1809 में पहली बार मस्जिद परिसर के बाहर नमाज पढ़ने के बाद विवाद हुआ था, पढ़ें मथुरा और कुतुब मीनार विवाद

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Atul Tiwari
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1809 में पहली बार मस्जिद परिसर के बाहर नमाज पढ़ने के बाद विवाद हुआ था, पढ़ें मथुरा और कुतुब मीनार विवाद

NEW DELHI/VARANASI. वाराणसी के जिला कोर्ट ने 12 सितंबर को ज्ञानवापी मामले में फैसला दिया। कोर्ट ने ज्ञानवापी मामले को सुनवाई के लायक मान लिया है। मई 2022 से वाराणसी में ही मामले की सुनवाई चल रही है। आइए जानते हैं, कितना पुराना है केस और अब तक इसमें क्या हुआ?



ज्ञानवापी विवाद टाइमलाइन




  • 1809- मस्जिद परिसर के बाहर नमाज पढ़ने को लेकर विवाद के बाद सांप्रदायिक दंगे हुए थे।


  • 1984- दिल्ली की धर्मसंसद में हिंदू पक्ष को अयोध्या, काशी और मथुरा पर दावा करने को कहा गया।

  • 1991- वाराणसी कोर्ट में याचिका दायर कर ज्ञानवापी परिसर में पूजा के साथ मस्जिद ढहाने की मांग की।

  • 1998- अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लोअर कोर्ट की सुनवाई पर रोक लगाई।

  • 2019- वाराणसी जिला कोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में आर्कियोलॉजिकल सर्वे कराने की पिटीशन दायर की।

  • 2020- मस्जिद कमेटी ने ज्ञानवापी में आर्कियोलॉजिकल सर्वे कराने की याचिका का विरोध किया।

  • 2020- इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा स्टे नहीं बढ़ाए जाने पर याचिकाकर्ता ने लोअर कोर्ट में फिर से सुनवाई शुरू करने का अनुरोध किया।

  • 2021- 17 अगस्त को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में मां शृंगार गौरी मंदिर में रोज पूजा के लिए 5 महिलाओं ने याचिका दाखिल की।

  • 2022- 26 अप्रैल को कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद में वीडियोग्राफी और सर्वे के आदेश दिए।

  • 2022- 6 मई को ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे शुरू हुआ।

  • 23 मई 2022- सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इस मामले में जिला कोर्ट में सुनवाई चल रही है।

  • 12 सितंबर 2022- मामले में कोर्ट इस बात पर सुनवाई कर रहा था कि आजादी के समय पूजा स्थल कानून ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले में लागू होता है या नहीं। कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि ज्ञानवापी का मामला सुनवाई के लायक है। मतलब अब असल मायने की सुनवाई होगी। जिसमें ये तय होगा कि ज्ञानवापी परिसर हिंदू पक्ष का है या मुस्लिम? 




  • 17 मई 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में 3 बातें कहीं




    • पहला- शिवलिंग के दावे वाली जगह को सुरक्षित किया जाए।


  • दूसरा- मुस्लिमों को नमाज पढ़ने से ना रोका जाए।

  • तीसरा- सिर्फ 20 लोगों के नमाज पढ़ने वाला ऑर्डर अब लागू नहीं। यानी ये तीनों निर्देश अगले 8 हफ्तों तक लागू रहेंगे। इसमें किसी प्रकार का बदलाव नहीं होगा।



  • क्या है वर्शिपिंग प्लेस एक्ट?



    1991 के वर्शिपिंग प्लेस एक्ट (उपासना स्थल कानून) केवल उन्हीं धार्मिक स्थलों पर लागू हो सकता है, जिसे इस्लामिक रीति-रिवाजों से बनाया गया हो। इस्लामी कानूनों के अनुसार, किसी दूसरे धर्मस्थल को तोड़कर कोई मस्जिद नहीं बनाई जा सकती, ज्ञानवापी को मस्जिद नहीं कहा जा सकता। तर्क दिया गया है कि इस आधार पर ज्ञानवापी एक मस्जिद नहीं है और उस पर उपासना स्थल कानून लागू नहीं होता।



    मथुरा का श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद? 



    मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर विवाद है। 13.37 एकड़ भूमि के स्वामित्व की मांग को लेकर मथुरा कोर्ट में याचिका दायर की गई है। याचिका में पूरी जमीन लेने और श्रीकृष्ण जन्मभूमि के बराबर में बनी शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग की गई है। पिटीशनर ने विवादित स्थल की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी कराने की भी  मांग की थी। निचली अदालत में ये मामला लंबित है। लगातार देरी होने के चलते याचिकाकर्ता मनीष यादव ने हाईकोर्ट का रुख किया। मनीष ने हाईकोर्ट में भी यही मांग की। इसी मामले में हाईकोर्ट में 29 अगस्त को सुनवाई हुई। कोर्ट ने मंदिर पक्ष की ओर से निचली अदालत में दाखिल अर्जी पर 4 महीने में सुनवाई पूरी करने का निर्देश दिया है।  



    ऐसा कहा जाता है कि औरंगजेब ने श्रीकृष्ण जन्म स्थली पर बने प्राचीन केशवनाथ मंदिर को नष्ट करके उसी जगह 1669-70 में शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया था। 1770 में गोवर्धन में मुगलों और मराठाओं में जंग हुई। इसमें मराठा जीते। जीत के बाद मराठाओं ने फिर से मंदिर का निर्माण कराया। 1935 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 13.37 एकड़ की भूमि बनारस के राजा कृष्ण दास को आवंटित कर दी। 1951 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने ये भूमि अधिग्रहीत कर ली। 12 अक्टूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के साथ एक समझौता किया। समझौते में 13.37 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों के बने रहने की बात है। पूरा विवाद इसी 13.37 एकड़ जमीन को लेकर है। 



    इस जमीन में से 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। इस समझौते में मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ी और मुस्लिम पक्ष को बदले में पास में ही कुछ जगह दी गई थी। अब हिंदू पक्ष पूरी 13.37 एकड़ जमीन पर कब्जे की मांग कर रहा है। 

     

    कुतुब मीनार मामले में क्या हुआ?



    दिल्ली की कुतुब मीनार को लेकर भी विवाद जारी है। हिंदू संगठन ने याचिका दायर की है कि कुतुब मीनार को 27 हिंदू देवी-देवताओं और जैन मंदिरों को तोड़कर बनाया गया। इसलिए इसमें पूजा करने की अनुमति दी जाए। कुतुब मीनार को विष्णु स्तंभ बताया गया है। याचिका में मंदिर के जीर्णोद्वार की मांग की गई है। दिल्ली की साकेत कोर्ट में सुनवाई के दौरान दोनों ओर से बहस भी हो चुकी है। वहीं, एएसआई ने मंदिर होने के दावे को खारिज किया है। 



     इस मामले में पहले नौ जून फिर 24 अगस्त को फैसला आना था। हालांकि, इस बीच इसके मालिकाना हक को लेकर एक नई याचिका दायर हो गई है। ऐसे में कोर्ट ने कहा कि जब तक मालिकाना हक के मामले में अंतिम फैसला नहीं आ जाता, तब तक पूजा की अनुमति देने वाली याचिका पर फैसला नहीं दिया जा सकता। मालिकाना हक वाली याचिका पर अब कल यानी 13 सितंबर को सुनवाई होनी है।


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