भोपाल. आज यानी 22 दिसंबर को भारत के महान गणितज्ञ (Great Mathematician) श्रीनिवास रामानुजन का जन्मदिन है। आज ही के दिन 1897 में तमिलनाडु के इरोड में उनका जन्म हुआ था। 3 साल तक उन्होंने बोलना शुरू नहीं किया था। किसे पता था कि एक दिन ये बच्चा गणित की दुनिया में कमाल कर देगा। वे पढ़ने के लिए लंदन भी गए। 26 अप्रैल 1920 में महज 33 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। आज हम आपको रामानुजन की 10 अनसुनी बातें बता रहे हैं...
1. अटपटे सवाल पूछते, खुद सवाल बना लेते थे
रामानुजन स्कूल में अपने टीचर्स से अटपटे सवाल पूछते थे कि संसार का पहला पुरुष कौन था? धरती और बादल के बीच कितनी दूरी है? स्कूल लेवल में ही उन्होंने कॉलेज लेवल का गणित पढ़ लिया था। वे खोज-खोजकर सवाल हल करते थे। सवाल नहीं मिलते तो खुद बना लेते थे। गणित में उनकी अपार रुचि थी। इसका नतीजा ये हुआ कि 11वीं में गणित को छोड़कर बाकी विषयों में फेल हो गए।
2. स्लेट पर डेरिवेशंस लिखते थे
स्कूल के दिनों में उनका कोई दोस्त नहीं था, क्योंकि उनके साथी उनको समझ नहीं पाए। जब सभी छात्र खेल में व्यस्त होते थे, रामानुजन गणित की दुनिया में खोए रहते थे। कागज महंगा होने के कारण रामानुजन अपने डेरिवेशंस का नतीजा निकालने के लिए स्लेट पर लिखते थे। बाद में उसे रजिस्टर पर उतार लेते। उन्होंने तीन नोटबुक्स लिखी थीं, जो उनकी मौत के बाद सामने आईं। पहली नोटबुक में 351 पेज थे, जिसमें 16 व्यवस्थित अध्याय थे और कुछ अव्यवस्थित सामग्री। दूसरी नोटबुक में 256 पेज थे जिसमें 21 अध्याय और 100 अव्यवस्थित पेज थे। तीसरी नोटबुक में 33 अव्यवस्थित पेज थे।
3. देवी की कृपा से सूत्र मिले
नामगिरी देवी रामानुजन के परिवार की इष्ट देवी थीं। उनका कहना था कि देवी की कृपा से ही उन्हें गणितीय सूत्र मिले।
4. खुद से सीखा गणित
माना जाता है कि रामानुजन ने खुद ही गणित सीखा। उन्होंने 3884 प्रमेय (Theorems) बनाए। रामानुजन के ज्यादातर काम अभी भी अबूझ पहेली बने हुए हैं। वे सपने में भी गणित के प्रश्न हल किया करते थे। कई सूत्र और प्रमेय उन्होंने आधी रात को जागकर लिखे। 13 साल की उम्र में रामानुजन को ब्रिटेन के महान मैथमैटीशियन एसएल लोनी की त्रिकोणमिति (Trigonometry) की किताब मिली। रामानुजन ने किताब खत्म की और कुछ अपनी नई थ्योरम बना दीं। रामानुजन पर लोनी का प्रभाव माना जा सकता है।
5. प्रो. हार्डी से दोस्ती
रामानुजन ने ब्रिटेन के प्रसिद्ध गणितज्ञ जीएच हार्डी की बुक ऑर्डर्स ऑफ इन्फिनिटी से प्रेरित होकर 1913 में उनको चिट्ठी लिखी। हार्डी जब 1914 में भारत में तो वे रामानुजन को अपने साथ इंग्लैंड ले गए, लेकिन इंग्लैंड का मौसम उनको रास नहीं आया। हार्डी कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ाते थे।
6. हार्डी-रामानुजन नंबर-1729
