New Delhi. दिल्ली स्थित कुतुब मीनार की मस्जिद को लेकर विवाद बढ़ गया है। यहां दो मस्जिद हैं- कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद और मुगल मस्जिद। मुगल मस्जिद में इसी महीने नमाज पर रोक लगाई गई है, जबकि कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद में देवी-देवताओं की मूर्तियां होने का दावा किया गया है और यहां पूजा की मांग की गई। दोनों मस्जिद के मामले अलग-अलग हैं। कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद में नमाज होती ही नहीं है, सिर्फ मुगल मस्जिद में नमाज होती थी, जिस पर फिलहाल रोक लगा दी गई है। कोर्ट में फिलहाल जो विवाद है, वो कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद को लेकर ही है। 24 मई को दिल्ली के साकेत कोर्ट में कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद मामले में सुनवाई हुई। हिंदू पक्ष की तरफ से दायर याचिका में कहा गया कि कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा 27 मंदिरों को धवस्त कर कुव्वत उल इस्लाम को कुतुब मीनार परिसर के अंदर स्थापित किया गया।
पूजा के अधिकार की याचिका पर साकेत कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई। जस्टिस निखिल चोपड़ा की बेंच ने हिंदू पक्ष की पूजा के अधिकार वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। फैसला 9 जून को आ सकता है। कोर्ट ने दोनों पक्षों को एक हफ्ते के ब्रीफ रिपोर्ट जमा करने कहा है।
हिंदू पक्ष का क्या दावा और क्या मांग
कोर्ट में सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष की तरफ से दलील दी गई कि देवी-देवताओं की मूर्तियां तोड़कर कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद बनाई गई थी, लिहाजा हमें वहां पूजा का अधिकार दिया जाना चाहिए। हम कोई मंदिर निर्माण नहीं चाहते, बल्कि वहां सिर्फ पूजा का अधिकार चाहते हैं। हिंदू पक्ष की तरफ से ये दावा भी किया गया कि कुतुब मीनार परिसर में हिंदू देवताओं और श्री गणेश, विष्णु और यक्ष समेत देवताओं की स्पष्ट तस्वीरें और मंदिर के कुओं के साथ कलश और पवित्र कमल जैसे कई प्रतीक हैं, जो इस इमारत के हिंदू मूल को दर्शाते हैं।
कोर्ट रूम में ये हुआ
- याचिकाकर्ता के वकील हरिशंकर जैन ने कहा कि हमारे पास पुख्ता सबूत हैं कि 27 मंदिर तोड़कर कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद बनाई गई। मुस्लिमों ने यहां कभी नमाज अदा नहीं की। मुस्लिम आक्रमणकारी मंदिरों को ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण कर इस्लाम की ताकत दिखाना चाहते थे।
अयोध्या का हवाला
हरिशंकर जैन ने आर्टिकल 25 का हवाला देते हुए कहा कि इसके मुताबिक, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है। अयोध्या मामले में दिए फैसले में साफ है कि देवता की उपस्थिति हमेशा विद्यमान मानी जाती है तो उनकी पूजा अर्चना का अधिकार भी हमेशा के लिए सुरक्षित है।
ASI की तरफ से क्या कहा गया
ASI के वकील सुभाष गुप्ता ने कहा कि अयोध्या फैसले में भी कहा गया है कि अगर स्मारक हैं तो उसका कैरेक्टर नहीं बदला जा सकता। संरक्षित स्मारक में किसी तरह का धार्मिक पूजा-पाठ नहीं किया जा सकता। लिहाजा याचिका को रद्द कर देना चाहिए।
एएसआई ने कहा कि किसी स्मारक के चरित्र, चाहे उसे पूजा के लिए अनुमति दी जाए या नहीं, इसका अंदाजा उसी दिन से लगाया जाता है, जिस दिन से उसे स्मारक का दर्जा दिया गया था। कुतुब मीनार नॉन लिविंग मॉन्यूमेंट है, जब ये एएसआई के संरक्षण में आया था, तब वहां कोई पूजा नहीं हो रही थी।
निचली अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि पूजा करने वालों को अपने धर्म का अधिकार जरूर है, लेकिन ये absolute right नहीं है। इस मामले में पूजा का अधिकार नहीं है। ASI ने कहा कि किसी स्मारक का स्वरूप वही रहेगा, जो अधिग्रहण के वक्त था। इसी लिहाज से कुछ स्मारकों में पूजा की इजाजत है, कुछ में नहीं है। ये अधिग्रहण के समय की स्थिति से तय होता है।
इस मामले पर कुतुब मीनार की मुगल मस्जिद के इमाम मौलाना शेर मोहम्मद का कहना है कि कुतुब मीनार की जिस कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद को लेकर विवाद चल रहा है, उसकी दीवारों पर हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां हैं। जहां देवी देवताओं की मूर्तियां होती हैं, वहां नमाज नहीं पढ़ी जाती। कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद खंडहर की तरह है, अब उसमें नमाज नहीं होती, उसकी दीवारों पर पूजा पाठ करते हुए आकृतियां हैं, देवी देवताओं की मूर्तियां हैं।
मुगल मस्जिद पर क्या विवाद?
