136 साल की कांग्रेस: ब्रिटिश ने रखी नींव, जानें सेफ्टी वॉल्व से आजादी दिलाने वाली पार्टी तक

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136 साल की कांग्रेस: ब्रिटिश ने रखी नींव, जानें सेफ्टी वॉल्व से आजादी दिलाने वाली पार्टी तक

28 दिसंबर को कांग्रेस 136 साल की हो गई। आज ही के दिन साल 1885 में राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की स्थापना (Congress Party foundation day) की गई थी। हालांकि, इसकी स्थापना 1884 में हुई थी, तब इसका नाम नेशनल पार्टी (National Party) था, लेकिन 1885 को ही आधिकारिक तौर पर कांग्रेस की स्थापना (Congress Party history) मानी जाती है। इसका पहला अधिवेशन मुंबई में हुआ था। इसके पहले अध्यक्ष बनने का गौरव व्योमेश चन्द्र बनर्जी को मिला। यह बात और है कि इस पार्टी की नींव किसी भारतीय ने ना रखकर एक रिटायर्ड अंग्रेज ऑफिसर एओ ह्यूम (Allan Octavian Hume) ने रखी थी। महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के राजनीतिक गुरू गोपाल कृष्ण गोखले ने कांग्रेस के गठन के संदर्भ में लिखा है कि एओ ह्यूम के सिवाय कोई भी व्यक्ति कांग्रेस का गठन नहीं कर सकता था। आइए सिलसिलेवार तरीके से कांग्रेस के 136 साल (Congress 136 Year history) के इतिहास को समझते हैं...

कांग्रेस का शुरुआती दौर

कांग्रेस के पहले सेशन में 72 सदस्य शामिल थे और अध्यक्ष व्योमेशचंद्र बनर्जी थे। उस दौरान भारत के तत्कालीन वॉयसरॉय लॉर्ड डफरिन थे। डफरिन की सहमति से ही इसकी स्थापना हुई थी। दादाभाई नौरोजी 1886, 1893 और 1906 में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। दादाभाई नौरोजी को ग्रेंड ओल्डमैन ऑफि इंडिया कहा जाता है। 1887 में बदरुद्दीन तैयबजी तो 1888 में जॉर्ज यूल कांग्रेस के पहले अंग्रेज अध्यक्ष बने। 1905 तक कांग्रेस क्या करती रही, क्या नहीं, ये कोई मुद्दा नहीं था। दादाभाई नौरोजी और बदरुद्दीन तैयबजी जैसे नेता इसके साथ आ गए थे। फिर भी जनता के बीच इसका कोई ज्यादा असर नहीं था। तब कांग्रेस याचिकाएं देने में व्यस्त रहती थी। जनता की नजर में कांग्रेस आवेदन पार्टी बन कर रह गई थी। कांग्रेस की स्थापना का मुख्य मकसद एक सेफ्टी वॉल्व के तौर पर किया गया था, ताकि अंग्रेजों को टॉप भारतीय नेताओं की सोच की आहट मिलती रहे।

नरम दल और गरम दल 

1905 में तत्कालीन वायसराय कर्जन के समय बंगाल का विभाजन हुआ। कांग्रेस ने वाइसराय के इस फैसले का जमकर विरोध किया। देश ने बंग-भंग आंदोलन देखा। इस दौरान कांग्रेस में फूट पड़कर दो धड़े हो गए। जिसमें एक नरम दल था और दूसरा गरम दल। तात्कालिक कांग्रेस में नरम दल के नेता थे दादाभाई नौरोजी, उमेशचंद्र बनर्जी, फीरोजशाह मेहता, गोपाल कृष्ण गोखले। अरविंद घोष, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, विपिन चंद्र पाल तथा लाला लाजपत राय के पास गरम दल की कमान थी। 