इंग्लैंड जाने के बाद रामानुजन की हालत बहुत खराब हो गई। इसी दौरान अस्पताल जाते समय एक दिलचस्प घटना घटित हुई, जो इतिहास बन गई। एक बार हार्डी अस्पताल में रामानुजन से मिलने गए। उन्होंने बताया कि वे (हार्डी) एक टैक्सीकैब से आए, जिसका नंबर 1729 था। हार्डी ने कैब के नंबर को बोरिंग बताया। इस पर रामानुजन ने बिस्तर पर लेटे-लेटे कहा, 'नहीं, यह बोरिंग नहीं, बल्कि बहुत दिलचस्प नंबर है। यह सबसे छोटी संख्या है, जिसको दो अलग-अलग तरीके से दो घनों के योग के रूप में लिखा जा सकता है।' तब से 1729 को उनके सम्मान में हार्डी-रामानुजन नंबर कहा जाता है।
1729 = 13 + 123 = 93 + 103
7. कैंब्रिज के गणितज्ञों ने महान बताया
रामानुजन ने प्रोफेसर हार्डी के साथ मिलकर इनफिनिटी (अनंत) सीरीज को जानने और समझने की दिशा में काम किया। कैंब्रिज के दो प्रोफेसर (हार्डी और लिटिलवुड) एक हाईस्कूल फेल भारतीय की नोटबुक में लिखी सैकड़ों थ्योरम को समझने की कोशिश कर रहे थे। दोनों ने इस भारतीय को यूलर और जैकोबी (कैलकुलस की नींव रखने वाले गणितज्ञ, आसान भाषा में समझें तो गणित के न्यूटन और आइंस्टीन) की कैटेगरी में रखा।
8. हार्डी ने कुछ गलतियां सुधारीं
रामानुजन स्कूल मेथड से पढ़े हुए गणितज्ञ नहीं थे। उनके काम में कई बार गलतियां रह जाती थीं। साथ ही वो ऐसी चीजें भी प्रूव करने लगते थे, जो पहले ही खोजी जा चुकी थीं। हार्डी ने इन सब को सुधारा और रामानुजन ने 1916 में अपनी रिसर्च के लिए कैंब्रिज से बैचलर ऑफ साइंस (इसे बाद में Phd में बदल दिया गया) की डिग्री ली। 1919 आते-आते रामानुजन ने रॉयल सोसायटी फेलो, फेलो ऑफ ट्रिनिटी जैसे तमाम खिताब अपने नाम कर लिए।
9. मृत्युशैया पर रचा महान फॉर्मूला
1920 में रामानुजन की तबीयत काफी खराब हो चुकी थी। वे इंग्लैंड से भारत वापस आ गए थे। मृत्युशैया पर ही उन्होंने हार्डी को पत्र भेजा। इसमें 17 नए फंक्शन लिखे थे। साथ ही ये हिंट दी कि ये सभी फंक्शन थीटा (साइन थीटा, कॉस थीटा जैसे) से जुड़े हुए हैं। इसमें से एक फंक्शन मॉक थीटा का था। रामानुजन ने ये कहीं नहीं लिखा था कि ये फंक्शन कहां से आया, कैसे सिद्ध हुआ, इसका कहां और क्या इस्तेमाल है? और इसकी क्या जरूरत है? लंबे समय तक ये मॉक थीटा एक पहेली बना रहा। इन पर दुनियाभर के विद्वान सिर खपाते रहे। 1987 में गणितज्ञ फ्रीमैन डायसन ने लिखा, ये मॉक थीटा कुछ बहुत बड़े की तरफ इशारा करता है, मगर इसे समझा जाना बाकी है।
फ्रीमैन जिस बहुत बड़े की बात कर रहे थे, उसे जानने के लिए वापस 1916 में जाना पड़ेगा। 1916 में अल्बर्ट आइंस्टीन ने एक छोटा सा फॉर्मूला दिया। E=mc2 का ये छोटा सा सिद्धांत विज्ञान में भगवान का दर्जा रखता है। इसी सिद्धांत के ऊपर एक खोज हुई, जिसे ब्लैकहोल कहा जाता है। इसे जब 2002 में समझा गया तो पता चला कि रामानुजन का 1920 में खोजा गया मॉक थीटा ब्लैकहोल के फंक्शन को समझने के लिए जरूरी है। आज भी मॉक थीटा का इस्तेमाल ब्लैक होल के नेचर को समझने में होता है।
10. बिना कंप्यूटर के रचा इतिहास
1920 में रामानुजन के पास कोई कंप्यूटर नहीं था, कैलकुलेशन के टूल नहीं थे। अंतरिक्ष में जाना और उसकी गणना करना तो कल्पना ही था। ऐसे में तमिलनाडु के एक क्लर्क ने कैसे अपने से 100 साल बाद की खोजों के लिए गणित के फॉर्मूलों की नींव रख दी, इसे चमत्कार ही कहा जाना चाहिए।
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