Bhopal. हर साल मई महीने के दूसरे रविवार को मदर्स डे यानी मां का दिन मनाया जाता है। 112 साल से यह ट्रेडिशन चला आ रहा है। इसकी शुरुआत ऐना जार्विस ने की थी। उन्होंने यह दिन अपनी मां को समर्पित किया और इसकी तारीख इस तरह चुनी कि वह उनकी मां की पुण्यतिथि 9 मई के आसपास ही पड़े। इस बार मदर्स डे 8 मई को है।
मदर्स डे की असल थीम?
दरअसल, मदर्स डे की शुरुआत ऐना जार्विस की मां एन रीव्स जार्विस करना चाहती थीं। उनका मकसद मांओं के लिए एक ऐसे दिन की शुरुआत करना था, जिस दिन अतुलनीय सेवा के लिए मांओं को सम्मानित किया जाए। हालांकि, 1905 में एन रीव्स जार्विस की मौत हो गई और उनका सपना पूरा करने की जिम्मेदारी उनकी बेटी एना जार्विस ने उठा ली। हालांकि, ऐना ने इस दिन की थीम में थोड़ा बदलाव किया। उन्होंने कहा कि इस दिन लोग अपनी मां के त्याग को याद करें और उसकी सराहना करें। लोगों को उनका यह विचार इतना पसंद आया कि इसे हाथोंहाथ ले लिया गया और एन रीव्स के निधन के तीन साल बाद यानी 1908 में पहली बार मदर्स डे मनाया गया।
मदर्स डे के विरोध में आ गईं थी ऐना
दुनिया में जब पहली बार मदर्स डे मनाया गया तो ऐना जार्विस एक तरह से इसकी पोस्टर गर्ल थीं। उन्होंने उस दिन अपनी मां के पसंदीदा सफेद कार्नेशन फूल महिलाओं को बांटे, जिन्हें चलन में ही ले लिया गया। इन फूलों का व्यवसायीकरण इस कदर बढ़ा कि आने वाले सालों में मदर्स डे पर सफेद कार्नेशन फूलों की एक तरह से कालाबाजारी होने लगी। लोग ऊंचे से ऊंचे दामों पर इन्हें खरीदने की कोशिश करने लगे। यह देखकर ऐना भड़क गईं और उन्होंने इस दिन को खत्म करने की मुहिम तक शुरू कर दी।
मदर्स डे चल निकला तो चल निकला
मदर्स डे पर सफेद कार्नेशन फूलों की बिक्री के बाद टॉफी, चॉकलेट और तमाम तरह के गिफ्ट भी चलन में आने लगे। ऐसे में ऐना ने लोगों को फटकारा भी। उन्होंने कहा कि लोगों ने अपने लालच के लिए बाजारीकरण करके इस दिन की अहमियत ही घटा दी। 1920 में तो उन्होंने लोगों से फूल ना खरीदने की अपील भी की। ऐना अपने आखिरी वक्त तक इस दिन को खत्म करने की मुहिम में लगी रहीं। उन्होंने इसके लिए सिग्नेचर कैंपेन भी चलाया, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी और 1948 के आसपास ऐना इस दुनिया को अलविदा कह गईं।
ऐना के रिश्तेदार नहीं मनाते यह दिन
मदर्स डे के बाजारीकरण के खिलाफ एना की मुहिम का असर भले ही पूरी दुनिया पर ना हुआ हो, लेकिन उनके परिवार के लोग व रिश्तेदार यह दिन नहीं मनाते हैं। दरअसल, कुछ साल पहले मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में एना की रिश्तेदार एलिजाबेथ बर ने बताया था कि उनकी आंटियों और पिता ने कभी मदर्स डे नहीं मनाया, क्योंकि वे ऐना का काफी सम्मान करते थे। वे ऐना की उस भावना से काफी प्रभावित थे, जिसमें कहा गया था कि बाजारीकरण ने इस बेहद खास दिन के मायने ही बदल दिए।
अमेरिकी प्रेसिडेंट ने दी मान्यता
