पार्टी सत्ता हासिल के साध्य और साधन की तलाश में है। इसी के साथ ‘जो हुआ वो क्यों’ का जवाब भी तलाश रहे हैं। विधानसभा चुनाव के ठीक बाद लोकसभा चुनाव हुए और 11 लोकसभा सीटों वाले छत्तीसगढ़ में बीजेपी को 9 सीटें मिलीं। जाहिर है मोदी फैक्टर तो था ही, लेकिन 9 सीटों पर जीत हासिल करने से बीजेपी के थिंक टैंकरों ने ये माना कि वोटर और कार्यकर्ता को बीजेपी के स्थानीय चेहरों से शिकायत है।
बीजेपी के लिए मुश्किल दौर: बीजेपी के प्रदेश कार्यालय कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में लगातार होती बैठकों में फटकार और सख्त तेवर के बावजूद इसका असर परिणामों में बदलता नहीं दिखा। नगरीय निकाय चुनाव में बीजेपी कोई मजबूत गढ़ नहीं जीत पाई। यदि कहीं था तो उसे बचा भी नहीं पाई। ‘मठ भक्तों से उजाड़ लेकिन मठाधीशों से गुलजार’ वाला मसला बीजेपी में बिल्कुल सटीक दिखता है। इसे समझने के लिए ज्यादा कसरत की जरूरत भी नहीं है।
कोऑर्डिनेशन दूर की कौड़ी: विधानसभा के भीतर छोटी सी संख्या (14) में भी समन्वय नहीं है। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक अगर बोलने खड़े हों तो उसी वक्त अजय चंद्राकर बृजमोहन अग्रवाल बाहर निकल जाते हैं। बीते बजट सत्र में विपक्ष ने सत्र में जो रवैया अपनाया, वह चकित करने वाला था। विपक्ष ने चर्चा में भाग नहीं लिया और पर्याप्त से ज्यादा मैजॉरिटी वाली कांग्रेस ने एकतरफा सब पारित करा लिया। सदन के बाहर जो आलम है, वह भी भगवान भरोसे वाला है।
विधायकों से सीधे संवाद, पर असर...!: बीते दो दिन राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिव प्रकाश और प्रभारी डी पुरंदेश्वरी ने एक बार फिर कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में गुजारे। इस बार विधायकों से वन टू वन संवाद भी हुआ। 14 विधायकों से दो घंटे की चर्चा में अलग-अलग सवालों के आए जवाब से शिव प्रकाश और डी पुरंदेश्वरी ने मामले को समझने की कोशिश की। विधायकों से पूछा- विधायक निधि कैसे खर्च करते हो? संगठन से तालमेल कैसे बनाते हो? शिव प्रकाश ने इस दो घंटे के संवाद कार्यक्रम के बाद कहा- कोई भी विधायक किसी भी गलत नीति का विरोध करता है तो हम सभी को उसके साथ खड़े रहना है। राजनीतिक आरोपों से ज्यादा तथ्यों के साथ आरोप लगाओ। विरोध करना है तो मर्यादित भाषा के साथ करिए।
सदन में दिख पाएगा समन्वय?: बीजेपी संगठन की समन्वय क्लास का असर ‘विद्यार्थियों’ पर कितना हुआ, यह 7 मार्च से शुरू हो रहे बजट सत्र से ही समझ आ जाएगा। बजट सत्र की अंतिम नियत तिथि भले ही 24 मार्च हो, लेकिन खबरें हैं कि सत्र का समापन 16 मार्च को ही हो सकता है।