कुतुब मीनार परिसर में स्थित मुगल मस्जिद में नमाज लंबे समय से होती रही है, जिस पर 13 मई को रोक लगा दी गई है. दिल्ली वक्फ बोर्ड के चेयरमैन अमानतुल्ला खान ने कहा कि 1920 में ये मस्जिद आबाद थी, इसके बाद सुन्नी वक्फ ने 1956 में इस मस्जिद को गजट किया था। 1970 में दिल्ली वक्फ बोर्ड की तरफ से इस मस्जिद को नोटिफाई किया गया। अब हिंदू संगठनों की मांग पर यहां नमाज पर रोक लगा दी गई जो कि गलत है और हम इसके खिलाफ कानूनी कदम उठाएंगे।
मौलाना शेर मोहम्मद का दावा है कि 13 मई 2022 (शुक्रवार) से कुतुब मीनार में नमाज पढ़ना बंद करवा दिया गया है। 13 मई को एक गार्ड आया था, उसने कहा कि ASI के लोग आए हैं, हमें बुलाया गया। ASI वालों ने कहा कि आज से यहां नमाज नहीं पढ़ी जाएगी। हमने कहा कि हम सिर्फ 4 लोग हैं, हमें पढ़ने दें, बाकी बाहरी लोग नहीं आयेंगे, लेकिन उन्होंने कहा कि आज से यहां नमाज नहीं होगी, ऊपर से ऑर्डर आया है।
क्या कहते हैं ICHR के निदेशक?
कुतुब मीनार विवाद पर भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (ICHR) के निदेशक डॉ. ओमजी उपाध्याय ने बताया कि कई सालों से इतिहासकारों में ये विमर्श चल रहा है कि आखिर कुतुब मीनार की सच्चाई क्या है? क्या कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपने नाम पर मीनार बनवाई?कुछ लोग कहते हैं कि बगदाद के संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर मीनार बनवाई। लेकिन इतिहासकारों का एक बड़ा वर्ग ये मानता है कि कुतुबुद्दीन ऐबक का इससे कोई लेना-देना नहीं है।
असल में वर्तमान कुतुब परिसर में गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य का लौह स्तंभ है। इसके आसपास 27 हिंदू-जैन मंदिर थे। इन मंदिरों के अवशेष (मूर्तियां, हिंदू प्रतीक) वहां किसी को भी दिखाई दे सकते हैं। इतिहासकार मानते हैं कि ऐबक ने वहां कुछ हिस्से को हटवाकर वहां अरबी में कुछ लिखवा दिया। मूलत: वहां ऑब्जर्वेटरी के रूप में स्तंभ था। 5वीं सदी में चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के समय ऑब्जर्वेटरी की स्थापना कराई गई थी। छठी शताब्दी में वराहमिहिर ने ऑब्जर्वेटरी को वेधशाला के रूप में इस्तेमाल किया था। वह कुतुब मीनार नहीं, ध्रुव स्तंभ, सूर्य स्तंभ या विष्णु स्तंभ है। जहां ये सबकुछ स्थित है, उसे विष्णुगिरि पहाड़ी कहा जाता था।
ओमजी के मुताबिक, जो स्ट्रक्चर (कुतुब मीनार) है, उसमें मंजिल जैसा कुछ नहीं है, उसमें आप अंदर से सीढ़ी चढ़ते हुए जा सकते हैं। उसमें 27 झरोखे (खिड़कियां) हैं। ये 27 खिड़कियां भारतीय ज्योतिष के 27 नक्षत्र मानी जाती हैं। हर खिड़की पर 4 लोगों के बैठने की जगह है। इसी परिसर में नवग्रह मंदिर है। इतिहासकारों का बड़ा वर्ग मानता है कि ये कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा बनवाई गई कोई मीनार नहीं, बल्कि वेधशाला थी। जब मुस्लिम आक्रांता आए तो उन्हें भारतीय स्ट्र्क्चर्स को तोड़कर उसके मलबे से अपने ढांचे खड़े किए। इसके इतिहास में तमाम रिफरेंसेंस मिल जाएंगे।
साहित्य के आदिकाल के कवि जयानक ने पृथ्वीराज विजय ग्रंथ लिखा था, जिसमें उन्होंने बेला का सतखंड की चर्चा की। बेला, पृथ्वीराज चौहान की बेटी थी। जयानक लिखते हैं कि बेला, एक टॉवर पर चढ़कर यमुना नदी का दर्शन करती थी। कई इतिहासकारों का मानना है कि ये टॉवर ही मीनार है।
ओमजी बताते हैं कि इल्तुतमिश के समकालीन इतिहासकार या तो इस बारे में चुप हैं या कन्फ्यूज कर रहे हैं। इल्तुतमिश के ही समकालीन नुरूद्दीन मोहम्मद अपनी किताब जमीरुल हिकायत में अपने सुल्तान के बारे में लिखते हैं, लेकिन ये नहीं बताते कि वह ऐसी किसी मीनार के निर्माण को पूर्ण करा रहा है। मिन्हाज-उस-सिराज अपने ग्रंथ तबकाते-नासिरी में इसका कोई वर्णन नहीं करता। हसन निजामी ने ताजुल मआसिर में इस मीनार का कोई उल्लेख नहीं किया। फुतुहाते फिरोजशाही में लिखा गया कि मुईजुद्दीन साम यानी मोहम्मद गौरी ने मीनार का निर्माण शुरू करवाया। ये बात साफ है कि महरौली का पूरा क्षेत्र नक्षत्रों के अध्ययन के लिए था।