1914 में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने मई के दूसरे रविवार को आधिकारिक रूप से मदर्स डे के रूप में मान्यता दी थी। वह परंपरा आज भी कायम है। मई माह के दूसरे रविवार को हर साल मदर्स डे के रूप में मनाया जाता है। राजनीति से लेकर सिनेमा और खेल जगत में भी कई महिलाओं ने मां बनने के बाद कमाल का काम किया है। हाल में कई सुपर मॉम्स को खेल के मैदान पर देखा गया है।
टेनिस में किम क्लिस्टर्स ने अपनी बेटी के जन्म के एक साल बाद यूएस ओपन जीता था। सेरेना विलियम्स ने मां बनने के बाद टेनिस कोर्ट पर धमाकेदार वापसी की थी। स्विमर दारा टोरेस ने 41 साल की उम्र में अपने पहले बच्चे को जन्म देने के 16 महीने बाद बीजिंग ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीता था। भारत में भी ऐसी कई सुपर मॉम्स हैं, जिन्होंने अपने देश को गौरवान्वित किया।
1. मैरी कॉम: चार बच्चों की मां मैरी कॉम भारत में एक सुपर मॉम की मिसाल हैं। मैरी कॉम भारत की अब तक की सबसे बेहतरीन मुक्केबाजों में से एक हैं। कई इंटरनेशनल टूर्नामेंट जीतने के बाद मैरी कॉम ने 2005 में फुटबॉलर करुंग ओंखोलर से शादी की और दो साल बाद वह जुड़वा लड़कों रेचुंगवार और खुपनेवर की मां बनीं। दो बच्चों की मां बनने के बाद भी मैरी कॉम ने रिंग में वापसी की। उन्होंने 2008 की एशियाई महिला बॉक्सिंग चैंपियनशिप में रजत पदक जीता। उसी वर्ष उन्होंने चीन में वुमन वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में अपना चौथा स्वर्ण पदक जीता।
उनका प्रदर्शन लगातार बेहतरीन होता गया और लंदन 2012 ओलंपिक में उनके हिस्से में ब्रॉन्ज मेडल आया। 2013 में मैरी कॉम ने अपने तीसरे बेटे प्रिंस चुंगथांगलन को जन्म दिया। इसके बाद एक बार फिर उन्होंने वापसी की और साउथ कोरिया के इंचियोन में 2014 में एशियन गेम्स में गोल्ड जीतने वाली पहली भारतीय बॉक्सर बनीं। 2018 में मैरी कॉम ने मेरिलन नाम की एक बेटी को गोद लिया था। संयोग से उसी साल मैरी कॉम ने अपना छठा वर्ल्ड चैंपियनशिप गोल्ड मेडल जीता था। ओलंपिक मेडल समेत कई अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियां मैरी कॉम के हिस्से में मां बनने के बाद आईं।
2. सानिया मिर्जा: भारत की अनुभवी टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्जा कई नए एथलीटों के लिए रोल मॉडल हैं। उन्होंने 6 ग्रैंड स्लैम खिताब (युगल और मिश्रित युगल में) जीते हैं और 2013 में एकल से संन्यास लेने तक भारत की शीर्ष एकल खिलाड़ी भी थीं। 2010 में उन्होंने पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक से शादी की और 2018 में सानिया ने बेटे इजहान को जन्म दिया। बेटे के जन्म के बाद उन्होंने टेनिस कोर्ट पर वापसी की। इसके लिए 26 किलो वजन घटाया।
