NEW DELHI. सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार और राज्यपाल के बीच विधेयकों को रोक कर रखे जाने को लेकर चल रही लड़ाई पर अहम टिप्पणी की है। शीर्ष अदालत ने याचिका पर अपने फैसले में कहा कि राज्यपाल राज्य के निर्वाचित प्रमुख नहीं हैं, बल्कि राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त राज्य के नाम मात्र के प्रमुख हैं। लोकतंत्र के संसदीय स्वरूप में वास्तविक शक्ति जनता के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों में निहित होती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कैबिनेट स्वरूप में सरकार के सदस्य विधायिका के प्रति जवाबदेह होते हैं। उनकी जांच के अधीन होते हैं।
कानून बनाने की प्रक्रिया को विफल नहीं कर सकते राज्यपाल
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा है कि राज्य के एक अनिर्वाचित प्रमुख के रूप में राज्यपाल को कुछ संवैधानिक शक्तियां सौंपी गई हैं, लेकिन इन शक्तियों का इस्तेमाल राज्य विधानसभा द्वारा कानून बनाने की सामान्य प्रक्रिया को विफल करने के लिए नहीं किया जा सकता।
मंजूरी से इनकार तो वापस करना होगा विधेयक
शीर्ष अदालत ने साफ कर दिया कि राज्यपाल विधेयक की मंजूरी रोककर विधानमंडल को वीटो नहीं कर सकते, मंजूरी देने से इनकार करने पर विधेयक को विधानसभा को वापस लौटाना होगा। बता दें कि पंजाब सरकार ने अपनी याचिका में राज्यपाल पर विधानसभा से पारित विधेयकों को मंजूरी नहीं देने का आरोप लगाया था। इस मामले में शीर्ष अदालत ने 10 नवंबर को अपना फैसला दिया था, फैसले की प्रति मुहैया होने पर पंजाब सरकार में खुशी है।