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भोपाल. आज यानी 25 दिसंबर को बीजेपी के पितृपुरुष और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिन है। 25 दिसंबर 1924 को वे ग्वालियर की शिंदे की छावनी में पैदा हुए थे। कभी पं. जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें कहा था कि तुम एक दिन देश के प्रधानमंत्री बनोगे। ये बात सच साबित हुई। पहले 13 दिन, फिर 13 महीने और बाद में वे 5 साल के लिए प्रधानमंत्री बने। 16 अगस्त 2018 को उनका निधन हो गया था। आज हम आपको उनकी जिंदगी की कुछ यादगार बातें बता रहे हैं...
पिता के साथ पढ़े थे
अटल बिहारी वाजपेयी अपने पिता के साथ एक साथ बैठकर कानपुर के डीएवी कॉलेज में लॉ की पढ़ाई करते थे। हैरानी की बात यह थी कि दोनों एक ही क्लास में पढ़ते थे और हॉस्टल के एक ही रूम में रहते थे। उनके दोस्तों को जब इस बात का पता चला और छात्रों ने उनके बारे में बातें करना शुरू कर दिया तो दोनों ने अपने सेक्शन बदल लिए। अटल बिहारी वाजपेयी ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि वे हमेशा से एक पत्रकार बनना चाहते थे, लेकिन गलती से राजनीति में पहुंच गए।
जनसभा के पहले खास सेवन
अटल बिहारी वाजपेयी जब भी जनसभा करते थे तो काली मिर्च और मिश्री खाते थे। उनके लिए खास मथुरा से मिश्री मंगाई जाती थी। सभा से पहले और बाद में वे इसे खाते थे।
पिता नहीं चाहते थे कि संघ में जाएं
अटल जी की बहन ने कई बार उनकी पैंट को घर के बाहर फेंक दिया था, क्योंकि उनके पिता एक सरकारी कर्मचारी थे और वो नहीं चाहते थे कि अटल जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS की खाकी पैंट पहने। वाजपेयी को गिफ्ट पसंद नहीं थे। वे गिफ्ट परंपरा के बेहद खिलाफ थे। खाने-पीने के काफी शौकीन थे, इसलिए घर में बने खाने को सबसे बड़ा तोहफा मानते थे। इसके अलावा उन्हें हिंदी सिनेमा से भी खासा लगाव था। उन्हें 'उमराव जान' फिल्म बहुत पसंद थी।
मछली के शौकीन थे
नॉनवेज खाने के शौकीन अटल बिहारी जी को खासकर मछली खाना बहुत पसंद था। इसके अलावा अटल बिहारी वाजपेयी को गोलगप्पे खाना भी बेहद पसंद था। वाजपेयी को तीखे गोलगप्पे बहुत पसंद थे। वह गोलगप्पे वाले को ऊपर कमरे में बुलाते और गोलगप्पे खाने से पहले उसमें खूब सारी मिर्च डलवाते थे।
अपने शिष्य नरसिम्हाराव की बात का रखा ख्याल
पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव अटल जी को राजनीतिक गुरु मानते थे। दोनों के बीच अच्छी दोस्ती थी। एक बार उन्होंने अटल जी को एक चिट्ठी दी थी और कहा था कि इसे मेरे दुनिया से जाने के बाद ही खोलना। 23 दिसंबर 2004 को नरसिम्हाराव का निधन हो गया। उस समय अटल ग्वालियर में थे। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने बताया था कि नरसिम्हाराव के निधन का सुनकर अटल जी बहुत दुखी हो गए थे। उन्होंने नरसिम्हाराव की दी चिट्ठी पढ़ी थी। नरसिम्हाराव ने लिखा था- मैं पोखरण-2 (न्यूक्लियर टेस्ट) नहीं कर पाया, मुझे विश्वास है कि आप करेंगे। अटल जी कार्यकाल में भारत ने 11-13 मई 1998 में न्यूक्लियर टेस्ट किए थे।
सरकारें आएंगी-जाएंगी…ये देश अमर रहना चाहिए