दिसंबर 2019 में सानिया का नाम भारतीय फेड कप टीम में शामिल किया गया। हालांकि, कोर्ट पर वापसी जनवरी 2020 में हुई। उन्होंने होबार्ट इंटरनेशनल टूर्नामेंट में हिस्सा लिया। अक्टूबर 2017 में मैटरनिटी लीव लेने के बाद यह उनका पहला पेशेवर टेनिस टूर्नामेंट था। उन्होंने फाइनल में शुआई पेंग और शुआई झांग को सीधे सेटों में हराकर अपनी जोड़ीदार नादिया किचेनोक के साथ खिताब जीता था। सानिया का यह 42वां डब्ल्यूटीए युगल खिताब था।
3. दीपिका पल्लीकल: टॉप 10 में स्थान पाने वाली पहली भारतीय महिला दीपिका पल्लीकल स्क्वैश में देश की पोस्टर गर्ल हैं। दीपिका ने 2013 में भारतीय क्रिकेटर दिनेश कार्तिक से शादी की। कॉमनवेल्थ गेम्स में 3 बार और एशियन गेम्स में 4 बार मेडल जीतने वाली इस खिलाड़ी ने 2018 में जकार्ता एशियाई खेलों के बाद स्क्वैश से खुद को दूर कर लिया। 18 अक्टूबर 2021 को दीपिका जुड़वा लड़कों की मां बनीं और 2022 में वापसी का फैसला किया।
ग्लासगो में वर्ल्ड डबल्स स्क्वैश चैंपियनशिप में दीपिका पल्लीकल ने तीन साल के लंबे समय के बाद वापसी करते हुए इतिहास रच दिया। उन्होंने जोशना चिनप्पा के साथ महिला युगल का खिताब जीतने से कुछ समय पहले सौरव घोषाल के साथ मिश्रित युगल में स्वर्ण जीता। यह विश्व चैंपियनशिप में भारत का पहला स्वर्ण था।
4. पीटी ऊषा: ये एथलीट किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। भारत के अब तक के सबसे महान स्प्रिंटर्स में से एक पीटी ऊषा ने लॉस एंजिल्स ओलंपिक्स (1984) में 400 मीटर बाधा दौड़ में भारत का नाम रोशन किया था। उन्हें पदक नहीं मिला था, लेकिन उनका नाम पूरी दुनिया में हो गया था। एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप और एशियाई खेलों में पीटी ऊषा ने कई पदक जीते। 1991 में पीटी उषा ने वी श्रीनिवासन से शादी की और एक साल बाद उन्हें एक बच्चा हुआ। अगले तीन साल तक उन्होंने खुद को एथलेटिक्स से दूर रखा।
1994 में पीटी ऊषा ने वापसी करने का फैसला किया और अपने पति से ट्रेनिंग ली। उसी साल उन्होंने हिरोशिमा में एशियाई खेलों में भाग लिया और 200 मीटर में चौथे स्थान पर रही। 4x400 मीटर रिले में उन्होंने जी.वी. धनलक्ष्मी, शाइनी विल्सन और कुट्टी सरम्मा के साथ ब्रॉन्ज जीता। पीटी उषा ने 1998 में जापान में फुकुओका एशियाई चैम्पियनशिप में चार पदक जीतने में कामयाब रहीं। 4x100 मीटर रिले में एक स्वर्ण, 4x400 मीटर रिले में एक रजत और 200 मीटर और 400 मीटर में रजत पदक जीता।
5. कोनेरू हम्पी: भारतीय शतरंज स्टार कोनेरू हम्पी ने 2019 में रैपिड शतरंज विश्व चैम्पियनशिप को अपने नाम किया था। हंगरी की जूडिट पोलगर के बाद 2600 एलो रेटिंग अंक को पार करने वाली दुनिया की दूसरी महिला बनीं। हम्पी ने यह उपलब्धि मां बनने के बाद हासिल की। उन्होंने 2016 से 2018 तक शतरंज से ब्रेक लिया था। एक समय हम्पी जीएम (ग्रैंडमास्टर) टाइटल जीतने वाली सबसे कम की उम्र की महिला थीं। उनका रिकॉर्ड बाद में चीन की होउ यिफान ने तोड़ा था। हम्पी ने एशियाई खेलों 2006 में दो स्वर्ण पदक जीतकर भारतीय शतरंज को आगे बढ़ाया।