जीना इसी का नाम है: कभी खुद प्रताड़ित थीं, 12 साल में 36 हजार महिलाओं की स्थिति बदली

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जीना इसी का नाम है: कभी खुद प्रताड़ित थीं, 12 साल में 36 हजार महिलाओं की स्थिति बदली

झारखंड के पश्चिमी जिले सिंहभूममें 31 साल की सुमित्रा गगराई ने मेंटल हेल्थ को लेकर बेहतरीन काम किया। कम पढ़ी- लिखी सुमित्रा ने ना सिर्फ खुद को बल्कि 36 से ज्यादा महिलाओं को मानसिक प्रताड़ना से बाहर निकाला। वो 12 साल से काम कर रही हैं। उन्होंने 36 हजार से ज्यादा आदिवासी महिलाओं की जिंदगी बदल दी है। आदिवासी हो जनजाति में जन्मी सुमित्रा ना सिर्फ गरीबी और बीमारी से उबरीं, बल्कि स्वास्थ्य परिवर्तन के क्षेत्र में अहम काम किया। सुमित्रा बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य, उनके खिलाफ अपराध पर भी काम करती है। उनके इस काम को देखते हुए सीआईआई- फाउंडेशन के द्वारा सम्मानित किया गया था।

हेल्थ को लेकर कल्चर पैदा किया

सुमित्रा जब 17 साल की थी तब उन्होंने ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। EKJUT के सहारे उन्होंने अपनी स्थिति बेहतर की। अब वह ग्राउंड- अप हेल्थ चैंपियन बन गई है। उन्होंने मृत्यु दर, स्वास्थ्य पोषण, लिंग जैसे मुद्दों को एक कड़ी में जोड़ा। उन्होंने हेल्थ को लेकर एक कल्चर पैदा किया।

बेटे की चाह में मानसिक रूप से बीमार हुई

सुमित्रा का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। बहुत ही कम उम में उनकी शादी हो गई। ससुराल वाले उससे बेटा चाहते थे, इसलिए मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने लगे।यहीं से उसकी मेंटल हेल्थ खराब होने लगी। सुमित्रा को 2011 में झटका लगा जब उसकी छोटी बहन ने आत्महत्या कर ली थी। उसी के बाद उसने मानसिक स्वास्थ्य पर काम करने का फैसला लिया।

EKJUT कई मुद्दों पर काम करता है

सुमित्रा संस्था से जुड़ी । संस्था घरेलू हिंसा, जादू टोना, नवजात मृत्यु दर और कुपोषण जैसी समस्याओं पर काम करती है। संस्था ने महिलाओं की स्थिति समझने के लिए गांव में बैठके करना शुरू की।

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