मध्यप्रदेश: जमानत के बाद सीधे जेल पहुंच जाएगा कोर्ट का आदेश, नोटिफिकेशन जारी

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Shivasheesh Tiwari
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मध्यप्रदेश: जमानत के बाद सीधे जेल पहुंच जाएगा कोर्ट का आदेश, नोटिफिकेशन जारी

हरीश दिवेकर, Bhopal. न्यायालय से जमानत आदेश होने के बाद अब कैदियों को रिहाई के लिए आदेश आने का इंतजार नहीं करना होगा। अब जजों के डिजिटल सिग्नेचर वाले आदेश सीधे जेल अधीक्षक को तत्काल ई—मेल से भेजे जाएंगे। जिससे जेल में बंद कैदी की ​तत्काल रिहाई हो सके। इस संबंध में राज्य सरकार ने अब जजों के डिजिटल हस्ताक्षर वाले निर्णय, डिक्री और आदेश को मान्यता दी है। इसका नोटिफिकेशन जारी किया है। 





उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में आया था कि जमानत होने के बाद भी तीन-तीन दिन तक कैदियों की सिर्फ आदेश न मिलने के कारण रिहाई नहीं की जाती है। इसके बाद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) एनवी रमाना ने इस मामले में स्व संज्ञान लेते हुए इलेक्ट्रॉनिक मोड के माध्यम से न्यायालय के आदेशों को तेजी से प्रसारित करने के लिए एक सॉफ्टवेयर 'फास्ट एंड सिक्योर ट्रांसमिशन ऑफ इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स' (FASTER) लॉन्च किया।





सुप्रीम को ने दिए निर्देश



 



मध्यप्रदेश में भी एक ऐसा ही उदाहरण देखने में आया है। MBBS स्टूडेंट चंद्रेश मर्सकोले मप्र हाईकोर्ट ने चार दिन पहले प्रेमिका श्रुति हिल की हत्या के आरोप से बरी किया है, लेकिन हाईकोर्ट का आदेश जेल अधीक्षक तक न पहुंचने के कारण चार दिन बाद भी चंद्रेश की रिहाई नहीं हो पाई। फास्टर लागू होने और जजों के डिजिटल सिग्नेचर मान्य होने से अब जेलों में कैदियों की रिहाई तत्काल होगी। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को प्रत्येक जेल में पर्याप्त गति के साथ इंटरनेट सुविधा की उपलब्धता सुनिश्चित करने और जहां कहीं भी इंटरनेट सुविधा उपलब्ध नहीं है, वहां शीघ्रता से इंटरनेट सुविधा की व्यवस्था करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश भी दिए हैं।





सुप्रीम कोर्ट ने लिया था स्वतः संज्ञान



 



उल्लेखनीय है कि 16 जुलाई को इस मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लेते हुए सीजेआई की अगुवाई वाली एक पीठ ने पिछले अवसर पर कहा कि सुप्रीम कोर्ट जेलों में जमानत के आदेशों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रसारित करने के लिए एक सिस्टम लागू करने के बारे में सोच रहा है, ताकि जमानत पर कैदियों की रिहाई में देरी न हो। स्वत: संज्ञान लेने का मामला एक समाचार रिपोर्ट के तहत लिया गया। इस रिपोर्ट में कहा गया कि आगरा सेंट्रल जेल में बंद दोषियों को जमानत देने के आदेश के तीन दिन बाद भी रिहा नहीं किया गया। पीठ ने राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों से यह ब्योरा पूछा कि क्या उनकी जेलों में हाई स्पीड इंटरनेट सुविधाएं उपलब्ध हैं। यदि नहीं, तो राज्यों को निर्देश दिया गया कि यदि कोई विकल्प हो तो सुझाव दें। बेंच ने सुप्रीम कोर्ट सेक्रेटरी जनरल को दो सप्ताह के भीतर FASTER प्रणाली को लागू करने के तौर-तरीकों का सुझाव देते हुए एक प्रस्ताव प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया। इस संबंध में सेक्रेटरी जनरल को एमिकस क्यूरी, दुष्यंत दवे, वरिष्ठ वकील, तुषार मेहता, भारत के सॉलिसिटर जनरल, राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र या अन्य सरकारी प्राधिकरणों के साथ समन्वय/परामर्श करने का निर्देश दिया गया।





कॉमर्शियल कोर्ट में खुले में होगी गवाही





अब कॉ​मर्शियल कोर्ट में भी सिविल कोर्ट की तरह ही खुले में गवाही होगी। इस संबंध में राष्ट्रपति की अनुमति के बाद मध्यप्रदेश सरकार ने सिविल प्रक्रिया संहिता, (मध्यप्रदेश संशोधन) अधिनियम 2020 का नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया है। अब तक इन न्यायालयों में वकील कमीशन पर गवाही लिखकर न्यायालय के सामने पेश किया करते थे। लेकिन कॉ​मर्शियल कोर्ट में बड़ी राशि के प्रकरण आने के बाद तय किया गया है कि जज अब अपने सामने ही प्रकरण की गवाही सुनेंगे। इनमें मुख्यत: वाणिज्यिक विवाद बैंकिंग, बीमा, संविदा, बौद्धिक संपदा, पार्टनरशिप, एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट आदि के विवादों के मामले में गवाह की गवाही खुले न्यायालय में होगी।





कामर्शियल कोर्ट के फैसलों को अपीलेट डिविजन में चुनौती दी जाती है





उल्लेखनीय है कि देश के आर्थिक विकास को गति देने के इरादे से देश भर में अलग कामर्शियल कोर्ट बनाए गए हैं। इनमें तीन लाख रुपए से अधिक के विवाद सुने जाते हैं। इसके पहले ऐसे मामले सिविल कोर्टों में दाखिल होते थे, जहां मुकदमों की अत्यधिक संख्या होने के कारण फरिवादी को फैसले के लिए वर्षों इंतजार करना पड़ता था। कामर्शियल कोर्ट के फैसलों को अपीलेट डिविजन में चुनौती दी जाती है। यदि कोई पक्ष अनावश्यक विलंब करता है तो कामर्शियल कोर्ट उस पर तीन हजार रुपए तक का जुर्माना लगाती है।



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