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रायपुर. 12 साल पहले हुए मदनवाड़ा नक्सल हमले जांच रिपोर्ट आ गई है। घटना के 10 साल बाद शुरू हुई न्यायिक जांच (ज्यूडिशियल इन्क्वायरी) ने रिकॉर्ड समय यानी 2 साल, 2 दिन में जांच पूरी करते हुए तत्कालीनआईजी मुकेश गुप्ता को घटनाक्रम के लिए दोषी ठहराया है। 81 पन्ने की जांच रिपोर्ट के ज्यादातर पेजों पर मुकेश गुप्ता का जिक्र,आईजी रेंज जोन अथवा कमांडर चीफ के रूप में उल्लेखित हैं।
गुप्ता को लेकर एकल सदस्यीय जांच आयोग ने अलग-अलग जगहों पर खास विशेषण भी दिए हैं। आयोग ने गुप्ता को लेकर अनावश्यक घमंड की वजह से कलंकित फूहड़पन और गैर-जिम्मेदाराना ढंग का नेतृत्व, लापरवाह काहिलपन जैसे खास शब्दों से नवाजा हैं। नक्सली हमले में एसपी विनोद चौबे समेत 25 पुलिसकर्मियों शहीद हुए थे। रिपोर्ट में पूरी तरह से तत्कालीन आईजी मुकेश गुप्ता को दोषी बताया गया है।
ये है रिपोर्ट: शंभुनाथ श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाली इस रिपोर्ट में आईजी को मदनवाड़ा कैंप खोलने से लगायत एसपी समेत जवानों के नक्सल एंबुश में शहीद होने के लिए जवाबदेह बताया गया है। रिपोर्ट मुकेश गुप्ता के खिलाफ किस कदर प्रतिबद्ध है, उसे समझने के लिए पृष्ठ 97 ही काफी है। यहां लिखा गया है- ‘ज्यादातर गवाहों को राष्ट्रपति मेडल और आउट ऑफ टर्न पदोन्नति मिली। यह प्रतीत होता है कि राष्ट्रपति अवॉर्ड मिलने से सभी गवाहों ने आईजी गुप्ता का एंटी-लैंड माइन व्हीकल में मौजूद होने के प्रश्न का समर्थन किया है।’
इतना ही नहीं, आयोग ने मुठभेड़ स्थल पर आईजी गुप्ता के होने और मुठभेड़ में शामिल होने या गुप्ता के एंटी लैंड माइंस में होने पर प्रश्न चिह्न लगाने या यूं लिखना ज़्यादा सही होगा कि झूठा होने के निष्कर्ष पर पहुंचने की पुरजोर कोशिश की है। आयोग ने यह साबित करने की कोशिश की है कि मुकेश गुप्ता घटनास्थल से कुछ दूरी पर नाका बैरियर पर उपस्थित थे। यदि वे आए होंगे तो तब, जब सीआरपीएफ पहुंच चुकी थी।
आरोपियों को बरी किया गया: आयोग ने जांच के लिए जो बेसिक तथ्य बनाए, उसके पेज 21 पर लिखा है कि इस मामले में कई आरोपियों के विरुद्ध चार्जशीट दाखिल हुई। आयोग की रिपोर्ट में तीन ट्रायल का जिक्र है और लिखा गया है कि तीनों में ही अभियोगियों को बरी कर दिया गया। न्यायिक जांच रिपोर्ट के पेज 88 में इन अदालती फैसलों का संदर्भ इस निष्कर्ष के साथ उल्लेखित है- पूरी कहानी बनाई गई थी तथा रची गई थी। इसी कारण यह मामला कोर्ट में सभी को बरी करने के बाद खत्म हो गई।
मुकेश गुप्ता पर सवाल ही सवाल: जांच रिपोर्ट मुकेश गुप्ता के खिलाफ बेहद तल्ख टिप्पणियों से लबरेज है। इसमें में मुकेश गुप्ता को मिले वीरता पुरस्कार पर भी सवाल उठाया है।आयोग की पूरी रिपोर्ट पूरे नक्सल मुठभेड़ को लेकर मुकेश गुप्ता की भूमिका को यथाशक्ति संदिग्ध बताने की कवायद करती है। साथ ही पेज 107,108 और 109 में अलग से स्याही खर्च करते हुए मुकेश गुप्ता को प्रश्नांकित किया गया है। रिपोर्ट में लिखा है- यदि कोई वीरता का पुरस्कार दिया जाना था या पुरस्कृत करना था, वह शहीद एसपी को दिया जाना चाहिए था और पुलिसकर्मियों को मरणोपरांत दिया जाना चाहिए था।