अटल जी का 31 मई 1996 को संसद में विश्वास मत पर दिया भाषण सबसे बेहतरीन माना जाता है। अटल जी ने कहा था- देश आज संकटों से घिरा है और ये संकट हमने पैदा नहीं किए। जब-जब कभी आवश्यकता पड़ी संकटों के निराकरण में हमने उस समय की सरकार की मदद की है। उस समय के प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव जी ने भारत का पक्ष रखने के लिए मुझे विरोधी दल के नेता के नाते जेनेवा भेजा था और पाकिस्तानी मुझे देखकर चमत्कृत रह गए। उन्होंने कहा कि ये कहां से आ गया, क्योंकि उनके यहां विरोधी दल का नेता ऐसे राष्ट्रीय कार्य में भी सहयोग देने के लिए तैयार नहीं होता। वो हर जगह अपनी सरकार को गिराने के काम में लगा रहता है। ये हमारी परंपरा नहीं, प्रकृति रही है। हम चाहते हैं कि ये परंपरा बनी रहे, ये प्रकृति बनी रहे।
सत्ता का खेल तो चलेगा, सरकारें आएंगी-जाएंगी, पार्टियां बनेंगी बिगड़ेंगी…मगर ये देश रहना चाहिए..इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए। क्या ये आज के वातावरण में कठिन काम नहीं रह गया है। ये चर्चा तो आज समाप्त हो जाएगी...। मगर कल से जो अध्याय शुरू होगा, उस अध्याय पर थोड़ा गौर करने की जरूरत है। ये कटुता बढ़नी नहीं चाहिए। मैं नहीं जानता कि यूनाइटेड फ्रंट ने श्री देवेगौड़ा को किस आधार पर अपना चौथे नंबर का नेता चुना। वो यूनाइटेड फ्रंट की फर्स्ट चॉइस नहीं थी. वो तो फोर्थ चॉइस थी। मगर जो इनकी फोर्थ चॉइस है अब वो देश की फर्स्ट चॉइस होने वाली है। मैं समझ सकता था अध्यक्ष महोदय, मेरे मित्रों को समझना चाहिए कि मैं भी निर्वाचित होकर आया हूं। उन्हें ये भी समझना चाहिए कि मैं सबसे बड़ी पार्टी के नेता के नाते राष्ट्रपति महोदय द्वारा प्रधानमंत्री नियुक्त हुआ हूं।
सत्ता को छूना पसंद नहीं करूंगा
1996 में ही लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते हुए उन्होंने कहा था- कहा जाता है कि वाजपेयी आदमी अच्छा है, लेकिन गलत पार्टी में है। ये भी कहा जा रहा है कि मैं सत्ता का लोभी हो गया हूं। यदि मैं पार्टी तोड़ू और सत्ता में आने के लिए नए गठबंधन बनाऊं तो मैं उस सत्ता को चिमटे से भी छूना पसंद नहीं करूंगा।
इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत
23 अप्रैल 2003 को जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर संसद में दिया गया उनका भाषण भी काफी मशहूर है। वाजपेयी ने कहा था, ‘बंदूक किसी समस्या का समाधान नहीं कर सकती, पर भाईचारा कर सकता है। यदि हम इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत के तीन सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होकर आगे बढ़ें तो मुद्दे सुलझाए जा सकते हैं।’
दिल्ली के दरबार में जाकर मुजरे झाड़ें
बीजेपी की 1980 में हुई पहली राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में अटल जी ने कहा था, ‘भाजपा राजनीति में राजनीतिक दलों में, राजनेताओं में, जनता के खोए हुए विश्वास को पुन: स्थापित करने के लिए जमीन से जुड़ी राजनीति करेगी, जोड़तोड़ की राजनीति का भविष्य नहीं है। पद, पैसे और प्रतिष्ठा के पीछे पागल होने वालों के लिए हमारे यहां कोई जगह नहीं है। जिन्हें आत्मसम्मान का अभाव हो, वे दिल्ली के दरबार में जाकर मुजरे झाड़ें। हम तो एक हाथ में भारत का संविधान और दूसरे में समता का निशान लेकर मैदान में कूदेंगे। हम छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन और संघर्ष से प्रेरणा लेंगे। सामाजिक समता का बिगुल बजाने वाले महात्मा फुले हमारे पथ प्रदर्शक होंगे। भारत के पश्चिमी घाट को मंडित करने वाले महासागर के किनारे खड़े होकर मैं यह भविष्यवाणी करने का साहस करता हूं कि अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा।
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