नेहरू-गांधी युग की शुरुआत

1919 में कांग्रेस पार्टी के अमृतसर अधिवेशन में मोती लाल नेहरू (Motilal Nehru) को नया अध्यक्ष चुना गया। 1924 में महात्मा गांधी ने बेलगाम (कर्नाटक) में कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता की। 1928 में मोती लाल को कलकत्ता के अधिवेशन में फिर से पार्टी का अध्यक्ष चुन लिया गया। इसके अगले ही साल कांग्रेस की कमान मोती लाल नेहरु के बेटे यानी पं. जवाहर लाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) को मिल गई। इसके बाद 1931 के कराची सम्मेलन में सरदार वल्लभ भाई पटेल (Vallabhbhai Patel) को पार्टी की कमान मिली। देश की आजादी के बाद 1951 में फिर से कांग्रेस की कमान पंडित नेहरू को मिली। इस बार वो लगातार चार साल तक अध्यक्ष बने रहे।

कांग्रेस का इंदिरा युग 

1959 में इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) पार्टी की अध्यक्ष बनी। 1978 से 1983 तक फिर से इंदिरा अध्यक्ष रहीं। 1985 में कांग्रेस की कमान राजीव गांधी को मिली और छह साल तक उन्होंने कुर्सी संभाली। 1998 में सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनाया गया। इसके बाद 19 साल तक सोनिया ही पार्टी की अध्यक्ष रही। 2017 में बेटे राहुल गांधी को कांग्रेस की कमान सौंप दी। हालांकि, कई राज्यों के चुनावों में मिली हार के बाद राहुल ने 2019 में अध्यक्ष पद छोड़ दिया। तभी से सोनिया गांधी पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष है।

गांधीजी के आने के बाद स्वरूप बदला

गांधीजी 1915 में साउथ अफ्रीका से भारत आए। वे साउथ अफ्रीका में सत्याग्रह कर चुके थे। धीरे-धीरे कांग्रेस गांधीजी के सत्याग्रह और अहिंसा के विचारों में समाती चली गई। 1919 का रौलेट एक्ट का विरोध हो, 1920 का असहयोग आंदोलन, 1929 में स्वराज दिवस मनाने का ऐलान, 1930 का सविनय अवज्ञा, 1942 का भारत छोड़ो जैसे ऐतिहासिक आंदोलन कांग्रेस नेतृत्व से ही निकले। हालांकि, गांधीजी ने कहा था कि आजादी के बाद कांग्रेस को खत्म कर देना चाहिए, क्योंकि उसका काम खत्म हो चुका है।

आजादी के पहले टूट

1939 में जबलपुर के पास त्रिपुरी अधिवेशन हुआ था। इसमें कांग्रेस के कई नेता सुभाष चंद्र बोस को अध्यक्ष बनाना चाहते थे, लेकिन गांधीजी  पट्टाभि सीतारमैया (बाद में मध्य प्रदेश के पहले राज्यपाल बने) को अध्यक्ष बनाना चाहते थे। लिहाजा चुनाव होना तय हुआ। सुभाष जीत गए। गांधीजी ने कहा कि पट्टाभि की हार मेरी हार है। इसके बाद सुभाष ने कांग्रेस छोड़ दी और अपनी अलग पार्टी फॉरवर्ड ब्लॉक बना ली। 

आजादी के बाद कांग्रेस में टूट

आजादी के बाद कांग्रेस कई बार विभाजित हुई। करीब 50 नई पार्टियां इस संगठन से निकल कर बनीं। इनमें से कई निष्क्रिय हो गए तो कइयों का कांग्रेस और जनता पार्टी में विलय हो गया। कांग्रेस का सबसे बड़ा विभाजन 1967 में हुआ जब इंदिरा गांधी ने अपनी अलग पार्टी बनाई जिसका नाम INC (R) रखा। 1971 के चुनाव के बाद चुनाव आयोग ने इसका नाम INC कर दिया।

करीब 55 साल देश पर राज किया

अगर आजादी के बाद देखा जाए तो 1947 से 2014 तक के बीच कांग्रेस ने करीब 52 साल देश पर राज किया। इस दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू 17 साल तक देश के प्रधानमंत्री रहे। इसके बाद इंदिरा गांधी ने 16 साल देश की सत्ता संभाली। फिर मनमोहन सिंह 10 साल तक देश के प्रधानमंत्री रहे। जबकि राजीव गांधी और नरसिम्हा राव 5-5 साल तक देश के प्रधानमंत्री रहे। इसके अलावा लाल बहादुर शास्त्री ने 2 साल तक देश की सत्ता संभाली। इस तरह कांग्रेस ने करीब 55 साल देश पर राज किया।

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