जांच रिपोर्ट के आधार पर गृह विभाग ने 35 बिंदुओं के निर्देश जारी किए हैं, उसके बिंदु क्रमांक 10 में लिखा है- ऑप्स की प्लानिंग जल्दबाज़ी और हड़बड़ी में ना की जाए। इसी के क्रमांक 25 में लिखा गया है- किसी घटना के घटित होने पर वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा तत्काल स्वयं जाने की अपेक्षा घटनाक्रम एवं स्थिति की स्वयं मॉनीटरिंग कर विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखकर समुचित रिस्पांस/कार्यवाही कराया जाना टेक्नीकल दृष्टि से ज्यादा उपयोगी होता है।
क्या घटनाक्रम था: 12 जुलाई 2009 को नक्सलियों ने मदनवाड़ा कैंप में दो जवानों की हत्या कर दी। सूचना पर घटनास्थल की ओर जा रहे पुलिस टीम के साथ कप्तान विनोद चौबे नक्सली एंबुश में फंसे और शहीद हो गए। तब मीडिया रिपोर्ट में यह दावा था कि घटनास्थल पर तत्कालीन आईजी मुकेश गुप्ता भी मौजूद थे। आईजी मुकेश गुप्ता और कप्तान विनोद चौबे जब सड़क पर थे, तो बिलकुल पास लैंड माइंस ब्लास्ट हुआ, जिसके बाद सड़क के अलग अलग छोर पर दोनों कथित रुप से कूद गए। लगातार हो रही फायरिंग के बीच आईजी मुकेश गुप्ता क्रॉलिंग करते हुए एंटी लैंड माइंस तक पहुंच गए, जबकि विनोद चौबे नहीं पहुंच पाए।
फायरिंग थमने के बाद तलाश की गई तो विनोद चौबे समेत कई जवान शहीद पाए गए। शहीद विनोद चौबे को अदम्य वीरता के लिए मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया, उनकी पत्नी श्रीमती रंजना चौबे को असाधारण पेंशन दी जा रही है, वहीं उनके पुत्र सौमिल चौबे को अनुकंपा नियुक्ति के मान्य मापदंडों को शिथिल करते हुए सीधे डिप्टी कलेक्टर बनाया गया। मरणोपरांत जवानों के परिजन को अनुकंपा नियुक्ति दी गई। जबकि तीन को जिनमें आईजी मुकेश गुप्ता शामिल हैं, उन्हें वीरता पुरस्कार दिया गया।
मुकेश गुप्ता का CS को लिखा लेटर वायरल: सदन में पेश जांच रिपोर्ट के बाद मुकेश गुप्ता का मुख्य सचिव को लिखा पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। इस पत्र में गुप्ता ने गठित न्यायिक जांच आयोग पर सवाल खड़े किए हैं। गुप्ता ने लिखा है कि उनके द्वारा एकल सदस्यीय जांच आयोग के अध्यक्ष शंभुनाथ श्रीवास्तव के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गई थी, इसलिए वे दुर्भावना से प्रेरित हैं। साथ ही पत्र में लिखा गया है कि उनके पास दो व्यक्तियों की चैट है, जिसमें इस बताया गया है कि इस जांच का उद्देश्य मुझे (मुकेश गुप्ता) आरोपी साबित करना है।
मुख्य सचिव को गुप्ता लिखते हैं- मेरे खिलाफ नवंबर में आयोजित अनिवार्य सेवानिवृत्ति के लिए की गई बैठक में, जिसमें आप मौजूद थे, आपने न्यायिक जांच रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि मुझे गंभीर रूप से संदेहास्पद बताया गया है, जबकि यह रिपोर्ट फरवरी में सौंपी गई थी। यदि इस रिपोर्ट से मुझे किसी भी प्रकार की हानि होती है तो जवाबदेह में आप भी शामिल होंगे।
गुप्ता के पत्र के मुताबिक- मैंने आयोग को पत्र के जरिए आपत्ति जताई थी, जिसे निर्णय के लिए सुरक्षित बताया गया था, लेकिन निर्णय की सूचना दिए बगैर जांच रिपोर्ट पूरी कर दी गई।
आईपीएस मुकेश गुप्ता इस समय निलंबित हैं और मौजूदा भूपेश बघेल (कांग्रेस) सरकार के लिए उतनी ही आंख की किरकिरी हैं जितनी कि वे रमन सिंह (बीजेपी) सरकार के समय पलकों पर थे।