आज मशहूर कवि कुमार विश्वास 52 साल के हो गए। 10 फरवरी 1970 को यूपी के पिलखुआ में कुमार का जन्म हुआ था। बड़ी बात ये कि उस दिन 10 फरवरी को वसंत पंचमी (मां सरस्वती का दिन) थी। कुमार विश्वास अपने चार भाइयों और एक बहन में सबसे छोटे हैं। उन्होंने अपनी पढ़ाई गंगा सहाय स्कूल, पिलखुआ से की। उनके पिता डॉ. चन्द्रपाल शर्मा आरएसएस डिग्री कॉलेज (पिलखुआ) में टीचर थे। उनकी मां रमा शर्मा हाउसवाइफ हैं।
इंजीनियरिंग छोड़कर चुनी साहित्य की राह: कुमार विश्वास के बारहवीं में फर्स्ट आने के बाद पिता चाहते थे कि वे इंजीनियरिंग करें। पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए उन्होंने इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के एमएनआईटी इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन तो ले लिया, लेकिन उनका मन ज्यादा साहित्य में ज्यादा रमता था। लिहाजा कुमार दूसरे सेमेस्टर में ही इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में छोड़कर साहित्य की ओर चल पड़े। इंजीनियरिंग छोड़ने के बाद उनके पिता ने उन्हें पैसे देने से मना कर दिया था। पैसों का इंतजाम करने के लिए कुमार ने एक लोकल न्यूजपेपर में स्टोरी लिखनी शुरू कर दी। इससे उनकी फीस का इंतजाम हो गया। उन्होंने साहित्य में ग्रेजुएशन किया और फिर हिंदी साहित्य में पोस्ट ग्रेजुएशन में गोल्ड मेडल लिया। उन्होंने "कौरवी लोकगीतों में लोकचेतना" सब्जेक्ट पर पीएचडी की। इस रिसर्च-वर्क को 2001 में पुरस्कृत भी किया गया।
बहन के कहने पर बदला नाम: बीए की पढाई के साथ ही कुमार विश्वास ने कवि सम्मेलन में भाग लेना शुरू कर दिया। शुरुआत में ही उस वक्त के मशहूर कवियों और शायरों को अपनी कविता से इम्प्रेस किया। धीरे-धीरे उनका नाम कवि सम्मेलन की दुनिया में धूम मचाने लगा। एक तरफ वो फेमस हो रहे थे, वहीं कई विरोधी होते जा रहे थे। उन्होंने अपना नया नाम रखने का सोचा। जब इस बारे में अपनी बहन से बात की तो उन्होंने सुझाव दिया कि अपना नाम विश्वास कुमार शर्मा से कुमार विश्वास रख लें। इस तरह अपनी बहन के कहने पर विश्वास कुमार शर्मा, आज के कुमार विश्वास हो गए।
करियर की शुरुआत: कुमार विश्वास ने अपने करियर की शुरुआत 1994 में राजस्थान के एक कॉलेज में टीचर के रूप की। सिर्फ 24 साल की उम्र में वो हिंदी साहित्य के टीचर बन चुके थे। आज कुमार विश्वास साहित्यजगत का जाना-माना नाम हैं। उनकी दो बुक पब्लिश हो चुकी हैं। पहली बुक 1996 (26 साल की उम्र में) में 'इक पगली लड़की के बिन' आई थी। दूसरी बुक 2007 में 'कोई दीवाना कहता है' आई। इसका दूसरा एडिशन 2010 में पब्लिश हुआ। वे कविताओं के अलावा गीत और शायरी भी करते हैं। कवि सम्मेलनों का मंचन भी करते हैं। उन्होंने गाने भी गाए हैं। उन्होंने आदित्य दत्त की फिल्म 'चाय-गरम' में एक्टिंग भी की है। कुमार दुबई, अमेरिका, सिंगापुर जैसे कई देशों में परफॉर्मेंस दे चुके हैं।
राजनीतिक करियर: कुमार विश्वास ने अन्ना आंदोलन से राजनीति में एंट्री की। 2010 में जब देश महंगाई और भ्रष्टाचार से परेशान था। ऐसे माहौल में अन्ना हजारे ने जनलोकपाल बिल को लेकर आंदोलन छेड़ दिया। कुमार विश्वास भी इस आंदोलन में शामिल हो गए। दिल्ली के रामलीला मैदान में हुए अन्ना आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक थे। अन्ना आंदोलन के बाद जब आम आदमी (आप) पार्टी बनी तो वो इस पार्टी का हिस्सा बने। बाद में उन्होंने इस पार्टी के टिकट पर अमेठी से राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा, जिसमें उनकी हार हुई। बाद में कुमार ने आप छोड़ दी।
पत्नी मंजू के नाम विश्वास की प्रेम कविता: कुमार ने जब 1994 राजस्थान में नौकरी शुरू की तो यहीं पर पहली बार मंजू से मुलाकात हुई। वो भी उसी कॉलेज में टीचर थीं। उनकी यह मुलाकात कब प्यार में बदल गई, दोनों को पता ही नहीं चला। कुमार ने मंजू के लिए श्रृंगार रस से भरी कविताएं लिखना शुरू कीं। धीरे-धीरे दोनों का प्यार बढ़ता गया और बात शादी तक पहुंच गई। कुमार को पता था कि जाति अलग होने की वजह से उनके घर में विरोध होगा, इसलिए दोनों ने कुछ दोस्तों की मदद से पहले कोर्ट और फिर मंदिर में शादी कर ली। शादी के बाद दोनों ने अपने घर वालों को बताया, दोनों परिवारों ने इस शादी का विरोध किया। कुमार के पिता इस शादी से इतने नाराज थे कि उन्हें घर में एंट्री नहीं मिली। कहा जाता है कि शादी के तकरीबन दो साल दोनों किराए के मकान में रहते थे।
कोई दीवाना कहता हैं, के पीछे का दीवाना: देश-विदेश में युवाओं के दिल पर राज कर रहीं लाइनें कुमार विश्वास की पहचान बन चुकी हैं। ये कविता सबकी जुबान पर है, पर इसके पीछे की कहानी कम ही लोगों को मालूम हैं। जब कुमार ग्रेजुएशन कर रहे थे, उस दौरान उन्हें लेटर देने शाम को गर्ल्स हॉस्टल पहुंच गए। वहां गार्ड ने उन्हें देख लिया और जब इनके पीछे दौड़ा तो भागकर बाउंड्री कूद गए। बाउंड्री के बाहर किसी से टकरा गए तो उसने कहा- 'पागल है क्या।' बाहर जो दोस्त इंतजार कर रहा था, उसकी स्कूटर से भी टकरा गए तो दोस्त ने कहा 'दीवाना है तू।' इसके बाद कुमार ने ये कविता लिखी, जिसका जादू आज भी बरकरार है।
कुमार विश्वास की उपलब्धियां
- 1994 - डॉ. कुंवर बेचैन काव्य और काव्य कुमार अवॉर्ड।